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This Article is From Feb 27, 2024

Ral Mahotsav: होली से पूर्व राजस्थान में खेला जाता है आग का यह रोमांचक खेल

जिले के कांकरोली स्थित पुष्टिमार्ग की तृतीय पीठ प्रन्यास के द्वारिकाधीश मंदिर में होली का उत्सव शुरु हो गए है, जिसे देखने के लिए गुजरात और महाराष्ट्र के अलावा प्रदेशभर से श्रृद्धालु पंहुचते है. कल रात्रि में राल महोत्सव का पहला आयोजन हुआ.

Ral Mahotsav: होली से पूर्व राजस्थान में खेला जाता है आग का यह रोमांचक खेल
राल महोत्सव का दृश्य

Holi Special: होली का त्यौहार नजदीक है, ऐसे में होली लेकर पूरे देश में खुमार चढ़ना स्वाभाविक है. मथुरा के बरसाना में खेला जाने लट्ठमार होली काफी प्रचलित है, लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले में होली से पहले खेला जाने वाला आग का रोमांचक खेल राल महोत्सव काफी रोमांचक है

जिले के कांकरोली स्थित पुष्टिमार्ग की तृतीय पीठ प्रन्यास के द्वारिकाधीश मंदिर में होली का उत्सव शुरु हो गए है, जिसे देखने के लिए गुजरात और महाराष्ट्र के अलावा प्रदेशभर से श्रृद्धालु पंहुचते है. कल रात्रि में राल महोत्सव का पहला आयोजन हुआ.

द्वारिकाधीश मंदिर के युवराज गोस्वामी वेदांत कुमार ने बताया कि जिससे आग के बड़े गुबार उठते है और धुआं निकलता है. यह धुंआ वहां मौजूद लोगों के शरीर मे श्वास के साथ प्रवेश करता है, इसके पीछे दो परंपराएं होती है. कहा जाता है सतयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने दावानल से पशु पक्षियों और बृजवासियों को बचाने के लिए जो दावानल का पान किया था, उसे भक्षण करके दुनिया की सुरक्षा की थी.

राल महोत्सव पूर्णिमा से होली जलने तक 8 बार आयोजित किया जाता है. इसके तहत मंदिर के गोवर्धन पूजा चौक में 2 विशाल मशालें जलाई जाती है, जिस पर 5 आयुर्वेदिक पदार्थों से बना मिश्रण फेंका जाता है, जो मंदिर परिवार के दो सदस्यों द्वारा किया जाता है.

राल महोत्सव स्वास्थ्य के नजरिए से बेहद महत्व है. चार माह की सर्दी के मौसम में हमारे शरीर मे कई तरह के बैक्टिरिया पनप जाते है, जिसे राजस्थान में कफ कहते है. ऐसा माना जाता है कि राल में डाले गए आयुर्वेदिक पदार्थों के धुएं से कफ व बैक्टिरिया का नाश होता है. इस खेल में रोमांच के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए हितकारी होता है.

गौरतलब है होलिका दहन के बाद यह प्रक्रिया नही की जाती है. मंदिर के कार्यवाहक अधिकारी विनित सनाढ्य बताते है कि पूर्व मे यह क्रम निज मंदिर के अन्दर ठाकुरजी के समक्ष किया जाता था, लेकिन दो वर्ष पूर्व कोरोना की गाइड लाइन और अधिक भीड़ के कारण सार्वजनिक रुप से नहीं किया जाता है. हालांकि मंदिर के अंदर का क्रम अनवरत जारी है.

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