Rajasthan News: आपने देखा होगा कि लोकसभा चुनाव में कई प्रत्याशी एक ही सीट से लगातार कई सालों से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं, लेकिन राजस्थान का बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र में अनोखी परंपरा के कारण कोई भी प्रत्याशी लगातार दो बार चुनाव नहीं लड़ पाया है. हालाकि यह परंपरा कांग्रेस में अधिक नजर आती है, लेकिन भाजपा भी कमोबेश इसी परम्परा का पालन करती आ रही है. आजादी के बाद से अलग ही परंपरा के द्वारा प्रत्याशी का चयन होता आ रहा है.
जिले के नंबर से तय होते हैं प्रत्याशी
दरअसल, बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी की घोषणा में कांग्रेस का एक अनोखा रिवाज है. कहा जाता है कि यह रिवाज आजादी के बाद से चला आ रहा है. रिवाज यह है कि इस सीट से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी का नाम तय करने से पहले जिला का नाम तय होता है. यानी अगर पिछले चुनाव में बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर डूंगरपुर जिले से कांग्रेस का प्रत्याशी चुनाव लड़ा, तो अगले चुनाव में इस सीट पर बांसवाड़ा जिले के किसी भी प्रत्याशी का नंबर आएगा. पहले स्थानीय स्तर पर तय होता है कि किस जिले का नंबर है. इसके बाद कांग्रेस आलाकमान प्रत्याशी के नाम की घोषणा करता है.
इस बार किस जिले का नंबर है?
खास बात यह है कि इस रिवाज के आगे हार या जीत मायने नहीं रखती. चाहे पिछले लोकसभा चुनाव में बांसवाड़ा जिले के प्रत्याशी ने बड़ा बहुमत प्राप्त कर जीत हासिल की हो, लेकिन अगले चुनाव में इस सीट पर डूंगरपुर जिले के प्रत्याशी का नंबर आएगा. गत दिनों डूंगरपुर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वल्लभराम पाटीदार ने बताया कि लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई है. पर्यवेक्षक रामलाल जाट और विधायक रोहित बोहरा बैठक में आए थे. लोकसभा सीट के रिवाज के अनुसार इस बार प्रत्याशी के लिए बांसवाड़ा जिले का नंबर है.
बांसवाड़ा लोकसभा में हैं 8 विधानसभाएं
उन्होंने बताया कि इस रिवाज को कायम रखते हुए सभी ने सर्वसम्मति दी है. आजादी के बाद से यह रिवाज कायम है. बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर चुनाव के समय में राजनीतिक पार्टियों का झुकाव आदिवासी वोटर्स पर रहता है. ये जनजातीय बहुल सीट है. इसमें आठ विधानसभा सीटे आती हैं. खास बात यह है कि यह वागड़ के दो जिले डूंगरपुर और बांसवाडा को मिलाकर बनती हैं. बांसवाड़ा जिले की पांच विधानसभा सीटें और डूंगरपुर जिले की तीन विधानसभा सीटें इसमें आती है.
हर बार जिले के साथ प्रत्याशी बदले
- साल 2019-ताराचंद भगोरा (डूंगरपुर)
- साल 2014-रेशमा मालविया (बांसवाड़ा)
- साल 2009- ताराचंद भगोरा (डूंगरपुर)
- साल 2004- प्रभुलाल रावत (बांसवाड़ा)
- साल 1999- ताराचंद भगोरा (डूंगरपुर)
- साल 1998-महेंद्रजीत सिंह मालवीय (बांसवाड़ा)
- साल 1996- ताराचंद भगोरा (डूंगरपुर)
- साल 1991 प्रभुलाल रावत, (बांसवाड़ा)
- 1989 हीराभाई (डूंगरपुर)
- 1984 प्रभुलाल रावत (बांसवाड़ा)
- 1980 - भीखा भाई (डूंगरपुर)
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