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Ajmer Sharif Dargah: फारस से आए संत मोइनुद्दीन की अजमेर में कैसे बनी दरगाह? कहानी उस किताब की जिसके आधार पर हिंदू मंदिर का हो रहा दावा

Ajmer Sharif Dargah: अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका कोर्ट में स्वीकार कर ली गई है. अजमेर की निचली अदालत ने सभी पक्षकारों को नोटिस करते हुए 20 दिसंबर को मामले में अगली सुनवाई की तारीख मुकर्रर की है. 

Ajmer Sharif Dargah: फारस से आए संत मोइनुद्दीन की अजमेर में कैसे बनी दरगाह? कहानी उस किताब की जिसके आधार पर हिंदू मंदिर का हो रहा दावा
Ajmer Sharif Dargah: अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह.

Ajmer Sharif Dargah: अजमेर दरगाह शरीफ भारत का पवित्र धार्मिक स्थल है. सालों से यहां देश-विदेश के लाखों अकीदतमंद चादर चढ़ाने पहुंचते रहे हैं. यहां फिल्मी सितारों के साथ-साथ नेता और बड़े-बड़े कारोबारी भी आते रहे हैं. लेकिन बुधवार को अजमेर की निचली अदालत के एक फैसले के बाद अजमेर दरगाह शरीफ के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं. दरअसल निचली अदालत ने अजमेर दरगाह शरीफ को हिंदू मंदिर बताने की याचिका को स्वीकार कर लिया है. कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी करते हुए 20 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की है. 

मुस्लिम पक्ष ने अदालत के फैसले का किया विरोध

कोर्ट के इस फैसले के बाद अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर नई बहस छिड़ गई है. मुस्लिम पक्ष इसे हिंदू मंदिर बताने को लेकर आक्रोशित है. खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती, अजमेर दरगाह के दीवान सयैद ज़ैनुल आबदीन के बेटे नसीरुद्दीन चिश्ती, AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के इस आदेश की आलोचना की है. 

अजमेर शरीफ दरगाह विवाद.

अजमेर शरीफ दरगाह विवाद.

हिंदू सेना के अध्यक्ष अगली सुनवाई की तैयारी में जुटे

दूसरी ओर अजमेर शरीफ को हिंदू मंदिर बताने का दावा करने वाले हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता अपने वकील के साथ अगली सुनवाई की तैयारी में जुटे हैं. अजमेर शरीफ दरगाह के अस्तित्व पर छिड़े इस विवाद की पूरी कहानी क्या है? फारस से आए सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में कैसे बनी? अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने के दावा के पीछे क्या कहानी है? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में.

अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

अजमेर शरीफ दरगाह की गिनती भारत की सबसे अधिक पवित्र धार्मिक स्थलों में की जाती है. यहां ईरान (फारस) से आए सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि है. ख़्वाजा साहब की धर्म निरपेक्ष शिक्षाओं के कारण इस दरगाह के द्वार सभी धर्मों, जातियों और आस्था के लोगों के लिए खुले हैं.

मोहम्मद साहब के वंशज माने जाते हैं मोइनुद्दीन चिश्ती 

कुछ लोग ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब का प्रत्यक्ष वंशज मानते हैं. इन लोगों का मानना है कि ख़्वाजा साहब ने जन साधारण में उनकी धारणाओं और विश्वास को प्रचारित किया. ऐसा कहा जाता है कि एक बार ख़्वाजा साहब को सपने में मोहम्मद साहब ने दुनियां की सैर और खासकर भारत दर्शन पर जाने के लिए प्रेरित किया था.

अजमेर शरीफ दरगाह की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मोहम्मद साहब की प्रेरणा पर ही ख़्वाजा मोइनु्द्दीन साहब भारत आए. भारत आने के बाद मोइनुद्दीन साहब ने सन् 1192 से 1236 ईस्वी (अपनी मृत्यु के समय) तक तक अजमेर को अपना ठिकाना बनाया. 

मुगल बादशाह हुमायूं ने बनवाया दरगाह

अजमेर में सूफी संत मोइनु्द्दीन की दरगाह का निर्माण मुग़ल बादशाह हुमायूं ने करवाया था. हुमायूं ने सूफी सन्त के सम्मान में दरगाह का निर्माण करवाया. कालांतर में मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह पर लोगों की आस्था बढ़ते गई. आज यहां हर रोज हजारों की संख्या में लोग अपनी-अपनी मन्नतों को लेकर पहुंचते हैं.

फारस से आए सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और मुगल बादशाह हुमायूं.

फारस से आए सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और मुगल बादशाह हुमायूं.

चांदी के दरवाजे, आंगन में संत की दरगाह

अजमेर दरगाह शरीफ के दरवाजे चांदी के बने हैं. जब आप यहां पहुंचेंगे तो कई विशाल दरवाजों से होते हुए एक बड़े आंगन में पहुँचेंगे. जिसके बीचों-बीच इस मोइनुद्दीन की समाधि बनी हुई है. दरगाह सफेद मार्बल पत्थर से चारों ओर की सीढ़ियां, दीवारें, जाली, झरोखे बने हैं. गुम्बद पर सोने की प्लेटिंग की हुई है. 

शहंशाह अकबर अपने शासनकाल के दौरान अजमेर दरगाह में हर साल आया करते थे. शहंशाह अकबर और मुग़ल बादशाह शाहजहां ने दरगाह के परिसर के अन्दर कुछ मस्जिदों का निर्माण करवाया था. 

अजमेर दरगाह के हिंदू मंदिर होने का दावा

अजमेर दरगाह के हिंदू मंदिर होने का दावा दिल्ली के रहने वाले हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने की है. विष्णु गुप्ता के वकील ईश्वर सिंह और रामस्वरूप बिश्नोई द्वारा दरगाह कमेटी के कथित अनाधिकृत कब्जा हटाने संबंधी याचिका दायर की गई थी. जिस पर अजमेर पश्चिम सिविल जज सीनियर डिविजन मनमोहन चंदेल की कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले को सुनवाई योग्य माना और पक्षकारों को नोटिस करते हुए 20 दिसंबर को अगली तारीख तय की. 

अजमेर निवासी पूर्व जज हरबिलास सारदा की किताब अजमेरः ऐतिहासिक और वर्णनात्मक जिसके आधार पर दरगाह के हिंदू मंदिर होने का किया जा रहा दावा.

अजमेर निवासी पूर्व जज हरबिलास सारदा की किताब 'अजमेरः ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' जिसके आधार पर दरगाह के हिंदू मंदिर होने का किया जा रहा दावा.

याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता ने कोर्ट से क्या की मांग

याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता का कहना है कि यहां 1991 पूजा स्थल एक्ट इसलिए लागू नहीं होता, क्योंकि पूर्व में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर कभी किसी इंसान को पूजा करने के लिए अंदर जाने ही नहीं दिया. इसीलिए यह एक्ट यहां लागू नहीं हो सकता. वहीं इनके वकील का कहना है कि 38 पेज के दायर वाद में 38 पॉइंट में दिए गए अन्य प्वाइंट्स को ध्यान में रखते हुए. जिसमें प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष सुना जायेगा.

हरबिलास सारदा की किताब के आधार पर किया गया दावा

याचिकाकर्ता ने अजमेर निवासी पूर्व जज हर बिलास सारदा की किताब 'अजमेरः ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' का हवाला अपनी याचिका में दिया है. यह किताब 1911 में लिखी गई है. इस किताब के आधार पर दावा किया गया है कि दरगाह की जमीन पर पहले शिव मंदिर था, वहां पूजा पाठ और जलाभिषेक किया जाता रहा है. इसके अलावा दरगाह परिसर में एक जैन मंदिर होने के बारे में भी दावा किया गया है. 

हरबिलास सारदा की किताब का वो हिस्सा जिसके आधार पर दरगाह में मंदिर होने की कही जा रही बात.

हरबिलास सारदा की किताब का वो हिस्सा जिसके आधार पर दरगाह में मंदिर होने की कही जा रही बात.

हर बिलास सारदा की किताब में दरगाह की जगह मंदिर होने के प्रमाण का दिया गया है. इस पर दावा किया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद 75 फीट के बुलंद दरवाजे मंदिर के मलबे का अंश हैं. इसके साथ ही वहां एक गर्भ गृह होने की भी बात की गई है और बताया गया है कि वहां शिवलिंग था, जहां हिंदू ब्राह्मण परिवार पूजा अर्चना करते थे.

हरबिलास सारदा की किताब के अन्य पेज.

हरबिलास सारदा की किताब के अन्य पेज.

अपने दावे के बारे में विष्णु गुप्ता ने क्या कहा?

अपने दावे के बारे में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने कहा कि मैंने अजमेर के दरगाह पर 2 साल पहले रिसर्च शुरू की. गूगल पर देखा और कई किताबों को पढ़ने की कोशिश की. इसी दौरान मुझे अजमेर के प्रतिष्ठित जज हर बिलास सारदा की किताब अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव के बारे में जानकारी मिली. इसमें दावा किया गया था कि यहां कभी संकट मोचन महादेव का मंदिर हुआ करता था.

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