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भाया को मिला कांग्रेस के महारथियों का साथ, अंता उपचुनावों के नतीजों ने ऐसे बदल दी हाड़ौती की 'पॉवर पॉलिटिक्स'

Anta Bypoll 2025: अंता उपचुनाव के नतीजे को हाड़ौती की पॉवर पॉलिटिक्स के लिहाज से भी काफी अहम देखा जा रहा है.

भाया को मिला कांग्रेस के महारथियों का साथ, अंता उपचुनावों के नतीजों ने ऐसे बदल दी हाड़ौती की 'पॉवर पॉलिटिक्स'

Pramod jain bhaya won Anta by election 2025: राजस्थान में अंता विधानसभा उपचुनाव के नतीजे ने प्रमोद जैन भाया का प्रभाव हाड़ौती की पॉलिटिक्स में फिर से बढ़ा दिया है. उपचुनाव का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है. साथ ही इससे कांग्रेस को पंचायत और निकाय चुनावों से पहले नई ऊर्जा मिली है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि क्षेत्रीय राजनीति में इस चुनाव परिणाम का काफी महत्व है. इस पूरे चुनाव प्रचार की कमान वसुंधरा राजे ने अपने हाथ में रखी. उनकी झालावाड़ की टीम ने इस चुनाव में पूरा दमखम लगाया और जीत के लिए जोर-आजमाइश की. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और मदन राठौड़ ने भी यहां कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन यह उपचुनाव बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम हो गया था, क्योंकि पिछले 2 साल के दौरान किसी भी उपचुनाव में वसुंधरा राजे की ऐसी सक्रियता पहले नहीं देखी गई थी. राजे और उनके पुत्र दुष्यंत भी अहम भूमिका निभा रहे थे. 

गलत टिकट के चलते बीजेपी का वोट बैंक भी छिटका!

राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि यदि भाजपा पिछला चुनाव जीतने वाले कंवरपाल मीणा के परिवार या प्रमोद जैन भाया को हराने वाले प्रभुलाल सैनी में से किसी को टिकट देती तो तस्वीर अलग हो सकती थी. इसी के चलते भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक भी उससे छिटक गया. तमाम दावों के उलट, नरेश मीणा ने कांग्रेस की बजाय भाजपा के वोट बैंक में सेंध मारी की. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 53 हजार से ज्यादा वोट हासिल करके उन्होंने मोरपाल सुमन को काफी नुकसान पहुंचाया. 

बीजेपी की हार का राजनीतिक नियुक्तियों पर भी पड़ेगा असर

अब जब इस सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है तो इसका असर आने वाले समय में होने वाले मंत्रिमंडल फेरबदल, विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों पर भी होगा. क्योंकि माना जा रहा था कि इस उपचुनाव में जीत के बाद वसुंधरा राजे गुट का पलड़ा भारी रह सकता है, लेकिन कहीं ना कहीं नतीजे राजे गुट की बार्गेनिंग पावर को प्रभावित करेंगे. 

सट्टा बाजार भी गलत साबित हुआ

इस उपचुनाव ने राजनीतिक पंडितों और सट्टा बाजार को भी गलत साबित कर दिया. फलौदी का सट्टा बाजार दो दिन पहले प्रमोद भाया को तीसरे स्थान पर बता रहा था, लेकिन भारी मतदान और महिलाओं की बड़ी भागीदारी ने तस्वीर बदल दी. प्रमोद भाया पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक स्तर पर मजबूत पकड़ बना चुके हैं. गौशाला, सामूहिक विवाह सम्मेलन और धार्मिक आयोजनों में उनकी सक्रियता ने उनके लिए सामाजिक समर्थन खड़ा किया. कांग्रेस के दिग्गजों ने क्षेत्र में डेरा डाल दिया और पूरे संगठन ने ताकत झोंक दी.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने खुद मॉनिटरिंग करते हुए पंचायत स्तर तक गांव-गांव और ढाणी-ढाणी तक कार्यकर्ताओं के जिम्मे चुनावी कमान सौंपी. सचिन पायलट रोड शो करते दिखे, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने घर-घर जाकर वोट मांगे. अशोक गहलोत की सक्रियता ने भी माली समाज के वोट को बीजेपी की तरफ शिफ्ट होने से रोकने में मदद की. वहीं, प्रभारी के रूप में अशोक चांदना का प्रबंधन भी काफी प्रभावी रहा. 

भाया के खिलाफ करप्शन का आरोप नहीं आया काम

इस चुनाव में बीजेपी ने प्रमोद भाया के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दे के तौर पर भुनाने की कोशिश की, लेकिन यह भी बेअसर रहा. बल्कि कांग्रेस की ओर से चुनौती भरे लहजे में इस बात को पुरजोर से उठाया गया कि अगर आरोपों में सच्चाई है तो बीजेपी की सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही?

दूसरी ओर, भाया ने नरेश मीणा को भाजपा की बी टीम बताया और इससे कांग्रेस के वोट मजबूत हुए. नतीजा यह रहा कि प्रमोद जैन भाया की 15 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से दमदार वापसी हुई. हालांकि यह पहली बार जब वे सदन में विपक्ष में काबिज कांग्रेस का हिस्सा होंगे. अब तक जीत हासिल करने के बाद वह कांग्रेस के साथ सत्ता पक्ष में ही बैठे दिखे.  

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