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जलझुलनी एकादशी पर खाटूश्‍यामजी जाने वाले भक्‍त जरूर पढ़ें खबर, जानें क्या होगा खास

खाटूश्‍यामजी में बुधवार को जलझुलनी एकादशी मनाई जाएगी. भक्‍तों के ल‍िए व‍िशेष इंतजाम क‍िए गए हैं. श्रीश्याम मंदिर कमेटी सभी मंदिरों में पोशाक भेजेगी.

जलझुलनी एकादशी पर खाटूश्‍यामजी जाने वाले भक्‍त जरूर पढ़ें खबर, जानें क्या होगा खास
बाबा खाटूश्यामजी.

खाटूश्यामजी सहित देश भर में जलझुलनी एकादशी बुधवार को मनाई जाएगी, जिसकी तैयारियां श्रीश्याम मंदिर कमेटी ने शुरू कर दी है. प्रशासन का अनुमान है क‍ि लगभग 2 से 3 लाख श्याम भक्त जलझूलनी एकादशी पर खाटू धाम पहुंचेंगे, और अपने आराध्य बाबा श्याम के दर्शन करेंगे. जलझूलनी एकादशी से पहले आज श्रीश्याम मंदिर कमेटी खाटू सहित क्षेत्र के आसपास के सभी मंदिरों में भगवान के पोशाक बदलने के लिए पोशाक भेजी जाएगी.

नई पोशाक भेजी जाएगी 

श्रीश्याम मंदिर कमेटी जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर पहले प्रसाद सभी मंदिरों में भिजवाती है. जलझुलनी एकादशी पर भगवान की नई पोशाक भेजी जाएगी. माना जाता है कि भगवान को यही पोशाक धारण करवाई जाती है. श्रीश्याम मंदिर कमेटी द्वारा पोशाक भिजवाने की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसके पीछे यही मान्यता है कि जो कस्बे का मुख्य धार्मिक स्थल होता है या मुख्य मंदिर होता है, उसी मंदिर के द्वारा ही अन्य मंदिरों में पोशाक के भेजी जाती है.

नई पोशाक भेजना परंपरा 

ऐसा माना जाता है कि पहले यह परंपरा राजा महाराजाओं के द्वारा निभाई जाती थी. पुजारी लोग मंदिरों में भगवान को पोशाक धारण करवाते थे, अब आज के समय में खाटू नरेश बाबा श्याम ही राजा हैं, तो ऐसे में श्रीश्याम मंदिर कमेटी के द्वारा यह पोशाकें सभी मंदिरों में भिजवाई जाती है.

जलझूलनी एकादशी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट लेते हैं. समस्त पापों का नाश करती है, और मोक्ष प्रदान करते हैं. इसे परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी और वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है 

जलझुलनी एकादशी का व्रत करने से यज्ञ के समान पुण्य मिलता है, जिससे मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है, और वह सीधा भगवान विष्णु के परम लोक बैकुंठ में स्थान पाता है. प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जलझुलनी एकादशी पर सभी शहर गांवों के आराध्य माने जाने वाले गोपीनाथ राजा भगवान जल विहार करने के लिए मंदिरों से बाहर निकलेंगे, और गाजे बाजे के साथ भगवान जल विहार करते हैं. और नई पोशाक धारण कर वापस मंदिर में विराजते हैं.

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