Rajasthan News: राजस्थान के सांचौर और चितलवाना इलाके के किसान पिछले चार साल से अपनी हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. फसल बीमा क्लेम और आदान अनुदान की राशि न मिलने से हजारों किसान परेशान हैं. उन्होंने कई बार धरना दिया प्रदर्शन किया अधिकारियों को चिट्ठियां लिखीं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अब किसान फिर से 27 नवंबर को बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में हैं. उनकी आवाज अब और जोरदार होगी क्योंकि सहन की हद पार हो चुकी है.
88 करोड़ की राशि अटकी
इन इलाकों के किसानों का कहना है कि करीब 88 करोड़ रुपये का फसल बीमा क्लेम पिछले चार साल से लंबित है. यह पैसा 2022 से बकाया है लेकिन बीमा कंपनी ने अब तक एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी. किसानों ने बताया कि खराब मौसम और सूखे से फसलें बर्बाद हो गईं लेकिन कंपनी ने सर्वे के नाम पर सिर्फ कागजी काम किया और फाइलें दबा लीं.
इससे किसानों की कमर टूट गई है. खेती के लिए बीज उर्वरक और पानी की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है. कई किसान कर्ज में डूब चुके हैं और परिवार चलाना चुनौती बन गया है. उनका रोष बढ़ता जा रहा है क्योंकि बिना राहत के जीवन गुजारना नामुमकिन हो रहा है.
तीन साल में छह बार प्रीमियम वसूला
किसानों ने रिलायंस बीमा कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि कंपनी ने तीन साल के दौरान छह बार प्रीमियम की रकम वसूली लेकिन जब फसल खराब हुई तो क्लेम देने से मुकर गई. यह सरासर धोखा है किसानों के मुताबिक. कई ने तो अब बीमा करवाना ही बंद कर दिया क्योंकि जब मदद नहीं मिलती तो पैसा बर्बाद करने का क्या फायदा.
कंपनी के अधिकारी फोन नहीं उठाते और शिकायतों पर ध्यान नहीं देते. किसान पूछते हैं कि क्या बीमा सिर्फ पैसे कमाने का धंधा है या किसानों की मदद का साधन. यह स्थिति पूरे इलाके में बीमा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है.
2022 से आदान अनुदान बकाया सूची पर भी विवाद
बीमा क्लेम के साथ-साथ आदान अनुदान की राशि भी 2022 से अटकी हुई है. यह अनुदान फसल नुकसान पर मिलता है लेकिन सरकार ने इसे जारी नहीं किया. किसानों ने कई बार विरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. हाल ही में सरकार ने अभावग्रस्त गांवों की सूची जारी की जिसमें चितलवाना तहसील के कई गांवों में नुकसान 50 प्रतिशत से कम दिखाया गया है.
जबकि किसानों का दावा है कि सभी गांवों में फसलें पूरी तरह नष्ट हो गईं थीं. वे कहते हैं कि सर्वे गलत तरीके से किया गया और रिकॉर्ड में हेरफेर हुई. इस सूची से किसानों को और कम राहत मिलेगी जो उनके लिए बड़ा झटका है.
चार साल में कई आंदोलन लेकिन सुनवाई शून्य
पिछले चार सालों में किसानों ने सांचौर जालोर और चितलवाना में कई बार सड़क जाम की धरना दिया और अधिकारियों से मिले. उन्होंने लिखित शिकायतें दीं और बीमा कंपनी के दफ्तरों के चक्कर लगाए लेकिन सब व्यर्थ. किसानों का कहना है कि प्रशासन और शासन दोनों बहरा हो चुके हैं. उनकी आवाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा.
इससे इलाके में अविश्वास फैल गया है. कई किसान कहते हैं कि जब सरकार और कंपनी ही साथ नहीं देती तो बीमा और अनुदान का भरोसा कैसे करें. यह स्थिति किसानों को मजबूर कर रही है कि वे फिर से सड़क पर उतरें.
27 नवंबर को बड़ा धरना मांगें पूरी होने तक नहीं रुकेंगे
अब किसान 27 नवंबर को फिर से बड़ा विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं. गांव-गांव में बैठकें हो रही हैं और संगठन एकजुट हो चुके हैं. उनका कहना है कि यह आंदोलन अब तक का सबसे बड़ा होगा क्योंकि अब और बर्दाश्त नहीं. किसानों की मुख्य मांगें हैं:
2022 से लंबित बीमा क्लेम का फौरन भुगतान आदान अनुदान की राशि जल्द जारी करना बीमा कंपनी की प्रीमियम वसूली की जांच कराना फसल नुकसान का नया और निष्पक्ष सर्वे करवाना और अभावग्रस्त गांवों की सूची में बदलाव. वे कहते हैं कि जब तक ये मांगें पूरी नहीं होंगी आंदोलन जारी रहेगा.
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