
कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को मुंबई दौरे के दौरान हर भाषा और धर्म का सम्मान करने का आह्वान किया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाषाई मतभेदों पर झगड़ा अनावश्यक है. गहलोत की यह टिप्पणी महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी पढ़ाए जाने को लेकर चल रहे विवाद और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से जुड़ी कई हिंसक घटनाओं के बाद आई है. हाल ही में मनसे के कार्यकर्ताओं को मराठी में बात न करने पर गैर-मराठी भाषी लोगों पर हमला करते देखा गया था.
"नए जमाने में अंग्रेजी जरूरी"
बदलते सामाजिक नजरिए को याद करते हुए गहलोत ने कहा, "जब हम छोटे थे, तब हम भी अंग्रेजी के खिलाफ थे, लेकिन अब समय बदल गया है. इस नए जमाने में अंग्रेजी जरूरी हो गई है, इसलिए हम अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं. ऐसे में भाषाओं को लेकर झगड़ा करना गलत है. लोगों को हर भाषा और हर धर्म का सम्मान करना चाहिए. " उन्होंने कहा कि भाषा के मामले में कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए. कुछ लोग पांच भाषाएं तक जानते हैं.
यह विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने दो सरकारी प्रस्ताव जारी किए और बाद में उन्हें वापस ले लिया, जिनमें कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का प्रस्ताव था.
मनसे जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने भी विरोध-प्रदर्शन किया
इस कदम पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया हुई और मनसे जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने भी विरोध-प्रदर्शन किया. इसके अलावा, शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ने भी मराठी भाषी राज्य पर हिंदी थोपने के लिए सरकार की आलोचना की. वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने दो सरकारी प्रस्तावों (जीआर) को रद्द कर दिया है, जिनमें कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की मांग की गई थी.
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