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मृत शरीर के दान में भी जोधपुर है अब अव्वल, भावी डॉक्टर्स को इससे मिल रही मदद!

सर्वाधिक मृत शरीर का दान यानी 'देहदान' देने में भी जोधपुर रिकॉर्ड बना रहा हैं. अब तक करीब 2 हजार के करीब लोगों ने देहदान करने का संकल्प लिया है.

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मृत शरीर के दान में भी जोधपुर है अब अव्वल, भावी डॉक्टर्स को इससे मिल रही मदद!
डॉ. संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज

Jodhpur News: राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में पहचाने जाने वाला जोधपुर अब दानवीरों की नगरी के रूप में भी उभर रहा है. जहां बात करें हाल ही में अयोध्या में बने भव्य रामलल्ला के मंदिर में सबसे पहले एक करोड़ रुपए का दान देने की हो या रामलल्ला की पहली आरती के लिए 600 किलो शुद्ध देशी घी दान देने की हो, जहां अपने आप में विश्व में भी दानवीरों की नगरी के रूप में अपना एक अलग स्थान बना रहा है. वहीं, अब जोधपुर में सर्वाधिक मृत शरीर का दान यानी 'देहदान' देने में भी जोधपुर रिकॉर्ड बना रहा हैं. जोधपुर के डॉ. संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में प्रदेश में सर्वाधिक देहदान हो रहा है. 

मेडिकल कॉलेज को मिलने वाली मृत शरीर की देह से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भावी चिकित्सकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण के रूप में पढ़ने के लिए उपयोग में ली जाती है. वहीं प्रदेश के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेज में अगर व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए कोई देह नहीं है, तो जोधपुर के इसी मेडिकल कॉलेज से व्यक्ति की दान की हुई देह उस मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध भी करवाई जाती है. वहीं अस्पताल प्रशासन की ओर से भी देहदान के प्रति जागरूकता के लिए समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है.

अब तक करीब 2 हजार लोगों ने लिया देहदान का संकल्प

एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए डॉ.एस.एन मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग की विभागाध्यक्ष व वरिष्ठ चिकित्सक डॉ सुषमा कटारिया ने बताया कि अब तक हमारे इस मेडिकल कॉलेज में कुल 211 के करीब देहदान हो चुके हैं. वहीं मात्र इसी वर्ष 2 माह के भीतर ही करीब 9 देहदान मेडिकल कॉलेज को मिल चुकी है. अब तक करीब 2 हजार के करीब लोगों ने देहदान करने का संकल्प लिया है. जिससे सीधे तौर पर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र व भावी डॉक्टरों को इसका बड़ा लाभ मिल रहा है. इसके साथ ही समाज को भी इसका लाभ मिलेगा क्योंकि दान की गई बॉडी पर रिसर्च करके उन्हें पढ़कर अंडर-ग्रैजुएट( UG) और पोस्ट-ग्रेजुएट (PG) के बच्चे और सर्जन (शल्य चिकित्सक) ट्रेनिंग लेंगे जिससे अल्टरनेटली समाज को भी इसका फायदा मिलता है और हम उत्साहित भी हैं कि लोगों देहदान करने के प्रति काफी अवेयरनेस भी आ गया है. 

डॉ सुषमा कटारिया ने बताया कि इससे पूर्व में भी हमने अब तक देहदान करने वाले सभी लोगों के परिवार के सदस्य को भी मेडिकल कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें सम्मानित भी किया. जबकि अन्य लोगों से भी देहदान के प्रति जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम भी आयोजित किए. जिससे प्रेरित होकर अब तक कही लोगों ने देहदान का संकल्प भी लिया है और अन्य कहीं समझ कार्यक्रमों भी कि अगर मैं सम्मिलित होती हूं तो वहां भी मैं जागरूकता को लेकर आमजन से अपील भी करती हूं.

आनंद प्रकाश आर्य ने किया था सबसे पहला देह दान

एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए एनाटॉमी विभाग की विभाग का अध्यक्ष डॉ. सुषमा कटारिया ने बताया सबसे पहले वर्ष 2004 में हमारे इस मेडिकल कॉलेज में गोविंद आर्य की बॉडी देहदान के रूप में मेडिकल कॉलेज को दी गई थी. सबसे पहले गोविंद आर्य के पुत्र आनंद प्रकाश आर्य ने यह पहल करते हुए मेडिकल कॉलेज को बॉडी दान की थी जो इस मेडिकल कॉलेज का अब तक का पहला देहदान था.उसके बाद निरंतर या क्रम जारी रहा जहां प्रतिवर्ष करीब 30 से 35 बॉडी मेडिकल कॉलेज को मिल जाती है हालांकि कोरोना काल में 2 वर्ष तक देहदान नहीं हो पाया क्योंकि उसे समय की परिस्थितियों भी अनुकूल नहीं थी लेकिन कुछ ऑनलाइन क्लासेस और कुछ पूर्व में पड़ी बॉडी से विद्यार्थियों को पढ़ाई करवाई गई थी लेकिन कह सकते जनता का पूरा सहयोग मेडिकल कॉलेज को मिल रहा है.

वही अपने परिचित की देह दान करने मेडिकल कॉलेज आए ग्रामीण बाहुल्य क्षेत्र के सुनील ने बताया कि उनके परिचित जो कबीर पंथी संत थे. जिन्होंने अपने जीवन काल में हमेशा उपकार के कार्य किए जहां वह नशे के बिलकुल खिलाफ थे. समाज में फैली कुरीतियों के भी हमेशा खिलाफ रहे थे. उन्होंने  जीवित रहते कई उपकार के कार्य किये और वह हमेशा कहते थे कि जिस प्रकार से मृत पशु की चमड़ी से वाद्य यंत्रों जैसा की ढोलक, तबला या अन्य वाद्य यंत्रों को बनाने में उपयोग में लिया जा सकता है. तो मैंने स्वयं अगर मनुष्य योनि में जन्म लिया है तो मेरा शरीर भी तो किसी के उपयोग के लिए आना चाहिए. जहां उनकी यही प्रेरणा थी कि उनकी अंतिम सांस निकालने के बाद उनके शरीर को मेडिकल कॉलेज में अध्ययन के लिए दान किया जाए. जहां इसी कड़ी में आज जोधपुर के डॉ. संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज में उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए उनके परिवार के निर्णय के आधार पर उनकी देह को दान किया गया.

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