
Rajasthan Politics: भाजपा नेता और राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रह चुके ज्ञानदेव आहूजा एक बार फिर चर्चा में हैं. सोमवार को अलवर के श्रीराम मंदिर में उन्होंने यह कहते हुए गंगाजल छिड़का कि यहां कांग्रेस के नेता टीकाराम जूली आए थे. आहूजा का कहना था कि मंदिर 'अपवित्र' हो गया और अब वो उसे 'पवित्र' कर रहे हैं. ज्ञानदेव आहूजा के इस कृत्य को 'दलित विरोधी' बताते हुए कांग्रेस ने इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया. वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने भी अपने आपको इस बयान से अलग कर लिया.
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 'एक्स' पर लिखा, ''भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा द्वारा नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के मंदिर जाने के बाद गंगाजल छिड़कने की घटना दलितों के प्रति भाजपा की दुर्भावना को दर्शाती है. 21वीं सदी में ऐसी संकीर्ण मानसिकता एक सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है.''
विवाद बढ़ता देख भाजपा ने उन्हें पार्टी से 3 साल के लिए निलंबित करने की घोषणा की. साथ ही उन्हें इस मामले में कारण बताओ नोटिस भी दिया है, जिसका उन्हें तीन दिनों के भीतर जवाब देना होगा.
हिंदुत्ववादी छवि वाले नेता के तौर पर पहचान
ज्ञानदेव आहूजा की पहचान एक फायरब्रांड हिंदुत्ववादी नेता की है. वो कई बार अपने बयानों से अपनी ही पार्टी को असहज कर चुके हैं. मुसलमानों की बड़ी आबादी वाले इलाके अलवर के रामगढ़ में उनके बयानों को 'ध्रुवीकरण' की कोशिश के तौर पर देखा जाता रहा है. आहूजा इस सीट से तीन बार विधायक रहे हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ दिवंगत नेता और रामगढ़ सीट से 4 बार विधायक रहे ज़ुबैर ख़ान, आहूजा के राजनीतिक प्रतिद्विद्वी रहे हैं. ज़ुबैर ख़ान और आहूजा ने रामगढ़ सीट से एक दूसरे को 3-3 बार चुनाव हराया है.
ज्ञानदेव आहूजा पहली बार वर्ष 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए थे, जब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में कथित तौर पर 'देश विरोधी नारे' लगाने को लेकर विवाद हुआ था. इस दौरान आहूजा ने JNU के बारे में कहा था कि यहां हर रोज़ 3 हज़ार कंडोम्स का इस्तेमाल होता है. उस वक़्त ज्ञान देव आहूजा के इस बयान की काफ़ी आलोचना भी हुई थी.
इतना ही नहीं, आहूजा ने JNU को नशे का अड्डा बताते हुए कहा था, ''JNU के छात्र नशे के आदी हैं और परिसर में पाए जाने वाले एल्युमीनियम फॉयल का इस्तेमाल नशा करने के लिए किया जाता है''
कथित गौरक्षकों के समर्थक
ज्ञानदेव आहूजा राजनीतिक तौर पर अलवर क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. यह इलाक़ा 'गाय की राजनीति' से प्रभावित रहा है. आहूजा मेवात के इलाके में गौकशी होने की बात करते रहे हैं और यहां 'गौरक्षकों पर कथित तौर पर गौतस्करी करने वाले लोगों की हत्या करने के आरोप लगते रहे हैं.
साल 2017 में आहूजा ने तब विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने दावा किया था कि गायों की तस्करी और गौकशी करने वालों की हत्या कर दी जाएगी. इसी तरह साल 2018 में रामगढ़ पंचायत के लालवंडी गांव में आहूजा ने कथित गौतस्कर की हत्या करने वाले गौरक्षकों की प्रशंसा की थी.
भाजपा से रह चुके हैं बाग़ी
ज्ञानदेव आहूजा काफी लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी के सदस्य रहे हैं. पार्टी ने उन्हें पहली बार 1993 में अलवर की रामगढ़ विधानसभा सीट से टिकट दिया था, लेकिन वो कांग्रेस के ज़ुबैर ख़ान से हार गए. उन्हें 1998 में फिर टिकट मिला और वो ज़ुबैर ख़ान को हरा कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे.
उसके बाद वो साल 2008 और 2013 में चुनाव जीते, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उनका टिकट काटा तो आहूजा बाग़ी हो गए. उन्होंने जयपुर की सांगानेर विधानसभा से निर्दलीय के तौर पर नामांकन कर दिया.
लेकिन, यहां भी वो विवादों से बच नहीं पाए और फॉर्म भरने से पहले उन पर पैसे बांटने के आरोप में उन पर मुक़दमा दर्ज हो गया. हालांकि बाद में उन्होंने इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार अशोक लाहोटी को समर्थन दे दिया था.
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भाजपा ने ज्ञानदेव आहूजा को निलंबित किया - देखें वीडियो