Rajasthan News: राजस्थान का कोटा देश भर में शिक्षा नगरी के नाम से मशहूर है. लेकिन कोटा के सरकारी स्कूल दीपक तले अंधेरा की कहावत का जीता-जागता उदाहरण हैं जिनका हाल बदहाल है. इस डिजिटल युग में शहरों से लेकर गांवों में शिक्षा के स्तर लगातार ऊपर जा रहा है. लेकिन शिक्षा नगरी में अच्छी शिक्षा तो बहुत दूर की बात है, स्टूडेंट्स को जरूरी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं. बल्कि, बच्चों की जान को जोखिम में डालकर पढ़ाया जा रहा है. कहीं कोई स्कूल जर्जर इमारत में चल रहा है, तो कहीं नगर निगम के सामुदायिक भवन के एक ही कमरे में कक्षा 1 से 5 यानी पांच कक्षाओं की क्लास चल रही है. ऐसे ही कहीं कोटा विकास प्राधिकरण की कियोस्क में ही स्कूल का संचालन हो रहा है.
जमीन पर बैठ हो रही पढ़ाई
कोटा के सूरसागर क्षेत्र में स्थित प्राथमिक स्कूल को पिछले कई सालों से नगर निगम के सामुदायिक भवन के एक कमरे में चलाया जा रहा है. यहां कक्षा 1 से 5 तक के बच्चे एक ही कमरे में जमीन पर बैठकर शिक्षा हासिल करने आ रहे हैं.
विद्यालय की अध्यापिका अंकिता पारेता बताती हैं," स्कूल में फर्नीचर की तो बात छोड़िए यहां एक ही कमरे में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवानी होती है. स्कूल में हम दो ही टीचर हैं. हममें से एक बच्चों को चुप करवाती हैं और दूसरी पढ़ाई करवाती हैं.
दो विभागों के बीच अटका विकास
अध्यापिका ने आगे बताया कि सामुदायिक भवन जिसमें स्कूल संचालित किया जा रहा है, वह नगर निगम के अधीन है. लेकिन नगर निगम को भवन से कोई आमदनी नहीं होती है, इसलिए वह यहां कोई विकास कार्य भी नहीं करवा रहा है.
उन्होंने कहा,"शिक्षा विभाग स्कूल को दूसरे स्कूल में विलय करने के प्रयास कर रहा है, लेकिन यहां आस-पास कोई विद्यालय नहीं है. जो प्राथमिक विद्यालय है वह सड़क के दूसरी ओर है और छोटे बच्चे सड़क पार करके स्कूल नहीं जा सकते हैं. ऐसे में अभिभावक दुर्घटना होने के डर से बच्चों को दूसरे स्कूल में नहीं भेजेंगे."
खेल-कूद सुविधाओं से वंचित छात्र
अंकिता पारेता ने बताया कि स्कूल में करीब 60 बच्चे हैं. बच्चों को स्कूल में दिए जाने वाले पोषाहार के वितरण के लिए 1 घंटे का लंच रखा जाता है. लेकिन इसमें दो पारी में बच्चों को पोषाहार वितरण किया जाता है, क्योंकि यहां जगह की बहुत कमी है. वहीं खेल सुविधाओं जैसी अन्य सुविधाएं स्कूल में नहीं होने से बच्चों को उन सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है.
मंदिर और किराये के कमरे में भी चला स्कूल
यह विद्यालय साल 2001 से संचालित किया जा रहा है. जर्जर इमारत होने के चलते यहां ड्यूटी पर तैनात अध्यापकों ने कुछ समय स्कूल को मंदिर परिसर में भी चलाया. इसके बाद उन्होंने किराये का कमरा लेकर उसमें स्कूल का संचालन किया. इसके बाद अब सामुदायिक भवन के कमरे में साल 2018 से बच्चों को जमीन पर बैठाकर पढ़ाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें- कोटा में पैदा हुई खतरनाक स्थिति, फीस कम करने के बाद भी कोचिंग में 35 प्रतिशत गिरी स्टूडेंट की तादाद