Rajasthan News: सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को कोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमीलेयर का आरक्षण समाप्त करने के निर्णय के बाद जहां विभिन्न राजनीतिक दल इसके लागू करने को लेकर उलझन में हैं तो वहीं भारत आदिवासी पार्टी में इस निर्णय को लेकर दो मत सामने आ रहे हैं. भारत आदिवासी पार्टी ने इस निर्णय से असहमति जताई है तो वहीं बीएपी के सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने इस निर्णय का स्वागत किया है.
भारत आदिवासी पार्टी इससे सहमत नहीं
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भारत आदिवासी पार्टी ने सोशल मीडिया और पर लिखा, 'सुप्रीम कोर्ट के सात कोलेजियम जजों द्वारा 6:1 से दिए आरक्षण संबंधी फैसले से हम असहमत हैं क्योंकि "इंडियन ज्युडिशरी सर्विस" प्रवेश परीक्षा और न्यायपालिका में SC/ST प्रतिनिधित्व के बगैर किसी भी आरक्षण संबंधी फैसले का न्यायपूर्ण होना असंभव है, जिनके पूर्वज ऐतिहासिक सामाजिक अन्याय करने के दोषी है उनके आनुवंशिक वंशज बगैर पूर्वाग्रही भेदभाव के सामाजिक न्याय नहीं दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जनजाति का मामला नहीं होने के बावजूद जबरन अनुसूचित जनजाति आरक्षण को जोड़ा गया है, यह अप्रवासी लोगों की धूर्त मानसिकता का परिचायक हैं.'
🌱 सुप्रीम कोर्ट के सात कोलेजियम जजों द्वारा 6:1 से दिए 1.8.024 आरक्षण संबंधी फैसले से हम असहमत हैं क्योंकि "इंडियन ज्युडिशरी सर्विस" प्रवेश परीक्षा और न्यायपालिका में SC/ST प्रतिनिधित्व के बगैर किसी भी आरक्षण संबंधी फैसले का न्यायपूर्ण होना असंभव है, जिनके पूर्वज ऐतिहासिक…
— Bharat Adivasi Party (@BAPSpeak) August 2, 2024
सैलाना विधायक ने किया फैसले का स्वागत
वहीं भारत आदिवासी पार्टी से ही मध्य प्रदेश के सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर हम कोर्ट का बहुत स्वागत करते हैं. इस फैसले से अत्यंत गरीब मजदूर वर्ग के बच्चों को अधिकार मिलेगा. वहीं आदिवासी दलित अधिकारियों कर्मचारियों के बच्चों के अधिकारों को भी कोई नुकसान नहीं होगा.
'हम बंटवारे की इस राजनीति के हम खिलाफ'
वहीं बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजकुमार रोत और अन्य विधायकों ने अभी इस बारे में अपनी कोई राय व्यक्त नहीं की हैं, लेकिन भारत आदिवासी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जितेंद्र मीणा ने लिखा है कि वह भारत आदिवासी पार्टी का पक्ष एकदम स्पष्ट है. आदिवासियों और दलितों में RSS की बंटवारे की इस राजनीति के हम खिलाफ हैं और वह ST की सूची में वर्गीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैंसले पर रिव्यू पिटीशन फाइल कर रहे हैं.
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