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Mandal Nahar Dance Festival: 410 साल से जारी है शहंशाह और बेगम की सवारी, बादशाह को खुश करने के लिए शुरू हुआ था उत्सव

साल 1614 में  मांडल में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने उदयपुर जाते समय मुग़ल बादशाह शाहजहा के मांडल में पड़ाव के दोरान उनके मनोरंजन के लिए शुरू किये गए नृत्य की विरासत को आज भी संभाले हुए है. यह नृत्य साल में एक बार होता है.

Mandal Nahar Dance Festival: 410 साल से जारी है शहंशाह और बेगम की सवारी, बादशाह को खुश करने के लिए शुरू हुआ था उत्सव
निकली शाहजहां की सवारी

Bhilwara News: कभी दिल्ली के बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए भीलवाडा के मांडल कस्बे के ग्रामीणों ने नाहर नृत्य और बादशाह बेगम की सवारी निकाली थी. समय बदल गया हालत बदल गए, मगर मेवाड़ अंचल की सांस्कृतिक विरासत को ग्रामीणों ने जिंदा रखा. भीलवाड़ा के छोटे से गांव में शुरू हुआ नाहर नृत्य अब महोत्सव बन चुका है. यह एक ऐसा नृत्य है जो मुगल बादशाह शाहजहां के सामने 410 साल पहले हुआ था.आज भी अनवरत रूप से जारी इस नृत्य की खासियत यह है कि यह साल में केवल एक बार भगवान चारभुजा नाथ के मंदिर पर राम और राज के सामने ही प्रस्तुत होता है. यह भीलवाड़ा के मांडल कस्बे में  मुग़ल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए किया गया नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष रंग तेरस पर होता है.

होली 13वें दिन होने वाला उत्सव यह नाहर नृत्य अब तो मांडल का मुख्य त्यौहार बन गया है. राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल  के अध्यक्ष पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष रमेश बूलिया ने बताया कि, यह नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार का रूप है. 1614 ईस्वी में बादशाह शाहजहां के समय से चला आ रहा है.वे जब यहां से निकल रहे थे. तब उनके मनोरंजन के लिए नरसिंह अवतार के रूप में यह नाहर नृत्य किया गया था.

410 साल से नाहर नृत्य मना रहे हैं आज के दिन हमारी बहन बेटियां दामाद सभी गांव आते हैं यह भाईचारे के बहुत बड़ी मिसाल है. सुबह रंग खेलते हैं और बाद में बेगम और बादशाह की सवारी निकलती है.

रुई लपेटकर शेर का स्वांग रचते हैं लोग 

समाज सेवी दुर्गेश शर्मा का कहना है कि बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग कर यह नाहर नृत्य किया जाता है. गांव वाले पुरानी परंपरा को निभा रहे. कलाकार के रुई लपेटी जाती है सींग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है. युवा नेता महेश सोनी का कहना है कि मांडल में बरसों से समरसता रंग तेरस पर यह महोत्सव मनाया जाता है. दिनभर बिना जातिगत भेदभाव के सभी लोग मिलजुल कर होली( रंग ) खेलते हैं अभीर गुलाल के साथ. शाम को सब एक दूसरे के घर जाकर मिठाई खाते हैं. शुभकामनाएं देते हैं महिलाएं एक दिन पहले घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनती है.

भगवान या राजा के सामने ही होता है नृत्य

केवल राम और राज के सम्मुख ही पेश किया जानेवाला यह नाहर नृत्य देश में अपनी तरह का अनूठा नृत्य है. पारम्परिक वाद्य यत्रो के धुनों के बीच अपने शरीर पर रुई लपेट शेर का स्वांग रच नृत्य करते यह कलाकार.

साल 1614 में हुआ था पहली बार 

वर्ष 1614 में  मांडल में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने उदयपुर जाते समय मुग़ल बादशाह शाहजहा के मांडल में पड़ाव के दोरान उनके मनोरंजन के लिए शुरू किये गए नृत्य की विरासत को आज भी संभाले हुए है. यह नृत्य साल में एक बार होता है. बिना किसी सरकारी सहायता के 400 साल से भी पुरानी मांडल के नाहर नृत्य की इस अनूठी परंपरा को अब सहेजने की जरूरत है.

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