Donkey's Population In Rajasthan: एक ज़माने में गधे को बोझा ढोने का आसान साधन समझा जाता था. गधे पर कितना ही बोझ डाला जाए तो वह झेल लेता है. यही वजह है कि हज़ारों सालों तक बोझा ढोने के मामले में गधा इन्सान का साथी बना रहा. जब तक इन्सान गधों को अपना साथी समझता रहा, तब तक उनकी संख्या भी उपयोग के अनुपात में ठीक रही. लेकिन जैसे-जैसे वज़न ढोने के मामले में गधों की उपयोगिता घटती गई, वैसे-वैसे इनकी तादाद में भी कमी आने लगी.
मेलों में गधों की तादाद हुई कम
गधों की कमी का प्रभाव कई स्तरों पर देखा जा रहा है. जिसकी वजह से जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है. राजस्थान में शारदीय नवरात्रों पर लगने वाले खलकाणी मेले में किसी समय 20 से 25 हजार गधे बिकने आते थे. लेकिन अब इसकी तादाद 15 से 20 ही रह गई है. देश में कुल 1 लाख 20 हजार गधे ही बचे हैं. यूनाइटेड किंगडम की संस्था ब्रूक इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में गधों की स्किन और गधी के दूध से सौन्दर्य प्रसाधन बनाये जा रहे हैं. कई जगह तो इसका उपयोग मर्दानगी बढ़ाने के लिए जा रहा है.
बीकनेर में हो रहा संरक्षण
पिछले कुछ सालों में देश में गधों की संख्या में काफ़ी कमी आई है लेकिन दूसरी ओर गधों को बचाने की जद्दोजहद भी जारी है. बीकानेर के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र में गधों का जीवन बचाते हुए उनका संरक्षण किया जा रहा है. केन्द्र ने गधों की नई-नई नस्लों का संवर्धन कर उनका संरक्षण करने में अपना योगदान दिया है. केन्द्र के हेड डॉ. शरत चन्द्र मेहता बताते हैं कि राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र में गधों की कई नस्लों को भी डेवेलप किया गया है.
देश में बचे हैं सिर्फ 1 लाख 20 हजार गधे
वर्तमान में देश में सिर्फ़ एक लाख बीस हज़ार गधे बचे हैं. इस रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के हेड डॉ. शरत चन्द्र मेहता ने भारत सरकार को गधों के नस्ल संवर्द्धन और उन्नत नस्लें विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट बना कर भेजे हैं. केन्द्र के वैज्ञानिक नई-नई तकनीकों से गर्दभों के उपयोग और उनकी नस्लों को बेहतर बनाने में लगे हैं. कई एकड़ ज़मीन में फैले राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के पास जहां बेहतरीन प्रयोगशालाएं हैं, वहीं देश के टॉप स्तर के वैज्ञानिकों की टीम गधों की नस्लों को उन्नत करने की रिसर्च में लगी रहती है.
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