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This Article is From Oct 12, 2023

Battle of Rajasthan: गहलोत और वसुंधरा को कौन देगा चुनावी टक्कर? 20 साल से बरकरार है दोनों का जलवा

सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे राजस्थान में दो ऐसे कद्दावर नेता हैं, जिनकी धुरी पर पिछले करीब ढाई दशक से सूबे की सियासत चलती आ रही है और अभी तक चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां इनका तोड़ नहीं निकाल सकीं हैं.

Battle of Rajasthan: गहलोत और वसुंधरा को कौन देगा चुनावी टक्कर? 20 साल से बरकरार है दोनों का जलवा
वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत (फाइल फोटो)

राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. सूबे में परिपाटी के मुताबिक सत्ता बदल जाती है, लेकिन सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे चुनाव नहीं हारते हैं. दोनों का अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र और जनता में जलवा ज्यों का त्यों बरकरार है. वर्ष 1999 से अशोक गहलोत का जलवा विधानसभा चुनाव में सरदारपुरा में और वर्ष 2003 से वसुंधरा झालरापाटन में जलवा बरकरार है.

सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे राजस्थान में दो ऐसे कद्दावर नेता हैं, जिनकी धुरी पर पिछले करीब ढाई दशक से सूबे की सियासत चलती आ रही है और अभी तक चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां इनका तोड़ नहीं निकाल सकीं हैं. पिछले 20 सालों का रिकॉर्ड खंगालेंगे तो पाएं कि दोनों की परंपरागत सीट पर अक्सर पार्टियां को कमज़ोर कैंडिडेट ही खड़ा करना पड़ता है, क्योंकि इन कद्दावरों के आगे दूसरे प्रत्याशियों का चेहरा फीका पड़ जाता है.
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वसुंधरा और गहलोत को टक्कर देने वाला अब तक नहीं मिला

यह सिलसिल पिछले 20 सालों से चला आ रहा है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों को सीएम अशोक गहलोत के सामने जोधपुर की सरदारपुरा सीट और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के सामने झालावाड़ की झालरापाटन सीट पर टक्कर देने वाला नेता अब तक नहीं मिला है. ऐसे में सवाल उठता है, क्या इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टियां परिपाटी से हटकर इनका तोड़ ढूंढ पाएंगी?

दो दशक से गहलोत और वसुंधरा राजे का जलवा है बरकरार

तीन बार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं, 10 गारंटियों और विजन 2030 डॉक्यूमेंट के दम पर फिर से चौथी बार सीएम बनने की कवायद में जुटे हैं, जबकि दो बार की पूर्व सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी झालावाड़ के झालरापाटन से ही विधानसभा चुनाव की तैयारियां कर रही हैं. उनके खेमे के विधायक, पूर्व विधायक और नेता भी उन्हें फिर से सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं.

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समर्थकों में 'वसुंधरा नहीं, तो सत्ता नहीं' जैसा माहौल

यही कारण है कि बीजेपी की पहली 41 उम्मीदवारों की सूची में वसुंधरा खेमे के नेताओं के टिकट कटने के बाद विरोध और बगावत के सुर मुखर होने लगे हैं. 'वसुंधरा नहीं, तो सत्ता नहीं' जैसा माहौल बीजेपी का ही असंतुष्ट धड़ा बनाने में जुटा है. इसे सियासी कूटनीति और शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा जा रहा है.

बीजेपी में वसुंधरा राजे का जलवा आज भी है बरकरार

दरअसल, राजस्थान की परिपाटी रही है कि एक बार कांग्रेस और दूसरी बार एंटी एंकम्बेंसी के बूते बीजेपी के पास सत्ता चली जाती है.  जनता हर बार ये बदलाव और सत्ता परिवर्तन द्विदलीय व्यवस्था के आधार पर ही पिछले 30 साल से करती आई है. बीजेपी में वसुंधरा राजे का जलवा आज भी बरकरार है. बीजेपी में परिवर्तन के दौर के बीच चुनाव में यही बड़ा फैक्टर भी है. 

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मोदी के चेहरे और कमल फूल पर चुनाव में उतरी बीजेपी

इस चुनाव में पार्टी की आंतरिक गुटबाजी से संभावित नुकसान से बचने के लिए बीजेपी राजस्थान में मोदी के चेहरे पर चुनाव में उतरी है. भले ही एक तरफ मोदी का चेहरा और कमल का फूल है, लेकिन दूसरी ओर चुनाव में स्थानीय नेतृत्व और सीएम फेस जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं की आंतरिक डिमांड है, जिसके बिना चुनाव पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.

वोटों में दो-फाड़ से चुनाव में बड़ा डैमेज कर सकते हैं बागी

माना जा रहा है कि राजे खेमे वाले 35-40 नेताओं ने टिकट कटने पर बीजेपी से बागी होकर अगर चुनाव लड़ लिया, वो वोट कटवा ये कैंडिडेट बीजेपी के वोटों में दो-फाड़ करके चुनाव में बड़ा डैमेज कर सकते हैं. इसका सीधा फायदा कांग्रेस उम्मीदवारों को मिलेगा, यही पार्टी की सबसे बड़ी चिंता भी है.

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रमा पायलट और मानवेंद्र सिंह जसोल को वसुंधरा से मिली शिकस्त

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी रॉयल सिन्धिया परिवार की बेटी और धौलपुर के राजपरिवार की बहू होने के बावजूद जनता में भरोसे, मजबूत पकड़ अपने क्षेत्र में जनसुनवाई और विकास कार्यों के दम पर चुनाव जीतती आ रही हैं. सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे 5-5 बार विधायक और 5-5 बार सांसद भी रह चुके हैं.  नवम्बर 2023 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को झालरापाटन में वसुंधरा राजे और बीजेपी को सरदारपुरा सीट पर अशोक गहलोत को कड़ी टक्कर देने वाले उम्मीदवार की तलाश है.

महेंद्र झाबक, राजेंद्र गहलोत, शंभू सिंह खेतासर को हरा चुके गहलोत

सूबे में बहुत से मंत्री और विधायक चुनाव हार जाते हैं, लेकिन सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपनी सीटों सरदारपुरा और झालरापाटन से हर बार जीतकर आते हैं. साल 2003 से लेकर अब तक 20 साल का रिकॉर्ड ये बताता है.  गहलोत सियासी जोड़-तोड़ कर संख्या बल लाने में माहिर हैं. उनकी गांधीवादी छवि, सादगी और सहज उपलब्धता है. अपने क्षेत्र में और ज़िले में बड़े स्तर पर विकास कार्यों के कारण भी गहलोत चुनाव जीतते आ रहे हैं. सरदारपुरा के लोगों को पता है कि उनका विधायक सीएम बनता है या विपक्ष में भी बैठकर सारे काम करवा लेता है.

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अब तक दोनों पार्टियां नहीं खोज पाई हैं कोई कद्दावर प्रत्याशी

झालरापाटन को वसुंधरा राजे की सीट और सरदारपुरा को अशोक गहलोत की सीट कहा जाता है. साल 2018 में मानवेंद्र सिंह जसोल को कांग्रेस ने झालरापाटन से टिकट देकर वसुंधरा को कड़ी चुनौती देने की सोची थी, लेकिन महारानी के सामने वो टिक नहीं पाए. पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह की हार के बाद राजे ने फिर साबित कर दिया था कि उनके गढ़ में उन्हें कोई हरा नहीं सकता. इससे पहले सचिन पायलट की माताजी रमा पायलट ने भी 2003 में झालरापाटन से चुनाव लड़ा था, लेकिन रमा पायलट को भी वसुंधरा राजे से हार का मुंह देखना पड़ा था. 

झालावाड़ में वसुंधरा और सरदारपुरा में है गहलोत का एकल वर्चस्व 

अशोक गहलोत ने 2003 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के महेंद्र झाबक को 24000 वोटों के अंतर से हराया था. 2008 में बीजेपी के राजेंद्र गहलोत को 16000 वोटो से हराया था और 2013 और 2018 में शंभू सिंह खेतासर को 18000 वोटों से हराया था. झालावाड़-बारां लोकसभा सीट से वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह बीजपी के सांसद हैं. गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत ने भी ऐसी ही कोशिश जोधपुर से पिछले लोकसभा चुनाव में की थी, लेकिन केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से उनकी हार हुई थी. वह हार गहलोत के लिए एक झटका थी, लेकिन अपनी सीट पर सीएम जीत के लिए आश्वस्त हैं.

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