Rajasthan Election: राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं, लेकिन प्रदेश में सत्ता को पलटने के लिए खास भूमिका सिर्फ 119 सीटों की रहती आई है. ऐसा इसीलिए क्योंकि राजस्थान में 60 सीटें भाजपा के गढ़ जैसी हैं, जिन पर कांग्रेस आज तक फतह नहीं कर पाई है. इसी तरह कांग्रेस के पास भी 19 सीटें हैं, जो बीजेपी की लाख कोशिशों के बाद भी अभेद्य बनी हुई हैं. यानी कुल 81 सीटों की तस्वीर तो दोनों दलों के समक्ष पहले ही साफ रहती आई है.
ओपन सीटों से फैसला
लेकिन बाकी बची 119 ओपन सीटों का नतीजा की तय करता है कि राजस्थान किस पार्टी की सरकार बनेगी. क्योंकि इन सीटों के मतदाता बार-बार पार्टी या विधायक को पलटते रह हैं, और अपने क्षेत्र के मुद्दों, चेहरे, जाति आदि के आधार पर वोट देते आ रहे हैं. विधानसभा चुनाव दहलीज पर होने के चलते दोनों की पार्टियों के नेताओं की कोशिशें इन्हीं ओपन सीटों के मतदाताओं को लुभाने के लिए हो रही हैं. आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कभी 50 से 72 सीटें कांग्रेस के अभेद्य किला थीं. लेकिन वोट स्विंग के चलते कांग्रेस ये किले खोती गई और अब 21 पर सिमट गई है. जबकि 1980 में जन्मी भाजपा 1993 से वोट शेयर बढ़ाती हुई किले खड़ी करती गई.
कांग्रेस-बीजेपी का गढ़
भाजपा का गढ़ या परंपरागत सीटों की बात करें तो उसमें बाली, पाली, उदयपुर, लाडपुरा, झालापाटन, खानपुर, फुलेरा, सोजत, कोटा साउथ, बूंदी, सूरसागर, भीनमाल, अजमेर नार्थ, बीकानेर ईस्ट, सिवाना, अलवर सिटी, भीलवाड़ा, ब्यावर, रेवदर, राजसमंद, नागौर आदि शामिल हैं. जबकि कांग्रेस का कल कही जाने वाली सीटों की लिस्ट में सरदारपुरा, बाड़ी, झुंझुनूं, सपोटरा, बाड़मेर, फतेहपुर, डींग, चित्तौड़गढ़, कोटपूतली, सांचौर, कोटपूतली आदि सीटे हैं.
ये सीटें हैं अभेद्य किले
इनके अलावा 7 सीटें ऐसी भी हैं जहां पर कहीं कांग्रेस तो कहीं बीजेपी का खाता 20-25 साल से बांद है. इनमें सबसे पहले उदयपुर का नाम आता है, जहां कांग्रेस 25 साल से नहीं जीत पाई है. इसके बाद फतेहपुर सीट आती है जहां आखिरी बाद 1993 में भंवरलाल ने जीत हासिल की थी, उसके बाद भाजपा कभी ये नहीं जीत पाई. इसी क्रम में आगे बढ़ने पर बरसी सीट का नाम आता है, जहां कांग्रेस 1985 में अंतिम बार जीत थी. पिछले 3 चुनाव से यहां निर्दलीय उम्मीदवार जीत रहे हैं. इसी तरह कोटपूतली में 1998 में आखिरी बार भाजपा जीती थी, उसके बाद बीजेपी की वापसी नहीं हुई. इसी तरह सांगानेर, रतनगढ़ और सिवाना सीट पर 1998 के बाद से कांग्रेस नहीं जीत पाई है.