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This Article is From Oct 10, 2023

Rajasthan Election 2023: सचिन पायलट के सामने बीजेपी का ट्रिपल अटैक, अचानक टोंक पर जा टिकीं सबकी निगाहें

टोंक में बीजेपी ने रणनीति के तहत 3 गुर्जर नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है, ताकि सचिन पायलट को उन्हीं के गढ़ में घेरकर राजस्थान की बाकी सीटों पर 'पायलट फैक्टर' को खत्म किया जा सके.

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Rajasthan Election 2023: सचिन पायलट के सामने बीजेपी का ट्रिपल अटैक, अचानक टोंक पर जा टिकीं सबकी निगाहें
कांग्रेस नेता सचिन पायलट (फाइल फोटो)

Tonk News: राजस्थान में विधानसभा चुव की तारीखों का ऐलान होते ही सबकी नजरें टोंक विधानसभा सीट पर जा रुकी हैं. इस सीट से राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) विधायक हैं. इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (AIMIM) की नजर भी इस सीट पर बनी हुई है, जिसने कांग्रेस की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. ऐसे में भाजपा ने सचिन पायलट को घेरने के लिए तीन गुर्जर नेताओं को चुनावी मैदान में उतार दिया है. 

बीजेपी का ट्रिपल गुर्जर अटैक प्लान

कर्नल किरोड़ी बैंसला के बेटे विजय बैंसला (Vijay Bainsla) को देवली-उनियारा से प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने साफ संकेत दे दिया है कि 2023 विधानसभा चुनाव में पायलट को गुर्जर कार्ड से ही घेरकर उन्हें टोंक तक ही सीमित कर दिया जाएगा. इससे पहले बीजेपी ने दक्षिण दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी (Ramesh Bidhuri) को टोंक जिले का प्रभारी बनाने का ऐलान किया था. वहीं सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया (Sukhbir Singh Jaunapuria) पहले ही यहां से सांसद हैं. बीजेपी के इस ट्रिपल गुर्जर अटैक प्लान से पायलट की मुसीबतें बढ़ती हुई प्रतीत हो रही हैं.

पायलट फैक्टर खत्म करने की कोशिश

इस प्लान को समझने के लिए आपको टोंक जिले के सियासी गणित पर नजर दौड़ानी होगी. 4 विधानसभा वाले टोंक जिले में वर्तमान में कुल 11 लाख 2 हजार 585 मतदाता हैं. जाट, गुर्जर, मीणा, अल्पसंख्यक बाहुल्य वाली इन चार सीटों में गुर्जर मतदाताओं की तादाद बहुत ज्यादा है, जो जिले की चारों सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है. वर्ष 2013 और वर्ष 2018 में इसका प्रमाण भी देखने को मिला था. टोंक में 35 से 36 हजार गुर्जर मतदाता हैं. देवली-उनियारा में सबसे ज्यादा में 60 से 62 हजार गुर्जर मतदाता हैं. वहीं एससी के लिए रिजर्व निवाई-पीपलू में 40 से 41 हजार गुर्जर मतदाता हैं. तो मालपुरा-टोडारायसिंह में 38 से 40 हजार गुर्जर मतदाता हैं. इस तरह से जिले के कुल 11 लाख 2 हजार 585 मतदाताओं में गुर्जर जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख 75 हजार के करीब है जो चारो विधानसभा सीटों के परिणाम पर प्रभाव डालते हैं. ऐसे में भाजपा की रणनीति भी यही है कि सचिन पायलट को टोंक में ही घेरकर राजस्थान की बाकी सीटों पर पायलट फैक्टर को खत्म कर दिया जाए.

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मानेसर प्रकरण के बाद बदले समीकरण

सचिन पायलट पिछली बार गुर्जर मतदाताओं को अपने साथ कांग्रेस के पक्ष में बहा ले गए थे, क्योंकि उस समय गुर्जरों को उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन राजस्थान में भाजपा से कोई भी गुर्जर विधायक जीतकर विधानसभा नहीं पंहुच सका था. पर अब हालात जुदा हैं. भले ही आज पायलट कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य हों, पर मानेसर प्रकरण के बाद राजस्थान की सियासत में जो कुछ घटा, वह सबने देखा है. मुख्यमंत्री ने सचिन पायलट को लेकर नाकारा-निकम्मा और भी न जाने क्या-क्या नहीं कहा. वहीं गहलोत समर्थकों ने तो गद्दार तक भी कहा, पर उसी पायलट को अब कांग्रेस राजस्थान में प्रचार में उतारेगी. वही सचिन पायलट टोंक विधानसभा सीट से एक बार फिर से चुनावी ताल ठोक चुके हैं. ऐसे में भाजपा ने पायलट को टोंक में ही घेरने को जो चक्रव्यूह तैयार किया है उसमें हर मोर्चे पर गुर्जर तैनात कर दिए गए है. 

टोंक से कोई कांग्रेसी दूसरी बार नहीं जीता

राजस्थान में गुर्जर आरक्षण के नायक स्वर्गीय कर्नल किरोड़ी बैंसला के बेटे विजय बैंसला को देवली-उनियारा से टिकट दिया गया है तो भाजपा ने अपने फायरब्रांड नेता रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का प्रभारी बना दिया. टोंक सवाई माधोपुर सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया पहले सांसद हैं और पायलट के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि टोंक के गुर्जर भले ही पायलट को वोट करें, लेकिन जिले में चारों सीटों पर पायलट की पार नहीं पड़ने वाली है, और सचिन पायलट को अब अपना किला मजबूत करना है तो गिद्द सी दृष्टि से टोंक पर नजर गढ़ाकर टोंक में रहना होगा. क्योंकि अगर एक बार गुर्जर मतदाता जरा सा भी खिसका तो पायलट की टोंक से दूसरी बार विधानसभा पहुंचने की राह भी मुश्किल हो सकती है. टोंक की सियासत का इतिहास गवाह है कि इस सीट से लगातार दो बार जीत का कारनामा दो बार ही हुआ है, और आज तक कभी यहां से कोई कांग्रेसी दो बार नहीं जीत सका है. चुनावी मौसम में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपनी-अपनी चाल चलना शुरू कर चुके हैं, पर लोकतंत्र में मतदाता सबकुछ होता है, और कौन किसको शह देगा और किसकी होगी मात, देखने वाली बात यह होगी.

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