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नौकरी के लिए भर्ती में विकलांग आरक्षण का अजीबोगरीब मामला, कोर्ट ने बताया 'बेतुका और हास्यास्पद'

अब सात साल बाद याचिकाकर्ता राजेश चौधरी को आखिरकार कोर्ट से न्याय मिला. राजेश दोनों पैर से विकलांग/ विशेष योग्यजन को वर्ष 2016 से वरीयता सहित समस्त परिलाभ के साथ 30 दिन में नियुक्ति देने का आदेश दिया है. 

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नौकरी के लिए भर्ती में विकलांग आरक्षण का अजीबोगरीब मामला, कोर्ट ने बताया 'बेतुका और हास्यास्पद'
सात साल बाद मिला विकलांग को न्याय

Jodhpur News: राजस्थान हाईकोर्ट न्यायाधीश अरूण मोंगा की एकलपीठ ने फार्मासिस्ट संविदा भर्ती में दोनो पांव से विकलांग एवं विशेष योग्यजन को नियुक्त नहीं देने पर कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए याचिकाकर्ता को उसके समकक्ष की नियुक्ति देने को कहा है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ''चिकित्सा विभाग द्वारा दिया गया यह तर्क कि विज्ञापन में आरक्षण केवल एक पैर की विकलांगता के लिए लागू है, दोनों पैरों की विकलांगता के लिए नहीं यह बेतुका और हास्यास्पद है.

वहीं, अब सात साल बाद याचिकाकर्ता राजेश चौधरी को आखिरकार कोर्ट से न्याय मिला. राजेश दोनों पैर से विकलांग/ विशेष योग्यजन को वर्ष 2016 से वरीयता सहित समस्त परिलाभ के साथ 30 दिन में नियुक्ति देने का आदेश दिया है. 

सात साल बाद मिली न्याय

बलदेव नगर, जोधपुर निवासी याचिकाकर्ता राजेश चौधरी की ओर से अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने वर्ष 2016 में रिट याचिका पेश की. याचिका में बताया कि राजेश के दोनों पैर पोलियोग्रस्त होने से वह 45% लोकोमोटर विकलांग है, जिस हेतु सक्षम मेडिकल बोर्ड ने विशेष योग्यजन प्रमाण पत्र जारी कर रखा हैं. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, जयपुर ने 28.01.2016 को फार्मासिस्ट के कुल 591 सविंदा पदों हेतू भर्ती निकाली. उक्त विज्ञापन में विशेष योग्यजन के लिए मात्र यह अंकित था कि 40% या इससे अधिक निःशक्तता होने पर ही इस वर्ग के लिए आरक्षित पदों हेतु पात्र माना जावेगा. साथ ही यह अंकित किया गया कि भारत सरकार के परिपत्र और अधिसूचना के सलंग्नक अनुसार चिन्हित श्रेणी के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ देय होगा. भारत सरकार द्वारा फार्मासिस्ट पद के लिए वन लेग, बोथ लेग, वन आर्म और बहरापन श्रेणी को उचित और उपयुक्त माना गया है. याची ने भी अपना आवेदन विशेष योग्यजन और ओबीसी क्षेणी में प्रस्तुत किया. विभाग द्वारा ली गई लिखित परीक्षा वर्ष 2016 में याची ने 95.346% प्राप्त किये, बावजूद इसके, उसे नियुक्त नही दी गयी.जिस पर उसने हाइकोर्ट में याचिका पेश की गई.

याची की ओर से अधिवक्ता ख़िलेरी ने बताया कि याची ने विभाग द्वारा जारी मेरिट सूची में ओबीसी वर्ग में साथ साथ विशेष योग्यजन श्रेणी में अंतिम कटऑफ से ज्यादा अंक हासिल किये है. बावजूद इसके, उसे न तो ओबीसी वर्ग में नियुक्ति दी और न ही विशेष योग्यजन श्रेणी में नियुक्ति दी गयी.  राज्य सरकार की ओर से राजकीय अधिवक्ता ने बहस कर बताया कि विज्ञप्ति में बोथ लेग विशेष योग्यजन अभ्यर्थी पात्र नहीं है. लेकिन भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना और सलंग्नक अनुसूची बाबत अनभिज्ञता ज़ाहिर की. 

सुनवाई के बाद कोर्ट  ''चिकित्सा विभाग द्वारा दिया गया यह तर्क कि विज्ञापन में आरक्षण केवल एक पैर की विकलांगता के लिए लागू है, दोनों पैरों की विकलांगता के लिए नहीं'' बेतुका और हास्यास्पद है. साथ ही केंद्रीय सरकार के द्वारा जारी अधिसूचना के सलंग्नक अनुसूची के सत्यापन के अध्यधीन याची को कनिष्ठ अभ्यर्थियों के नियुक्ति वर्ष 2016 से वरीयता सहित समस्त नोशनल परिलाभ के साथ 30 दिन के भीतर भीतर नियुक्ति देने के दिये आदेश दिए.

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