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This Article is From Apr 27, 2024

Falahari Baba Parole: 7 साल बाद अलवर जेल से बाहर आया रेपिस्ट फलाहारी बाबा, सबसे पहले मंदिर में टेका माथा

पैरोल के मामले में फलाहारी बाबा का स्वास्थ्य, उम्र और जेल में बंद होने की अवधि और पुराना कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने के कारण पैरोल मिलने में आसानी हुई.

Falahari Baba Parole: 7 साल बाद अलवर जेल से बाहर आया रेपिस्ट फलाहारी बाबा, सबसे पहले मंदिर में टेका माथा
फलाहारी बाबा को मिली पैरोल

Rajasthan News: मधुसूदन आश्रम के संस्थापक फलाहारी बाबा (Falahari Baba) को राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) ने 20 दिन की पैरोल दी है, जिसके बाद शुक्रवार दोपहर उसे जेल से रिहा कर दिया गया है. जेल से रिलीज होने के बाद फलाहारी बाबा सबसे पहले अलवर के रामकृष्ण कॉलोनी स्थित आश्रम में बने वेंकटेश्वर मंदिर पहुंचा और वहां दर्शन करने के बाद एकांतवास में चला गया. करीब साढे़ 6 साल से वे मौन व्रत रखे हुए है.

'आरोपी पहली पैरोल पाने का हकदार'

दुष्कर्म का दोषी स्वामी कौशलेंद्र प्रपन्नाचारी उर्फ फलाहारी बाबा पिछले 7 साल से अलवर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है. 7 साल में पहली बार वह जेल से बाहर आया है. जानकारी के अनुसार, पहले फलाहारी बाबा की पैरोल के प्रार्थना पत्र को 'पैरोल सलाहकार समिति' ने अलवर एसपी की रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया था. इस समिति में जिला प्रशासन के अधिकारी, जेल सुप्रीडेंट सहित सामाजिक कार्यकर्ता रहते हैं. लेकिन इसके बाद फलहारी ने अपनी पहली पैरोल याचिका हाईकोर्ट के सामने लगाई थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस अधीक्षक ने अपनी रिपोर्ट के संबंध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य पेश नहीं किए. आरोपी पिछले 7 साल से जेल में बंद है. ऐसे में वह अपनी पहली पैरोल पाने का अधिकार रखता है. पैरोल के मामले में बाबा का स्वास्थ्य, उम्र और जेल में बंद होने की अवधि और पुराना कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने के कारण पैरोल मिलने में आसानी हुई.

'पैरोल से समाज पर गलत असर पड़ेगा'

सितंबर 2017 में एक पीड़िता ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के महिला थाने में बाबा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. जिसके बाद उसे 23 सितंबर 2017 को अलवर में गिरफ्तार किया गया था. 26 सितंबर 2018 को अलवर की अतिरिक्त जिला अदालत ने बाबा को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हाई कोर्ट में पैरोल पर सुनवाई के दौरान फलाहारी महाराज के वकील विश्राम प्रजापति ने कहा कि आरोपी पिछले 7 साल से जेल में बंद है. सोशल वेलफेयर विभाग ने भी याचिकाकर्ता के पक्ष में रिपोर्ट दी है. अलवर सेंट्रल जेल के अधीक्षक की रिपोर्ट भी याचिकाकर्ता को लेकर संतोषप्रद है, लेकिन केवल जिला पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को पैरोल नहीं दी गई. सरकारी वकील ने पैरोल का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी एक गंभीर मामले में सजा भुगत रहा है. इसके बाहर आने से समाज पर गलत असर पड़ेगा.

'जेल में सिर्फ फल और दूध का आहार'

इधर, आश्रम के प्रभारी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि राजस्थान हाई कोर्ट के द्वारा बाबा को पैरोल दी गई है. एक सामान्य नागरिक की हैसियत से उन्होंने पैरोल मांगी थी. जिला जेल प्रशासन ने भी उनके आचरण को लेकर सकारात्मक रिपोर्ट दी थी. जेल के नियम अनुसार, पहले उनका मेडिकल चेकअप किया गया, जिसमें बताया गया कि वह पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं. उनका वजन करीब 60 किलो है. 64 वर्षीय फलाहारी महाराज सजा सुनाई जाने के बाद से ही जेल में मौन व्रत धारण किए हुए हैं जो अभी भी जारी है. वे जेल में सिर्फ फल और दूध का आहार लेते हैं. जेल में करीब 15 घंटे में भगवान का भजन करते हैं और मौन व्रत रखते हैं. 40 साल से अन्न बिल्कुल उपयोग नहीं करते. 

'कमर दर्द और चलने फिरने में परेशानी'

आश्रम के प्रभारी ने आगे बताया कि रिहा होने के बाद सबसे पहले बाबा ने प्रभु के दर्शन किए और इशारों में ही अपनी बात समझाया और एकांतवास में चले गए. एकांतवास में वह कहीं अलवर में ही हैं और बाहर कहीं नहीं गए. उन्हें पूरी तरह शांति चाहिए. उन्होंने इशारों में बताया कि वह किसी से नहीं मिलना चाहते. जेल में उन्हें किसी तरीके की यातना नहीं दी गई. उन्होंने जेल से आने के बाद कोई शब्द नहीं बोला और वह पूरी तरह मौन व्रत में ही हैं, लेकिन उन्हें कमर दर्द और चलने फिरने में जरूर परेशानी है.

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