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This Article is From May 12, 2024

जोधपुर में मनाया गया 566 वां स्थापना दिवस, 18 प्रतिभाओं को मिला 'मारवाड़ रत्न' 

जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले में राज परिवार की मेजबानी में जोधपुर का 566वां स्थापना दिवस राजशाही अंदाज में हर्षोउल्लास के साथ में मनाया गया.

जोधपुर में मनाया गया 566 वां स्थापना दिवस, 18 प्रतिभाओं को मिला 'मारवाड़ रत्न' 
जोधपुर के स्थापना दिवस पर कार्यक्रम के दौरान की तस्वीर

Rajasthan News: राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर में रविवार को 566 वां स्थापना दिवस समारोह ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले में राजशाही अंदाज में मनाया गया. जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह ने इस अवसर पर अभिनेत्री इला अरुण सहित 18 प्रतिभाओं को मारवाड़ के सर्वोच्च 'मारवाड़ रत्न' सम्मान से नवाजा. 12 मई 1459 ईस्वी को राज-जोधा ने जोधपुर की स्थापना की थी.

राजशाही शासन के दौर में जोधपुर ऐतिहासिक 'मारवाड़' की राजधानी भी हुआ करती थी. जोधपुर आज भी कई ऐतिहासिक युद्ध व शौर्य गाथाओं के इतिहास को समेटे हुए हैं. जोधपुर अपने किले, महलों और मंदिरों के साथ ही वर्तमान में विश्व में पर्यटन की दृष्टि से भी एक बड़े केंद्र के रूप में पहचाना जाता है.

इनको मिला 'मारवाड़ रत्न'

रविवार को जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किले में राज परिवार की मेजबानी में जोधपुर का 566वां स्थापना दिवस राजशाही अंदाज में हर्षोउल्लास के साथ में मनाया गया. जिसमें अभिनेत्री इला अरुण को महाराजा विजय सिंह सम्मान और बॉम्बे हॉस्पिटल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस के निदेशक न्यूरोलॉजी डॉ. भीम सेन सिंघल को राव सीहा सम्मान देने के साथ ही 18 प्रतिभाओं को मारवाड़ के सर्वोच्च 'मारवाड़ रत्न' सम्मान से भी नवाजा गया.

'मैं थांसू दूर नहीं'

मेहरानगढ़ में आयोजित मुख्य समारोह में इस बार युवा सरोद वादक निज़ार खान द्वारा सरोद की प्रस्तुति भी दी गई. साथ ही डॉ. महेन्द्र सिंह तंवर द्वारा लिखित पुस्तक जोधपुर दुर्ग मेहरानगढ़ का लोकार्पण भी किया गया. मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट द्वारा प्रस्तुत और अभिमन्यु कानोडिया द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री फिल्म 'मैं थांसू दूर नहीं' लेगेसी ऑफ महाराजा हनवन्तसिंह को मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के यू ट्यूब पर वर्ल्ड वाइड लॉन्च किया गया.

लोक कला को मिल रहा बढ़ावा

जोधपुर के स्थापना दिवस के अवसर पर मारवाड़ के सर्वोच्च सम्मान से नवाजी गई अभिनेत्री इला अरुण ने कहा कि सदियों से हमारे यहां परंपरा चली आ रही है. वहीं बात अगर लोक कला के प्रोत्साहन की करें तो राजवाड़े के दौर से लोक कला को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. राजस्थान में कल्चर की कमी नहीं है चाहे बात करें महलों में, किलो में, शादियों के साथ ही लोकल कम्युनिटी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी लोक कला को प्रदर्शित करने के अवसर मिल रहे हैं.

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