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This Article is From May 05, 2024

दुनिया में मशहूर है राजस्थान की ये कला, हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन को दिला चुकी राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार

नेशनल अवॉर्डी जाकिर हुसैन द्वारा बनाई गई टेबल की अमेरीका और यूरोप सहित अन्य देशों में काफी डिमांड है. यह टेबल डिप्रेशन और एंग्जाइटी पीड़ित को कलर थैरेपी के टचसे एनर्जेटिक बनाने में कारगर है. साथ इनकी कलाकृति रेल मंत्रालय के म्यूजियम में भी रखी गई है.

दुनिया में मशहूर है राजस्थान की ये कला, हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन को दिला चुकी राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार
हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन की उनकी कलाकृति के साथ की तस्वीर

Born Art of Rajasthan: विश्व मानचित्र में पर्यटन की दृष्टि से जोधपुर (Jodhpur) अपना एक अलग ही स्थान रखता है. लेकिन पिछले कुछ सालों से हैंडीक्राफ्ट (Handicraft) के क्षेत्र में भी जोधपुर का डंका विश्व भर में बज रहा है. देश में विलुप्त होती बोर्न आर्ट कला को जोधपुर के हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन (Handicraft Zakir Hussain) ने आज भी जीवित रखा है. हैंडीक्राफ्ट के कुशल कारीगर जाकिर हुसैन हस्तशिल्प के क्षेत्र में कोई साधारण नाम नहीं है इनकी हस्तशिल्प कला के क्षेत्र में भारत सरकार की टेक्सटाइल मिनिस्ट्री (Textile Ministry) ने राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से भी नवाजा है. 

जाकिर हुसैन ने अपनी कला के जरिए कैमल बॉन से 10 फिट लंबी पैलेस ऑन व्हील्स ट्रेन का प्रतीकात्मक रूप भी बनाया, जिसमें 5 डिब्बे और फिर इंजन देख कर लगता है कि यह तो सच में वही पैलेस और व्हील्स है. रेल मंत्रालय के रेल म्यूजियम में भी इनके द्वारा बनाई गई कैमल बोर्न आर्ट से बनी ट्रेन आज भी रेल मंत्रालय के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही है.

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तत्कालीन राष्ट्रपति ने किया था सम्मानित

जाकिर हुसैन द्वारा 8 फीट लम्बी रेल पटरी भी पर दौड़ती हुई पैलेस ऑन व्हील्स के निर्माण करने पर जुलाई 2014 में हस्तशिल का सर्वोच्च सम्मान राष्ट्रीय पुरस्कार से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सम्मानित किया था. जिसके तहत 1 लाख रुपए का चेक, ताम्रपत्र, और प्रशस्ति पत्र भी मिल चुका है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के एग्जीबिशन में जाकिर हुसैन के बोर्न आर्ट कला की  कलाकारी को देखकर पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी मुरीद हो गए. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जाकिर हुसैन द्वारा बनाई गई विशेष छड़ी गिफ्ट में दी गई थी, जिसपर बनाई गई कलाकृति देखकर प्रधानमंत्री मोदी अभिभूत हुए थे.

ब्रिटेन के व्यापारी ने 5 लाख में खरीदा टेबल

आर्टिजन जाकिर हुसैन की क्रिएटिविटी की डिमांड विदेशों में भी खासी देखी जाती है. अपनी कला और हुनर के जरिए कोरोना काल मे लॉकडाउन के दौरान कबाड़ में पड़ी 25 साल पुरानी टेबल को भी अपनी कला से नए स्वरूप में टेबल पर गेम जोन बनाकर एक मिशाल पेश कर दिया. 5 लाख में तैयार हुई यह टेबल अब बोरियत मिटाने के लिए भी एक अच्छा टूल बन रही है, जिसे ब्रिटेन के एक व्यापारी ने खरीदा है.

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एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए नेशनल अवॉर्डी हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन बताते हैं कि उनकी इस सफलता के पीछे बहुत संघर्ष की कहानी भी जुड़ी रही है. शुरुआत में उन्होंने अपने माता से ढ़ाई सौ रुपये लेकर इस बोर्न आर्ट कला को आगे बढ़ाने की ठानी थी. फिलहाल 2 करोड़ रुपये के करीब इनकी कला से जुड़ी यह हस्तशिल्प कला का व्यापार हो रहा है.

यह कला इंग्लैंड, अमेरिका के डिप्रेशन पीड़ितों को दे रही राहत

आर्टिजन व नेशनल अवॉर्डी जाकिर हुसैन का कहना है उनके द्वारा बनाई गई टेबल जो 56 इंच लंबी और 32 इंच चौड़ी है जिसका इंग्लैंड और अमेरिका के अलावा अन्य देशों में भी इसकी खासी डिमांड है. जहां इंग्लैंड, अमेरिका व यूरोप में इसे गेम जोन टेबल के रूप में पहचान भी मिल रही है. इस टेबल की विशेषता यह भी है कि घर में अकेले इंसान को डिप्रेशन और एंग्जाइटी पीड़ित को कलर थैरेपी के टचसे एनर्जेटिक बनाने में भी कारगर है.

1 लाख से ज्यादा क्रिएटिव आइटम बना चुके है जाकिर

नेशनल अवॉर्डी हस्तशिल्पी जाकिर हुसैन अब तक 1 लाख से अधिक क्रिएटिव बोर्न आर्ट के आइटम बना चुके है. जिसमें 11 हजार से अधिक ट्रेन बना चुके हैं. 6 हजार से अधिक कार, जीप, ट्रक, जेसीबी, और विंटेज कारें भी अपनी कला के हुनुर से बनाई है. इन्होंने बोर्न आर्ट से एक जैवलरी बॉक्स, अंग्रूठी रखने की चित्रमय डिब्बी, अपीम वाली नायाब गोलाकार डिबिया और पेन भी बना चुके हैं. अपने घर में ही एक आर्ट गैलरी के निर्माण करने के साथ ही इसमें अपने हुनर के जरिए बनाए गए सभी प्रोडक्ट को बखूबी संजोए रखा है. जहां उनकी आर्ट गैलरी में आने वाले विजीटर्स भी इनकी कला के मुरीद हो जाते हैं.

हाथीदांत का प्रयोग बैन होने के बाद केमल बोर्न कला ने पकड़ी गति

हाथीदांत के प्रयोग पर बैन लगने के बाद से ही केमल बोर्न आर्ट कला गति पकड़ने लगी विकल्प के रूप में कई लोग उनके मर्त पशु के सींग का उपयोग करने लगे. जिसके बाद मृत पशुओं की हड्डियां शिप के जरिए आती थी. जहां उन्होंने प्रयोग करना शुरू किया और देखते ही देखते वे इतने कुशल कारीगर बन गए कि उनके इस हुनुर ने विश्व मे एक अलग पहचान दिला दी.

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