Mukundara Tiger Reserve: राजस्थान के झालावाड़ और कोटा जिले के बीच सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व इन दिनों बदहाली के आंसू बहा रही है. परियोजना की घोषणा लगभग 7 साल पहले हुई थी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया द्वारा इस परियोजना में गहरी रुचि दिखते हुए इसको जमीन पर उतारने की तैयारी की गई. परियोजना की घोषणा के तुरंत बाद आनन-फानन में यहां तीन बाघ रणथंभौर से लाकर छोड़े गए, जबकि एक बाघ खुद चलता हुआ यहां आ पहुंचा.
एक समय में 6 तक हो गई थी बाघों की संख्या
कुछ दिनों बाद बाघों के एक जोड़े ने दो शावकों को जन्म दिया, इस प्रकार से देखते ही देखते यहां बाघों का कुनबा बढ़कर की 6 की संख्या तक जा पहुंचा. लेकिन अब मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व ने बाघों के रहने लायक बचा है ना ही इंसानों के रहने लायक.
एक्सपर्ट बोले- सरकार की जल्दबाजी से बदहाली के आलम
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व की बदहाली के बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार ने पूरे मामले में जल्दबाजी की और बिना पूरी तैयारी के यहां बाघों को छोड़ दिया. जबकि परियोजना के सबसे संपन्न क्षेत्र दरा के घाटी गांव से लेकर मशालपुरा गांव तक लोगों का विस्थापन नहीं हो पाया था, यहां लोग आज भी रह रहे हैं.
बाघों की बसावट लोगों को नहीं आई पसंद
लोगों का कहना है कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघों की मौजूदगी मनुष्यों को रास नहीं आई तथा दोनों एक दूसरे के लिए खतरा बनते रहे और अंत में चार बाघ मौत के मुंह में समा गए, जबकि दो बाघों को रेस्क्यू करके यहां क्यों करके यहां से ले जाया गया. जिसमें से भी एक बाघिन की बाद में मौत हो गई.
मुआवजा कम होने की बात कह लोग नहीं हट रहे
अब यहां बार-बार बाघ छोड़े जाने की बात उठती आई है, लेकिन हालात आज भी नहीं बदले हैं. परियोजना क्षेत्र में आज भी काफी लोग निवास कर रहे हैं, जो मुआवजा कम होने की बात कह कर यहां से निकलना नहीं चाहते. अधिकांश लोग इलाका छोड़कर जा चुके हैं लेकिन जो लोग यहां पर रह रहे हैं उनका साफ तौर पर कहना है कि जो मुआवजा सरकार द्वारा उनको दिया जा रहा है वह पर्याप्त नहीं है.
स्थानीय लोग स्पेशल पैकेज की कर रहे मांग
लोग कहते हैं कि उनकी जमीनें यहां पर बहुत ज्यादा है, ऐसे में मुआवजा राशि उनके लिए कम पड़ रही है. वह स्पेशल पैकेज की मांग करते हैं या सरकार से मुआवजा बड़ा कर दिए जाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन पूरे मामले के चलते परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है और हालात ऐसे हो गए हैं कि ना तो यह इलाका बाघों के काम आ रहा है ना ही इंसानों के.
बस्तियां तो उजड़ गई लेकिन बाघ नहीं बस पाए
बस्तियां उजड़ गई है लेकिन बाघ भी नहीं बस पाए हैं. पूरे मामले को लेकर हमने गहरी पड़ताल की ओर मौके पर जाकर ग्रामीणों से बातचीत की, और उनकी समस्याओं को जाना. साथ ही जिला कलेक्टर से भी मामले में जानकारी ली.
जिला कलेक्टर ने बताया- लोगों की हो रही समझाइस
जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बताया कि मशालपुरा में जो लोग फिलहाल रह रहे हैं उनसे कैंप के दौरान बातचीत की गई तथा उनकी समझाइश की जा रही है. उन्होंने बताया कि आगे भी कैंप लगाकर लोगों को समझाया जाएगा तथा उन लोगों की मांगों से भी सरकार को अवगत करवाया जा रहा है. कलेक्टर ने कहा कि परियोजना क्षेत्र से किसी को जबरन नहीं निकाला जा सकता, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन कार्रवाई कर रहा है.
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