
Dussehra Unique Tradition: दशहरा का त्यौहार असत्य पर सत्य की विजय का सूचक माना जाता है. इस दिन अयोध्या के राजा राम ने लंका के राजा रावण का वध करके माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था. इस उपलक्ष्य में राजस्थान समेत पूरे भारत में दशहरा (Dussehra 2025) उत्सव मनाया जाता है. लेकिन आज भी देश में कुछ ऐसी जगहें हैं जहां दशहरे पर रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि उसकी मृत्यु पर शोक मनाया जाता है. ऐसी ही एक जगह है मरुधरा का जोधपुर (jodhpur) जहां लोग रावण की मृत्यु पर शोक मनाते हैं.
मंडोर को ना जाता है रावण का ससुराल
जोधपुर के मंडोर को रावण का ससुराल माना जाता है. यहां का श्रीमाली गोधा ब्राह्मण समुदाय खुद को रावण का वंशज मानता है. प्राचीन मान्यता के अनुसार, रावण की पत्नी मंदोदरी मंडोर (जोधपुर) की राजकुमारी थीं, जो उनका ससुराल था. (हालांकि इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है.) रावण ने मंदोदरी से विवाह किया था और यह समुदाय आज भी रावण की विशेष पूजा करता है और उनके विवाह को महत्व देता है. ऐसी मान्यता है कि जब श्री राम ने उसका वध किया, तो वे विभिन्न मार्गों से होते हुए जोधपुर आए और यहीं बस गए.
मंडोर हुई थी पैदा मंदोदरी
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मयासुर ने ब्रह्माजी ने वरदान स्वरुप अप्सरा हेमा के लिए मंडोर का निर्माण किया था.हेमा बहुत सुंदर थी.जिसकी शादी मायासुर नामक राक्षस से हुई थी.और उनकी पुत्री के रुप में मंदोदरी ने जन्म लिया था. वह भी बहुत सुंदर थी. मंडोर में रहने के कारण ही उसका नाम उन्होंने मंदोदरी रखा गया.

रावण की पूजा करते हुए श्रीमाली गोधा ब्राहम्ण
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रावण की होती है पूजा
वहीं दूसरी तरफ विजयदशमी के दिन जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज के दवे गोधा गोत्र परिवार की ओर से शोक मनाया जाता है. यहां के किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में रावण का मंदिर भी बनाया गया है, जहां उसकी पूजा होती है. दशहरे के दिन मंदिर प्रांगण में रावण की मूर्ति का अभिषेक और विधि विधान से पूजा की जाती है. शाम को रावण दहन के बाद दवे गोधा वंशज के परिवार स्नान कर नूतन यज्ञोपवीत धारण करते हैं.
रावण दहन नहीं देखते और शोक मनाते है
मिली जानकारी के अनुसार श्रीमाली ब्राह्मण समाज के दवे गोधा गोत्र के लोग दश्हरे के दिन रावण दहन नहीं देखते और शोक मनाते है. इसके अलावा रावण की मूर्ति के पास ही मंदोदरी का भी मंदिर है, इस दौरान उसकी भी पूजा की जाती है. रावण के मंदिर में साल 2008 में विधि विधान से मूर्ति स्थापित की गई थी. तब से आज तक हर विजयदशमी को रावण की पूजा की जाती है.
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