Nagaur Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव से ठीक चार माह पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा की सत्ता में वापसी ने कई समीकरण बदल दिए हैं. इस जीत से जहां भाजपा एक बार फिर फ्रंट फुट पर है तो वहीं करारी हार से कांग्रेस दोबारा बैकफुट पर चली गई है. इससे जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास डगमगाया है, वहीं निराशाजनक प्रदर्शन से उसकी चिंताएं भी बढ़ गई हैं. दूसरी ओर इसका असर अब अगले लोकसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है. माना जाता है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल होता है और यहीं से फाइनल की तैयारी शुरू होती है.
अगर बात करें नागौर लोकसभा सीट की तो नागौर में भाजपा और कांग्रेस दोनों की राह आसान नहीं है. क्योंकि यहां सबसे बड़ा फैक्टर जाट केंद्रित राजनीति है, जिसे साधकर ही नागौर को जीता जा सकता है. ऐतिहासिक तौर पर नागौर लोकसभा सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस की सीट रही है. हालांकि पिछले दो चुनाव में भाजपा ने इस परंपरा को बदल दिया था. 2014 में प्रचंड मोदी लहर में भाजपा ने नागौर लोकसभा सीट को जीतकर इतिहास रचा था, लेकिन इसके बाद 2019 के चुनाव में भाजपा ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल से गठबंधन कर नागौर सीट जीती थी. हालांकि हनुमान बेनीवाल ने यह गठबंधन तोड़ दिया और वे भाजपा से अलग हो गए हैं. ऐसे में अबकी बार भाजपा किस रणनीति के तहत उतरेगी यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.
कांग्रेस को 10 तो भाजपा को 4 बार मिली जीत
नागौर लोकसभा सीट पर भाजपा ने जीत के लिए बार-बार प्रयोग किए हैं. इसके बावजूद भाजपा को 1997 के उपचुनाव, 2004 और 2014 के चुनाव में ही जीत मिली. वहीं पिछले चुनाव में भाजपा और आरएलपी गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल यहां से चुनाव जीते थे. जबकि कांग्रेस यहां से 10 बार जीत दर्ज कर चुकी है.
जाट राजनीति के केंद्र है नागौर
बताया जाता है कि नागौर परंपरागत रूप से जाट राजनीति का प्रमुख गढ़ माना जाता है. नागौर के जातिगत समीकरण पर गौर करें तो नागौर में जाट सर्वाधिक हैं. उसके बाद मुस्लिम मतदाताओं की तादाद है. इसके अलावा राजपूत, एससी और मूल ओबीसी के मतदाता भी अच्छी खासी तादाद में हैं.
मिर्धा परिवार का रहा है दबदबा
नागौर लोकसभा सीट पर मिर्धा परिवार का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है. नाथूराम मिर्धा परिवार जाट समुदाय से ताल्लुक रखता हैं, जिसका जाट समाज में बड़ा दबदबा माना जाता है. नागौर से सर्वाधिक बार सांसद बनने का रिकॉर्ड पूर्व केंद्रीय मंत्री और किसान नेता नाथूराम मिर्धा के नाम है, जिन्होंने नागौर से छह बार जीत दर्ज की थी.
2004 के चुनाव में पहली बार जीती भाजपा
भाजपा ने भी जाट राजनीति को साधने के लिए और मिर्धाओं के गढ़ को भेदने के लिए जाटों को प्रत्याशी बनाया था. भाजपा ने पहली बार 1991 में सुशील कुमार चौधरी को उम्मीदवार बनाया. इसके बाद 1998 में डेगाना के विधायक रहे रिछपाल मिर्धा को भी चुनाव लड़ाया. लेकिन वे चुनाव नहीं जीत सके. इसके बाद भाजपा ने फिर से विधायक भंवरसिंह डांगावास पर दांव खेला. इस दफा भाजपा को सफलता मिली और डांगावास 2004 में नागौर में कमल खिलाने में कामयाब रहे.
हनुमान बेनीवाल 2014 में लड़े थे निर्दलीय चुनाव
इसके बाद कांग्रेस ने फिर से मिर्धा परिवार पर दांव खेला और नाथूराम मिर्धा की पोती डॉ. ज्योति मिर्धा को उम्मीदवार बनाया. हालांकि भाजपा ने भी इसके जवाब में पूर्व सांसद रामरघुनाथ चौधरी की बेटी बिंदु चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2014 में प्रचंड मोदी लहर का भाजपा को लाभ मिला. भाजपा ने जाट वोटों के ध्रुवीकरण के लिए आईएएस अधिकारी रहे सीआर चौधरी को चुनाव लड़ाया, जो मोदी लहर में जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. इसके पीछे एक कारण यह भी रहा कि इस चुनाव में हनुमान बेनीवाल निर्दलीय रूप से चुनावी मैदान में उतरे. जबकि ज्योति मिर्धा कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में थी. हनुमान बेनीवाल के निर्दलीय उतरने से जाट वोटों का बंटवारा हो गया, जिसका भाजपा को सीधा लाभ पहुंचा.
मिर्धा परिवार पर दोनो पार्टियां खेलती हैं दांव
1997 में भाजपा ने पहली बार प्रयोग किया और मिर्धा परिवार के भानुप्रताप मिर्धा को अपने पाले में लेकर उन्हें चुनाव लड़ाया. जिससे पहली बार नागौर में भाजपा को जीत मिली. इस बार के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा भाजपा में शामिल हो गई, जिन्हें भाजपा ने नागौर विधानसभा का प्रत्याशी बनाया था. हालांकि वे चुनाव नहीं जीत सकी उन्हें उन्हीं के चाचा कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा हरा दिया.
2024 में भाजपा-कांग्रेस के इन दिग्गजों के नाम चर्चा में
इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ज्योति मिर्धा को अपना प्रत्याशी बना सकती है. इसके अलावा पूर्व सांसद सी. आर. चौधरी और भागीरथ चौधरी के नाम भी चर्चाओं में हैं. दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदार के तौर पर डीडवाना के पूर्व विधायक चेतन डूडी, रिछपाल सिंह मिर्धा, महेंद्र चौधरी, पूर्व जिला प्रमुख सुनीता चौधरी तथा मकराना विधायक जाकिर हुसैन गैसावत के नाम चर्चाओं में हैं.
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