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Analysis: राजस्थान में CM भजनलाल को अपनों का नहीं मिला साथ, कांग्रेस में डोटासरा-पायलट का चला जादू

Analysis: राजस्थान में कांग्रेस का 10 साल का सूखा खत्म हो गया. गठबधंन की 11 सीटों के साथ कमबैक किया है. कांग्रेस को राजस्थान में 8 सीटें मिली जबकि, 3 सीटें गठबंधन जीती. भाजपा 25 सीट से 14 पर सिमटकर रह गई है. आइए आपको इसकी वजह बताते हैं.  

Analysis: राजस्थान में CM भजनलाल को अपनों का नहीं मिला साथ, कांग्रेस में डोटासरा-पायलट का चला जादू
राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा और कांग्रेस नेता सचिन पायलट.

Analysis: कांग्रेस की बड़ी जीत की वजह से गठबंधन की रणनीति भी रही. कांग्रेस ने इस बार बड़ा दिल दिखाते हुए जिन तीन सीटों पर गठबंधन किया, वहां परिणाम जीत के रूप में मिला.  

गठबधंन करना कांग्रेस के लिए बड़ा फायदेमंद रहा 

शेखावाटी की अहम सीट सीकर जहां, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष खुद आते हैं. इस सीट को माकपा के अमरराम के लिए छोड़ दी. वहीं आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल को नागौर और आदिवासी बेल्ट की सीट बांसवाड़ा में BAP पार्टी के राजकुमार रौत के साथ गठबंधन करना कांग्रेस के लिए बड़ा फ़ायदेमंद रहा है. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की मेहनत सही टिकट वितरण और सभी मुद्दों के साथ चुनाव लड़ना भी जीत की बड़ी वजह बना है.  

कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों के साथ लड़ा चुनाव 

इस चुनाव की सबसे बड़ी बात रही कि कांग्रेस ने राजस्थान में स्थानीय लीडरशिप के सहारे स्थानीय मुद्दों के साथ चुनाव लड़ा. जबकि, भाजपा मोदी के चेहरे और राष्ट्रीय मुद्दों के भरोसे चुनाव प्रचार करती रही.  

राजस्थान में CM भजनलाल शर्मा अकेले कोशिश करते रहे

राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अकेले कोशिश करते रहे. लेकिन, बाकी नेताओं का साथ उन्हें उस तौर पर नहीं मिल पाया, जिसकी दरकार थी. भाजपा के प्रदेश प्रभारी का पद ख़ाली होना और संगठन में बिखराव भी बड़े कारण रहे. पूर्वी राजस्थान के क़द्दावर नेता किरोड़ी लाल मीणा को मज़बूत पोर्टफोलियो नहीं मिलने की नाराज़गी का असर पूर्वी राजस्थान में दिखाई दिया.  

वसुंधरा राजे की खामोशी पड़ा भारी 

वसुंधरा राजे की खामोशी भी इस बार चुनाव में पार्टी पर भारी पड़ी है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष CP जोशी, दिग्गज नेता गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल अपने-अपने चुनावों में व्यस्तत रहे. पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ जिस तरह से चूरू के चुनाव में उलझे वो भी एक बड़ा फैक्टर रहा. 

कांग्रेस जातीय समीकरण साधने में रही कामयाब 

दूसरी ओर इस चुनाव में कांग्रेस जातीय समीकरणों को भी साधने में कामयाबी रही. खास तौर पर SC, ST और जाट वोट इस बार पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहा. कांग्रेस गठबंधन में जीतकर आने वाले सांसदों में पांच जाट और अन्य SC-ST वर्ग से आते हैं. 

जाट भाजपा के खिलाफ लामबंद 

चूरू लोक सभासीट पर राहुल कस्वां का टिकट कटने के बाद राजपूत नेता राजेंद्र राठौड़ की पैरवी पर जिस तरह से देवेंद्र झाझड़िया को टिकट दिया गया. उस घटनाक्रम ने भी जाट वोट बैंक को भाजपा के ख़िलाफ़ लामबंद करने की दिशा में बड़ा रोल अदा किया.  इसी तरह से कांग्रेस ने अपने चुनाव में इस बार आरक्षण ख़त्म करने का मुद्दा SCST वर्ग तक पहुंचाने में कामयाब हासिल की और उसका असर परिणामों से साफ़ तौर पर दिखाई दिया. 

डोटासरा की सक्रियता का मिला फायदा  

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की सक्रियता और आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति भी कामयाब रही. इसका असर शेखावाटी की तीनों सीटों पर दिखाई दिया. यही वजह रही कि भाजपा ने जैसे ही शेखावाटी की चूरू सीट पर राहुल कस्वां का टिकट काटा. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने उन्हें कांग्रेस में लाने और टिकट दिलाने में बड़ी भूमिका अदा की. इस सीट पर बने माहौल का फ़ायदा कांग्रेस को अन्य सीटों पर भी मिला.  

शेखावाटी के साथ साथ पूर्वी राजस्थान ने भी कांग्रेस का साथ

पूर्वी राजस्थान को कांग्रेस के पक्ष में लाने में सचिन पायलट की बड़ी भूमिका रही. 8 सांसदों में पांच को सचिन पायलट ने ना केवल टिकट दिलाई बल्कि, उनके लिए जमकर चुनाव प्रचार भी किया. ख़ासतौर पर श्रीगंगानगर से इंदौरा, टोंक सवाई माधोपुर से हरीश मीणा, दौसा से मुरारीलाल मीणा भरतपुर से संजना जाटव और बृजेन्द्र ओला की जीत पायलट खेमे की जीत मानी जा रही है.  

अशोक गहलोत का जालोर-सिरोही सीट पर रहा फोकस 

कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान सभी सीटों पर चुनाव प्रचार किया लेकिन उनका बड़ा फ़ोकस जालोर सिरोही की सीट पर रहा.  गहलोत जालौर सिरोही की सीट बड़े अंतर से हार गए और अपने गृह ज़िले जोधपुर में भी वे कांग्रेस को जीत दिलाने में नाकाम रहे अशोक गहलोत के खाते में इस बार अमेठी इस सीट की जीत दर्ज की जा सकती है जहाँ के बाद वे सीनियर ऑब्ज़र्वर थे और राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ उन्होंने वहाँ चुनाव प्रचार किया.  लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद अब सवाल ये है कि इसका असर राजस्थान भाजपा और कांग्रेस की सियासत पर कितना और किस तौर पर होगा ये समझने के लिए राजस्थान की सियासत के क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को भी समझना होगा.  

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