
Bundi News: दुनियाभर में नाट्य प्रदर्शनों का मतलब आमतौर पर यह होता है कि कलाकार एक मंच पर कहानी का अभिनय करते हैं, लेकिन हाड़ौती क्षेत्र के बारां जिले के अटरू कस्बे में एक ऐसा प्रदर्शन होता है जिसमें न केवल चार मंचों का इस्तेमाल होता है, बल्कि इन मंचों के बीच में बैठा एक पात्र दौड़ता है और संवाद बोलता है. यह अनूठा प्रदर्शन है 'धनुष लीला'.यह हाड़ौती क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय परंपराओं में से एक है. तीन दिवसीय इस कार्यक्रम का मुख्य प्रदर्शन रामनवमी के दिन होता है.
शिव-धनुष भंग करने की लीला का होता है मंचन
इसमें भगवान राम द्वारा शिव-धनुष भंग करने की लीला का मंचन होता है. रामनवमी को दोपहर से ही कस्बे में उत्सव की धूमधाम रहती है. धनुषलीला के मंचन के पहले कस्बे में जुलूस निकाला जाता है. इसमें अन्य सवारियों के अलावा 'सर कट्या' और 'धड़ कट्या' की सवारी प्रमुख आकर्षण होती है.
150 वर्षों से हो रहा है मंचन
ऐसी मान्यता है कि इन झांकियों का संबंध तंत्र क्रियाओं से होता है. यह कस्बे के बाद उस चौक में पहुंचाता है, जहां धनुष लीला का मंचन होना होता है. अटरू में इस धनुष लीला का मंचन करीब 150 वर्षों से हो रहा है. इस बार यहां 151 वां लोकोत्सव मनाया जा रहा है.
मान्यता है कांच में श्रृंगार देखते ही प्रकट होते हैं 'भाव'
मान्यता है कि परशुराम का किरदार निभाने वाले कलाकार को लोग मंत्रों से सिद्ध किए गए डोरे से उनकी रक्षा करते हैं. परशुराम का किरदार निभाने वाले कलाकार का जिस कमरे में श्रृंगार होता है, वहां एक आईना लगा होता है. यह साल में सिर्फ इसी समय निकाला जाता है. श्रृंगार के बाद जब वह खुद को आईने में देखता है तो उसके भाव उमड़ पड़ते हैं और वह तेजी से मंच की ओर दौड़ता है और गुस्से में अपना फरसा घुमाता रहता है.वह चारों मंचों के बीच दौड़ते हुए संवाद बोलता रहता है.
4 मंच पर होता है लीला का मंचन
धनुषलीला के लिए एक नहीं बल्कि चार मंचों का एक साथ इस्तेमाल किया जाता है. एक मंच पर लक्ष्मण और राम अपने गुरु के साथ बैठते हैं. उनके ठीक सामने मंच पर जनक और अन्य लोग बैठते हैं. दूसरे मंच पर कागज, घास और लकड़ी की मदद से शिव धनुष बनाया जाता है. शिव धनुष वाले मंच के ठीक सामने वाले मंच पर कोरस ग्रुप होता है, जो हर संवाद को दोहराता है। पूरी लीला में हर संवाद तीन बार बोला जाता है.
लोकभाषा 'बही' में लिखे जाते हैं धनुष लीला के संवाद
लोकभाषा में लिखे गए नाटक के संवाद एक बही में लिखे गए हैं. सबसे पहले संवाद को वहां से पात्र को पढ़कर सुनाया जाता है. फिर पात्र अपनी खास शैली में संवाद बोलता है और अंत में कोरस इस संवाद को गाता है. दिलचस्प बात यह है कि संवाद तीन बार बोले जाने के बावजूद श्रोता इसे सुन नहीं पाते क्योंकि वहां मौजूद महिलाएं इस मौके पर मंगलगीत गाती हैं. आखिर राम-सीता के विवाह की खुशी को कौन छोड़ना चाहेगा.
विवाह जल्दी हो जाए,इसके लिए युवा भंग कर देते थे धनुष
कुछ वर्ष पहले तक जैसे ही राम का पात्र धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए खड़ा होता था, भीड़ में मौजूद युवक तेजी से उसके सामने मंच पर दौड़कर शिवधनुष तोड़ देते थे.लेकिन दर्शकों द्वारा शिवधनुष तोड़ने पर काफी हंगामा होता था. इसी कारण अब सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं जिससे कि पात्रों के अलावा कोई भी धनुष तक नहीं पहुंच सकता। ऐसी मान्यता है कि इस धनुष के टुकड़े को अपने घर में रखने से उन युवकों का विवाह शीघ्र हो जाता है जिनके विवाह में परेशानियां आ रही होती हैं.
गणगौर की तीज से होता है शुभारंभ
धनुष लीला की शुरुआत गणगौर की तीज पर होती है. गणपति की स्थापना और आयोजन अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही व्यवस्थाओं का वितरण किया जाता है. करीब 30 फीट का विशाल शिव धनुष बनाने की शुरुआत होती है.
समय के बाद ऐसे बदली व्यवस्था
धनुष लीला महोत्सव के लिए पहले बैलगाड़ियों पर झांकियां बनाई जाती थीं. अब इन्हें ट्रैक्टर, ट्रॉली व अन्य वाहनों पर सजाया जा रहा है. जब कस्बे में रोशनी की व्यवस्था नहीं थी, तब अलसी व तिल के तेल में भीगे बुंदे (मसाले) जलाकर रोशनी की जाती थी. बीच-बीच में कोई व्यक्ति उन पर तेल डालता रहता था. जब केरोसिन आया, तो रोशनी के लिए लालटेन या पेट्रोमैक्स का इस्तेमाल होने लगा. अब रोशनी के साथ जनरेटर की भी व्यवस्था है.