
Ambikeshwar Mahadev Mandir: राजस्थान की राजधानी जयपुर के आमेर सागर रोड पर स्थित प्राचीन अंबिकेश्वर मंदिर का जलस्तर धीरे-धीरे कम होने के बाद भक्तों को दो महीने बाद एक बार फिर भगवान शंकर के पूरे दर्शन हुए हैं. सावन और भादो के महीने में लगातार हुई बारिश के बाद अब मंदिर जलमग्न की स्थिति में पहुंच चुका था जिसके बाद अब चीजें सामान्य होने लगी है.
दो महीने पूरी तरह रहता है जलमग्न
इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां महादेव शिवलिंग के रूप में नहीं, बल्कि शिला रूप में विराजमान हैं. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सावन और भादो के महीने में जब पूरी तरह जलमग्न हो जाता है उस समय स्वयं प्रकृति महादेव का अभिषेक करती है. तब भक्त महादेव की पूजा सीढ़ियों से करते है. वही अब जलस्तर कम होने लगा है जिससे श्रद्धालु पहले की तरह दर्शन कर पा रहे हैं.
मंदिर के जल का रहस्य आज भी बरकरार
अंबिकेश्वर मंदिर के शिवलिंग (शिवशिला) में पानी कहां से आता है और कहां चला जाता है, यह रहस्य आज तक बरकरार है.मंदिर के पुजारी संतोष व्यास ने बताया कि शिवशिला 5000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है. करीब 900 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था. यह मंदिर 14 खंभों पर टिका है. मंदिर की जलहरी भूतल से लगभग 22 फीट गहरी है, और यहा का जल पास ही स्थित पन्ना-मीणा कुंड में जाता है.
गाय की कहानी और आमेर का नामकरण
गाइड महेश कुमार शर्मा ने मंदिर से जुड़ी एक कहानी बताई. उन्होंने कहा कि एक समय एक गाय रोज घास चरने के बाद भी दूध नहीं देती थी. लोगों ने जब गाय का पीछा किया, तो देखा कि वह एक छोटे से गड्ढे के पास खड़ी होकर अपना पूरा दूध जमीन पर गिरा रही है.
इसके बाद लोगों ने उस जगह की खुदाई करवाई, और करीब 22 फीट की खुदाई के बाद वहां एक स्वयंभू शिवलिंग मिला. जनश्रुति के अनुसार, उसी के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ. मान्यता है कि इसी अंबिकेश्वर मंदिर के नाम पर आमेर कस्बे का नाम आमेर रखा गया.
यह भी पढ़ें; सांसद राव राजेंद्र सिंह की अचानक तबीयत बिगड़ी, हालत गंभीर होने पर SMS अस्पताल में किया रेफर
Report By: रोहन शर्मा