
Jodhpur News: भारत को विश्व में एक कृषि प्रधान देश के रूप में भी पहचाना जाता है जहां आधुनिकता के दौर में हर क्षेत्र में तेज गति से आधुनिकीकरण हो रहा है. इसमें देश की कई भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भी तीव्र गति से कार्य कर रहे हैं. इसी बीच कृषि के क्षेत्र में भी अब किसानों के लिए जोधपुर में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) द्वारा "जोधपुर और झुंझुनू में बाजरा फसल पैटर्न, उत्पादकता, खपत और किसानों की आय" पर एक ज्ञानवर्धक कार्यशाला का आयोजन किया गया. यह कार्यशाला अरना झरना में थार रेगिस्तान संग्रहालय राजस्थान, मोकलावास में आयोजित हुई. यह पहल भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR - Indian Council of Social Science Research) द्वारा प्रायोजित अल्पकालिक अनुभवजन्य अनुसंधान परियोजना 2023-24 के तहत आयोजित की गई थी. इस कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं ने भाग लिया जिन्होंने बाजरा की खेती के विभिन्न पहलुओं और राजस्थान के सामाजिक-आर्थिक योगदान पर अपनी बात रखी.
बाजरे की फसल पर हुई रिसर्च
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR - Indian Council of Social Science Research) द्वारा प्रायोजित कार्यशाला का उद्देश्य विशेष रूप से जोधपुर और झुंझुनू जिलों में बाजरा फसल के पैटर्न, उत्पादकता, खपत और किसानों की आय की गतिशीलता का पता लगाना था. इसमें किसानों, वैज्ञानिकों, छात्रों और उद्यमियों को शामिल करने वाली प्रस्तुतियों और परस्पर संवादात्मक सत्रों के माध्यम से अनुसंधान निष्कर्षों, सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक ज्ञान को साझा करने का प्रयास किया गया. कुलदीप कोठारी जैसे वक्ताओं ने बाजरा के सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला. जबकि डॉ. विकास खंडेलवाल जैसे विशेषज्ञों ने खेती की तकनीकों और संबंधित लाभों पर चर्चा की. चर्चा में बाजरा की खपत में गिरावट, संभावित समाधान, मिट्टी परीक्षण के लाभ और किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे विषय शामिल थे,जो बाजरा खेती की व्यापक समझ प्रदान करते हैं.

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इस महत्वपूर्ण कार्यशाला का उद्देश्य बाजरा उत्पादन और उपभोग में मिट्टी की उर्वरता, सांस्कृतिक विरासत, रोजगार, शिक्षा और जागरूकता के महत्व पर जोर देते हुए भविष्य के अनुसंधान को प्रेरित करना है. ग्रामीण राजस्थान में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन रूपायन संस्थान के सचिव कुलदीप कोठारी ने राजस्थान के मूल निवासियों के लिए बाजरा के महत्व का संक्षिप्त परिचय दिया. कार्यक्रम के प्रमुख आकर्षणों में से एक लंगा वंशानुगत समुदाय था, जिसने बाजरा पर एक संगीतमय प्रस्तुति दी. कृषि जीवन शैली की झलकियां पेश की गईं कि कैसे राजस्थान के लोग बाजरा को देखते हैं.
राजस्थान में बाजरे की खेती
विशेषज्ञ के रूप में आए डॉ. भागीरथ चौधरी ने बाजरा की खेती के इतिहास पर बात करते हुए बाजरा फसलों में भविष्य के अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए सुझाव दिए. वहीं डॉ. विकास खंडेलवाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर ने राजस्थान और सांस्कृतिक परिवेश में बाजरा के सर्वोपरि महत्व पर प्रकाश डाला, इसकी कम पानी और उर्वरक आवश्यकताओं और पश्चिमी राजस्थान में बाजरा की खेती के विशाल विस्तार पर जोर दिया.
काजरी (CAZRI - Central Arid Zone Research Institute) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीएल मंजूनाथ ने कृषि पर सिंचाई के परिवर्तनकारी प्रभाव के साथ-साथ पशुधन और फसलों की परस्पर निर्भरता को रेखांकित किया. डॉ. मिथिलेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर ने खाद्य विविधीकरण और उद्यमिता पहल की वकालत करते हुए लघु बाजरा पर केंद्रित चल रहे अनुसंधान प्रयासों पर बात रखते हुए बताया कि उद्यमियों को बाजरा के क्षेत्र में संभावित अवसरों का पता लगाना चाहिए. क्योंकि दुनिया बाजरा मूल्यवर्धित उत्पादों के बारे में अधिक जागरूक हो रही है.
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