Ground report on illegal mining in Aravali hills: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक अरावली अपनी पहचान खो रही है. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गढ़ी गई नई परिभाषा ने इसके अस्तित्व पर ही संकट पैदा कर दिया है. अब इस बात की आशंका जाहिर की जा रही है कि इससे अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियां और बढ़ेंगी. उत्तर में दिल्ली से दक्षिण के गुजरात तक फैली इस पर्वतमाला का दो-तिहाई हिस्सा राजस्थान से गुजरता है. लेकिन लगातार हो रहे अवैध खनन से अब अरावली का हिस्सा गायब हो रहा है. पढ़िए अरावली में हो रहे अवैध खनन की पड़ताल करती एनडीटीवी की ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट.
चोरी-छिपे चल रहा माइनिंग का खेल
अवैध खनन से हालात बुरी तरह बिगड़ चुके हैं. अलवर-एनसीआर का इलाका खनन से बुरी तरह प्रभावित है. क्रेशर की आवाज और डंपरों की आवाजाही के निशानों का पीछा करते हुए एनडीटीवी के रिपोर्टर खनन माफियाओं के गढ़ में पहुंचे. सबसे पहले हमारी टीम भानगढ़ के पास पहुंची. यहां कई खानें है, कागजों में ये बंद है. लेकिन इसके बावजूद आसपास रखी मशीनें और स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां चोरी छिपे अभी भी माइनिंग का खेल चल रहा है. जब यहां हमारी टीम को कई खान ऐसी मिली, जिसके ठीक पीछे अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियां है. लेकिन वहां जमी हुई मशीनें अवैध माइनिंग की गवाही दे रही थी.

सरिस्का के क्षेत्र में खनन माफियाओं की दबंगई
इसके बाद हमारी टीम सरिस्का अभ्यारण्य क्षेत्र के टहला के पास पहुंची. यहां लोगों से खान तक जाने का रास्ता पहुंचा तो लोगों ने मना कर दिया और वहां जाने से भी रोका गया. लोगों ने बताया, "इलाके में खनन माफियाओं की दबंगई करते हैं. इसलिए कोई उनके बारे में कुछ नहीं बता सकता, ना ही हम साथ चल सकते हैं. यहां आए दिन खनन माफिया उनके खिलाफ बोलने वाले लोगों यहां तक कि पुलिसकर्मियों और आरटीओ के अधिकारियों पर भी हमला कर देते हैं."
कई खेतों के रास्ते से जब एक माइंस के पास पहुंचे तो देखा कि वहां कुछ लोग काम भी कर रहे थे. जब कैमरे पर इन्हें रिकॉर्ड करना शुरू किया तो कुछ लोगों ने आवाज देकर रोकने की कोशिश की. इसके बाद वे लोग काफी दूर तक टीम को देखते रहे और पीछा करने की कोशिश भी की. यहां जगह-जगह पर कई खानें बनी हुई है. कुछ इसी तरह का हाल सीकर के नीमकाथाना का है.
पिछले 2 दशकों में 35 फीसदी हिस्से को नुकसान
पर्यावरणविदों के मुताबिक, पिछले दो दशकों में अरावली के करीब 35% हिस्से को नुकसान पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में CEC की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 तक राजस्थान में अरावली की 25 प्रतिशत प्रभावित नष्ट हो चुकी है. अवैध खनन और अतिक्रमण के खतरों के बीच, पर्यावरण मंत्रालय की अरावली के संरक्षण को लेकर दी गई एक नई परिभाषा ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है. दरअसल, पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में नए सुझावों का ड्राफ्ट पेश किया है. इसके मुताबिक अब केवल 100 मीटर ऊंचाई वाली पर्वतमाला को ही अरावली का संरक्षित हिस्सा माना जाएगा.

नई परिभाषा के बाद 90 फीसदीपहाड़िया अरावली से बाहर
इस नए नियम के लागू होने से अरावली का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा अब मूल पर्वतमाला का हिस्सा नहीं माना जाएगा. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया की इंटरनल असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान के 15 जिलों में अरावली की 12 हजार 81 पहाड़िया 20 मीटर से ऊंची है. इनमें से केवल 1 हजार 48 यानी 8.7% ही 100 मीटर से ऊंची है. आंकड़ों के मुताबिक 1 हजार 594 पहाड़िया 80 मीटर, 2 हजार 656 पहाड़िया 60 मीटर, 5 हजार 9 पहाड़िया 40 मीटर से ऊंची है. वहीं, लगभग 1 लाख 7 हजार 494 पहाड़िया 20 मीटर की ऊंचाई तक है यानी केवल राजस्थान में ही करीब 1 लाख 16 हजार 753 पहाड़िया जो कि 100 मीटर से कम है. अब संरक्षित अरावली की परिभाषा से बाहर हो गई है.
समुद्र तल से पहाड़ी की ऊंचाई मापना गलत- एक्सपर्ट
पर्यावरणविद एल के शर्मा का कहना है कि पर्यावरण मंत्रालय की जो नई परिभाषा है, उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. पहली बात तो यह है कि इस परिभाषा में अरावली की पहाड़ी की ऊंचाई मानक समुद्र तल से ना मापकर जमीन से मापी जा रही है, जो कि गलत है. दूसरा, इस नियम से जो भी 100 मीटर ऊंचाई से कम की पहाड़ियां हैं, उन पर खनन की खुली छूट मिल जाएगी. इससे अवैध खनन भी बढ़ेगा और अरावली नष्ट हो जाएगी. सामाजिक कार्यकर्ता और पीपल फॉर अरावली की संस्थापक सदस्य नीलम आहलूवालिया ने चेतावनी दी है कि अब इसके खिलाफ जन अभियान शुरू किया जाएगा.
आखिर क्यों जरूरी है अरावली?
अरावली की पहाड़ियां राजस्थान में भूजल रिचार्ज करने के लिए अहम योगदान निभाती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, अरावली सालाना करीब 20 लाख लीटर प्रति हेक्टेयर भूजल रिचार्ज करने में योगदान देती हैं. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से इस पर्वतमाला के कारण ही पूरे राजस्थान में बरसता है. अगर यह पर्वतमाला ना हो तो मानसून प्रदेश की बजाय पाकिस्तान में जाकर बरसे. साथ ही पर्वतमाला की करीब 692 किमी लंबी रेंज राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के लिए ढाल की तरह काम करती है. यह पर्वतमाला रेगिस्तान से आने वाली धूल और कार्बन पार्टिकल को भी रोकती है.
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