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राजस्थान के डूंगरपुर में 1 साल में 337 नवजात की मौत, करीब 73 फीसदी महिलाओं में खून की कमी

डूंगरपुर जिले में 1 लाख से ज्यादा महिलाएं अंडरवेट हैं. बच्चों में यह आंकड़ा और भी भयावह है. जब यह प्रोफाइल बना था तब 1 लाख 92 हजार बच्चों में से करीब 1 लाख 38 हजार बच्चे एनीमिया के शिकार थे. जिले में 93% महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने गर्भावस्था के 180 दिनों के दौरान आयरन की गोली नहीं ली. 

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राजस्थान के डूंगरपुर में 1 साल में 337 नवजात की मौत, करीब 73 फीसदी महिलाओं में खून की कमी
मां के खराब स्वास्थ्य का असर बच्चों पर पड़ रहा है.

Dungarpur News: जयपुर से करीब 600 किलोमीटर रहने वाली लाडो पिछले 4 साल में 5 बच्चों को जन्म दे चुकी हैं. लेकिन अब उनमें से सिर्फ एक ही जीवित है. लाडो डूंगरपुर जिले के आसपुर ब्लॉक के हरवर गांव में रहती हैं. एक कमरे का फूस का घर, खाना भी उसी में बनता है. पति काम के लिए अहमदाबाद रहते हैं. हड्डियों से सटा हुआ पेट उनके स्वास्थ्य की कहानी कहता है. लेकिन लाडो अकेली ऐसी महिला नहीं हैं. डूंगरपुर में बीते 1 साल में 337 नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है. शिशु मृत्यु दर को कम करने के तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद यह आंकड़ा सरकारी व्यवस्था का सच बयान कर रहा है.

एनीमिया की शिकार हैं जिले की अधिकांश महिलाएं

हजारों महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि डूंगरपुर जिले में 15 - 49 वर्ष की 73% महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. इस स्थिति में उनके मां बनने से बच्चे पर क्या असर पड़ेगा, यह समझा जा सकता है. डिस्ट्रिक्ट न्यूट्रीशन प्रोफाइल के अनुसार जिले की सवा चार लाख महिलाओं में से 3 लाख से ज्यादा महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं. 1 लाख से ज्यादा महिलाएं अंडरवेट हैं. बच्चों में यह आंकड़ा और भी भयावह है. जब यह प्रोफाइल बना था तब 1 लाख 92 हजार बच्चों में से करीब 1 लाख 38 हजार बच्चे एनीमिया के शिकार थे. जिले में 93% महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने गर्भावस्था के 180 दिनों के दौरान आयरन की गोली नहीं ली. 

आंगनबाड़ी केंद्रों पर सुविधाओं का अभाव

सरकारी आंकड़े महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण की कहानी बयां कर रहे हैं. इनके स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर सुधारने की नजदीकी इकाई आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इन केंद्रों के जरिए महिला एवं बाल विकास की कई योजनाएं संचालित होती हैं. लेकिन जिले में मौजूद ये केंद्र खुद ही अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं.  ज्यादातर केंद्र 2 बजे से पहले बंद हो जाते हैं. कुछ केंद्रों पर लटके ताले पर लगा जंग बताता है कि वे महीनों से नहीं खुले. जो केंद्र खुले दिखे वहां कोई बच्चा नहीं दिखा. 

जिले में 2117 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं

इनमें से करीब आधे के पास ही विभागीय भवन हैं. 212 आंगनबाड़ी केंद्रों को शीघ्र मरम्मत की दरकार है. इनमें से कई तो अत्यंत जर्जर स्थिति में हैं. आंगनबाड़ी केंद्रों से बंटने वाले पोषाहार को लेकर भी खूब शिकायतें मिलती हैं. कई बार गर्भवती महिलाएं यह पोषाहार लेने से इनकार भी कर देती हैं. 

कुपोषित महिला के बच्चे भी कुपोषित होते हैं 

पोषण की कमी और जागरूकता की कमी का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है. ज्यादातर महिलाएं एनीमिया की शिकार होती हैं और कुपोषित महिला से जन्म लेने वाला बच्चा भी कुपोषण का ही शिकार होता है. डॉक्टर बताती हैं कि ज्यादातर डिलीवरी कम हिमोग्लोबिन काउंट में ही होती है. क्योंकि सिर्फ दवाओं से हिमोग्लोबिन नहीं बढ़ाया जा सकता. 

डॉक्टर प्रफुल्ल होता कहती हैं, इलाके में ज्यादातर महिलाएं एनीमिया की शिकार होती हैं. उनका हिमोग्लोबिन काउंट कम होता है. डिलीवरी के दौरान उनका हिमोग्लोबिन लेवल ऊंचा रखना बड़ी चुनौती होती है. दवाओं से उनका हिमोग्लोबिन काउंट उतना नहीं बढ़ाया जा सकता. ऐसे में डिलीवरी के समय खतरा भी बना रहता है और कुपोषण की चेन भी शुरू हो जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता मधुलिका कहती हैं, “कुपोषित मां से जो बच्चा पैदा होता है, उनका बर्थवेट कम होता है. ऐसे में उसका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाता. फिर यह चक्र चलता रहता है और उस परिवार और समाज बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है.”

अस्पातलों के हालत और भी बदतर 

पोषण केंद्रों के साथ - साथ अस्पतालों की भी बुरी हालत है. इस साल जिस बिछीवाड़ा प्रखंड में सबसे अधिक नवजात की मौत हुई, वहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक भी डॉक्टर नहीं है. जिले में जूनियर स्पेशलिस्ट के 67 में से 65 पद खाली हैं. खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी के 10 में से 5 पद खाली हैं. यहां तक कि जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का पद भी रिक्त है. स्वयं स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर भी चिकित्सा विभाग में कर्मचारियों की कमी को एक बड़ी चुनौती मानते हैं. 

एनडीटीवी से बात करते हुए उन्होंने कहा “अभी देखिए, 40 हजार कर्मचारी ले रहे हैं. हम मानते हैं कि स्टाफ की कमी है लेकिन हम अगले 6-7 महीनों से इसे भर लेंगे.” साथ ही उन्होंने ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नीति बनाने एवं मोबाइल वैन चलाने की बात भी कही.

पलायन और जागरूकता बड़ी वजह 

स्वास्थ्य कार्यकर्ता भूरी बताती हैं कि इलाके में जागरूकता की कमी है. ज्यादातर महिलाओं के पति कमाई के लिए बाहर रहते हैं तो वे गर्भावस्था के दौरान न तो अस्पताल जा पाती हैं, न ही खुद की देखभाल कर पाती हैं. भारी काम भी करती हैं. दवाइयां नहीं लेती हैं. कई महिलाएं बेटे की चाहत में ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं. ऐसे में उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

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