
Rajasthan News: वैसे तो केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार जो भी सत्ता में रहते हैं, वह साहित्य की बात करते हैं. साथ ही साहित्य को बचाने की बात करते हैं. लेकिन असल में सरकार इसके लिए क्या कर रही है. इसका जीता जागता सबूत राजस्थान के भरतपुर में स्थित हिंदी साहित्य समिति है जो अब नीलाम होने की कगार पर है. 112 साल पुराणी हिंदी साहित्य समिति पर नीलामी की तलवार लटक रही है. राज्य सरकार की ओर से सहयोग न मिल पाने की वजह से ये समिति सालों से आर्थिक संकट झेल रही है, यहां के कर्मचारियों को वेतन न मिल पाने की वजह से अब कोर्ट ने नीलामी का नोटिस भेजा है. बता दें, आजादी की लड़ाई के समय भी समिति का महत्वपूर्ण योगदान रहा था. लेकिन इसके बावजूद इस धरोहर को बचाने के लिए राज्य सरकार द्वारा किसी तरह का कार्य नहीं किया जा रहा है. बल्कि उलट इसकी नीलामी कराई जा रही है.
समिति के पास 450 साल पुरानी धरोहर
1912 में स्थापित हिंदी साहित्य समिति के पास 450 वर्ष पुराणी 1500 से ज्यादा पांडुलिपियां, 44 विषयों की किताबें और तमाम साहित्य है. रविंद्रनाथ टैगोर, मदन मोहन मालवीय, मोरारजी देसाई, राम मनोहर लोहिया समेत कई मशहूर हस्तियां यहां आ चुकी है. लेकिन बजट की तंगी के चलते ये संस्था नीलाम होने के कगार पर है. समिति से जुड़े लोगों की मौजूदा सरकार के दरख्वास्त है की इस संस्था को नीलम होने से बचा लें.
गहलोत सरकार ने किया था बजट का ऐलान
पिछली कांग्रेस सरकार ने इस संस्था के लिए 5 करोड़ रुपये बजट की घोषणा की थी लेकिन उसमे से 1 करोड़ 11 लाख का बजट ही मिल सका. अब हिंदी साहित्य समिति में 6 कर्मचारी कार्यरत थे जिनमें से 4 सेवानिवृत हो गए, वर्तमान में दो कर्मचारी हैं. जुलाई 2003 में संस्था को सरकार द्वारा अधीन लेने के बावजूद कर्मचारियों को अपना पूरा वेतन नहीं मिल पाया. इसकी वजह से कोर्ट ने 16 जनवरी का नीलामी नोटिस जारी किया था जिसे बढाकर अब 16 फरवरी कर दिया गया.
यूं तो सरकारें हिंदी को बचने और बढ़ने की बड़ी बड़ी बातें करती है लेकिन इतनी पुरानी संस्था को अगर घोषित बजट ही न मिल पाए तो सब वादे बेकार नज़र आते हैं. अब देखना होगा की क्या मौजूदा सरकार इस संस्था को नीलामी से बचा पायेगी.
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