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भू-जल प्राधिकरण विधेयक पर पीछे हटी सरकार, विपक्ष ने कहा- पानी पर भी पहरा... बढ़ेगा अफसरशाही का दबदबा

सरकार भू-जल प्राधिकरण विधेयक पर पीछे हटते हुए इसे दोबारा विधानसभा की प्रवर समिति (Select Committee) के पास भेज दिया है.

भू-जल प्राधिकरण विधेयक पर पीछे हटी सरकार, विपक्ष ने कहा- पानी पर भी पहरा... बढ़ेगा अफसरशाही का दबदबा
भू-जल प्राधिकरण विधेयक वापस कमेटी को भेजा गया

Rajasthan Ground Water Authority Bill: राजस्थान विधानसभा में सरकार की ओर से भू-जल प्राधिकरण विधेयक पेश किया जाना था. लेकिन इस विधेयक पर पक्ष और विपक्ष में जमकर बहस हुई. जिसके बाद सरकार विधेयक पर पीछे हटते हुए इसे दोबारा विधानसभा की प्रवर समिति (Select Committee) के पास भेज दिया है. विधानसभा में जोरदार बहस के बाद जलदाय मंत्री कन्हैया लाल चौधरी ने इसे सेलेक्ट कमेटी को फिर से भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे सदन ने भी मंजूरी दे दी.

गौरतलब है कि यह विधेयक पिछले साल अगस्त में भी सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया था. बाद में फरवरी में समिति की रिपोर्ट सौंपने की समय सीमा बढ़ाई गई. हाल ही में समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसके बाद सरकार ने इसे फिर सदन में लाने का फैसला किया. लेकिन अब दोबारा प्रवर समिति को सौंपे जाने से इस पर अमल में और देरी होने की आशंका बढ़ गई है.

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विपक्ष ने बिल के प्रावधानों पर उठाए सवाल

विधानसभा में इस बिल को लेकर बहस हुई. विपक्षी विधायकों ने इसके प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए कहा कि ट्यूबवेल खुदाई और पानी के उपयोग को रेग्युलेट करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन ही नहीं हैं. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जब तक सरकारी जलदाय कनेक्शनों पर मीटर नहीं लग पाए हैं, तब तक ट्यूबवेल और भूजल पर सख्ती से नजर रख पाना मुश्किल होगा.

पानी पर भी पहरा बैठाना चाहती है सरकार- टीकाराम जूली

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली कांग्रेस के विधायक हाकम अली, रफीक खान और हरिमोहन शर्मा ने सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना की. 

अब तक पानी ही एकमात्र ऐसी चीज़ थी, जो बिना किसी रोक-टोक के मिलती थी. सरकार इस पर भी पहरा बैठाना चाहती है, जिससे आम जनता को परेशानी होगी और अफसरशाही का दबदबा बढ़ेगा. - टीकाराम जूली

इस विधेयक का मकसद भू-जल दोहन को नियंत्रित करना और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है. इसमें ट्यूबवेल खुदाई, भूजल उपयोग और जल स्तर की निगरानी के लिए कड़े नियम प्रस्तावित हैं. लेकिन विपक्ष का कहना है कि बगैर मजबूत बुनियादी ढांचे और संसाधनों के यह कानून सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगा.

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