
Rajasthan Desert Festival: आपने हॉर्स पॉलो या साईकिल पॉलो तो सुना है, लेकिन क्या आपने ऊंट पोलो सुना है? आप सोच रहे होंगे कि पोलो में ऊंट का क्या काम. लेकिन ऐसा नही है. जैसलमेर से ईजाद हुए कैमल पोलो को आज विश्व स्तर पर एक नई पहचान मिली है और यह ऊंट अब खेल जगह में इतिहास रच रहा है.
रेगिस्तान का जहाज ऊंट, जिसे आपने राजस्थान के मरुस्थल ,दिल्ली राजपथ की परेड या फिर राजस्थान के किसी टूरिस्ट पॉइंट और मेलों की शोभायात्रा की शाना बढ़ाते हुए देखा होगा. लेकिन क्या आपने इस पर बैठकर खिलाड़ी को कभी पोलो खेलते देखा है. आइए आपको ले चलते है जैसलमेर. कैमल पॉलो के ईजाद से लेकर दुनियाभर में पहचान मिलने तक करीब 36 साल के सफर की कहानी से रूबरू करवाते है. जिसकी शुरु आत हुई थी पहले मरू महोत्सव 1988 से है.
1988 में पहली बार डेजर्ट फेस्टिवल का आयोजन हुआ
कैमल पोलो की शुरुआत 1987 में जैसलमेर में हुई थी. इस खेल की ईजाद 27 साल के एक युवा जितेंद्र सिंह राठौड़ ने की, जिन्हें आज जैसलमेर सहित राजस्थान भर में लोग जीतू बन्ना के नाम से जानते है. मूलतः राठौड़ नागौर जिले के चिन्दालिया गांव के रहने वाले थे और 1985 में जैसलमेर आकर अपने बहनोई मेघराज सिंह के साथ उन्होंने किराए पर जगह लेकर होटल और रेस्टोरेंट शुरु किया.
जर्मनी से स्कोरसीप पर में होटल मैनेजमेंट का कोर्स पूरा करने के बाद जॉब मिला तो गांव गए और मां ने कहा जो भी करना है देश में ही रह कर करना है. इस तरह जैसलमेर आए और पर्यटन व्यवसाय में ऊंट सफारी करवाते करवाते ऊंटों से दोस्ती हो गई और कैमल पॉलो का ईजाद कर डाला. 1988 में पहली बार डेजर्ट फेस्टिवल का आयोजन हुआ और वहां यह खेल सबके सामने आया.

कैमल पोलो के ईजादकर्ता जितेन्द्र सिंह राठौड़ उर्फ़ जीतू बन्ना
ऊंट पोलो संघ भी बनाया
जैसलमेर में 1987 से शुरु हुआ कैमल पोलो का सफर आज भी लगातार जारी है. यह चंद खिलाड़ियों से शुरु हुआ खेल अब राज्य और केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त खेल बन चुका है. इस खेल के माध्यम से ऊंटों का संरक्षण भी होने लगा है. इसके फाउंडर जितेंद्र राठौड़ व कुछ खिलाड़ियों ने भारतीय ऊंट पोलो संघ भी बनाया जो कई जगहों पर मैच खेल चुका है.