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यही रात अंतिम, यही रात भारी.... राजस्थान में आई फैसले की घड़ी, रिजल्ट से पहले नेताओं की नींद हराम

तमाम सियासी रुझान, अनुमान, आशंकाएं और सियासी गुणा-भाग 3 दिसंबर को तथ्य बन जाएंगे, कल इस वक़्त तक इस पहेली का जवाब मिल जाएगा कि मरुभूमि में -राज बदलेगा या रिवाज- और फिर शुरू हो जायेगा - यूं होता तो क्या होता 

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यही रात अंतिम, यही रात भारी.... राजस्थान में आई फैसले की घड़ी, रिजल्ट से पहले नेताओं की नींद हराम
कल पता चलेगा राज बदलेगा या रिवाज

Rajasthan Assembly Election results 2023: प्रदेश में कल यानी 3 दिसम्बर को विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना होगी. ऐसे में 1800 से अधिक उम्मीदवारों के लिए आज की रात काफी भारी गुज़रने वाली है. प्रदेश में कांग्रेस सरकार अगर रिपीट हुई तो 'एक बार तू -एक बार मैं' का रिवाज बदल जाएगा.और अगर भाजपा सत्ता में आई तो रिवाज़ क़ायम तो रहेगा लेकिन मुख्यमंत्री के चहरे के लिए सियासी चकल्लस होने की पूरी गुंजाइश बनी रहेगी.

राजस्थान में इस बार भी 200 सीटों वाली विधानसभा के लिए 199 सीटों पर चुनाव हुआ.जिसके बाद बहुमत का आंकड़ा 101 से 100 रह गया है . गुरुवार को आये एग्जिट पोल्स ने उसी असमंजस को क़ायम रखा जो चुनाव के बाद से हर किसी के दिलो दिमाग़ में था. हालांकि ज़्यादातर एग्जिट पोल्स (Assembly Elections 2023 Exit Poll) में भाजपा को एज दिखाया गया है. ऐसा माना जाता है कि राजस्थान का मतदाता आर-पार के लिए वोट करता है. लेकिन इस चुनाव में जैसा मुक़ाबला देखने को मिला ऐसा राजस्थान के चुनावी इतिहास में कभी नहीं देखा गया. 

राजस्थान की रीत है कि, यहां के रेगिस्तान में बादल कुछ देर के लिए आते हैं और बरस कर चले जाते हैं और कभी घटाटोप होने के बाद भी बिन बरसे गुज़र जाते हैं. राजस्थान में भी सत्ता की बयार ऐसे ही चलती है, लेकिन धीरे-धीरे राजनीति बदली और राजस्थान की सियासत में कई तरह के रिवाज भी साथ-साथ बदलते चले गए . 

1998 के चुनाव के बाद कांग्रेस कभी भी सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ नहीं आई जबकि भाजपा जब भी सत्ता में आई तब-तब उसने प्रचंड जीत दर्ज की. 2013 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस महज़ 21 सीटों पर सिमट गई थी. 

इस बार का चुनाव कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की "रहनुमाई" में लड़ा था. चाहे चिरंजीवी योजना हो या फिर महिलाओं को सस्ते गैस सिलेंडर देने की बात हो, या फिर महंगाई राहत कैंप. कांग्रेस ने इस बार अपने प्रचार के रिवाज को तोड़ कर इन योजनाओं का खूब प्रचार किया, अशोक गहलोत ने तो कहा भी था कि, हम योजनाएं तो बहुत लाते हैं लेकिन उनके दम पर चुनाव नहीं जीत पाते.

और इसी लिए कांग्रेस ने प्रचार और योजनाओं को धरातल पर ले जाने के आधुनिक प्रचार के तरीके अपनाये.

वहीं भाजपा ने महिलाओं के खिलाफ राजस्थान में बढ़ते अपराध, पेपर लीक, करप्शन के मुद्दों को खूब उठाया. शुरू-शुरु में वसुंधरा राजे भाजपा के चुनावी प्रचार तंत्र से अलग दिखाई दीं, लेकिन बीजेपी को शायद वक़्त रहते समझ आ गया कि राजे को माईनस करके राजस्थान की सत्ता पाना बेहद मुश्किल होगा, उसके बाद वसुंधरा ने धड़ाधड़ चुनावी रैलियां कीं.

रिजल्ट से पहले राजस्थान की पूर्व सीएम और भाजपा नेता वसुंधरा राजे की सक्रियता काफी बढ़ चुकी है. शुक्रवार को राज्यपाल कलराज मिश्र और आरएसएस ऑफिस में क्षेत्रीय संघ प्रचारक निम्बाराम से मुलाकात की. इस मुलाकात के कई सियासी संदेश निकाले जा रहे हैं. 

सचिन पायलट ने अपनी विधानसभा टोंक में ज़्यादातर वक़्त बिताया. 2018 में पायलट ने पूरे राजस्थान में प्रचार किया था. वो उस वक़्त प्रदेशध्यक्ष थे, लेकिन इस बार वो वहीं प्रचार करने गए जहां उनकी "ज़रूरत'' थी.

तमाम सियासी रुझान, अनुमान, आशंकाएं और सियासी गुणा-भाग 3 दिसंबर को तथ्य बन जाएंगे, कल इस वक़्त तक इस पहेली का जवाब मिल जाएगा कि मरुभूमि में -राज बदलेगा या रिवाज- और फिर शुरू हो जायेगा - यूं होता तो क्या होता

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