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Janmashtami 2024: श्रीकृष्ण का जैसलमेर से है अनूठा रिश्ता, कृष्ण के 116वें वंशज ने बसाया था शहर

Janmashtami 2024: जैसलमेर की स्थापना कृष्ण वंशज भाटी शासक ने की थी. आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है तो आइए आपको बताते हैं भगवान श्रीकृष्ण का कलयुग के जैसलमेर से क्या है रिश्ता.

Janmashtami 2024: श्रीकृष्ण का जैसलमेर से है अनूठा रिश्ता, कृष्ण के 116वें वंशज ने बसाया था शहर
जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलमेर की पेंटिंग.

Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण का जैसलमेर से पुराना रिश्ता है. इन सब कहानियों और किस्सों का गवाह है, यहां का इतिहास और मौजूदा प्रमाण. कई इतिहासकारों ने इनका उल्लेख अपनी कृतियों में किया है. इन प्रमाणों में से एक है थार के रेगिस्तान के बीच बसे जैसलमेर की त्रिकूट पहाड़ी (वर्तमान में त्रिकूटगढ़ या सोनार दुर्ग) पर बना प्राचीन जैसलू कुआं. सोनार दुर्ग में लक्ष्मीनाथ जी के मंदिर के पास स्थित जैसलू कुआं करीब 5 हजार साल से ज्यादा पुराना है. इस कुएं की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

'महारावल जैसलदेव' ने की थी जैसलमेर की स्थापना 

इतिहासकार तने सिंह सोढ़ा के अनुसार, प्राचीन काल में मथुरा से द्वारिका जाने का रास्ता जैसलमेर से होकर निकलता था. एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन इसी रास्ते से द्वारिका जा रहे थे. इस दौरान अर्जुन को प्यास लगी. आसपास कहीं पानी नहीं था. तब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से यहां पर कुआं खोद दियाऔर अर्जुन की प्यास बुझाई.

पानी पीने के पश्चात अर्जुन ने जब श्री कृष्ण से सवाल किया कि यहां कुआं तो खुद दिया. लेकिन, इसकी भविष्य में उपयोगिता क्या होगी. तभी, भगवान श्रीकृष्ण ने भविष्यवाणी की थी कि मेरे वंशज यहां आकर अपना राज्य बसाएंगे और शासन करेंगे. यह करीब 5 हजार साल से भी अधिक पुरानी घटना बताई जाती है.

इसी त्रिकूट पहाड़ी पर कृष्ण के 116 वंशज 'महारावल जैसलदेव' ने जैसलमेर की स्थापना की. इस घटना का उल्लेख इतिहासकारों ने 'नैणसी री ख्यात' पुस्तक में भी किया है, जो इस घटना को प्रमाणित करता है.

श्री कृष्ण से लेकर अब तक वंशज का नाम लिखा है.  वर्तमान महारावल का नाम इसमें नहीं लिखा है. उनका नाम चैतन्यराज सिंह है.

श्री कृष्ण से लेकर अब तक वंशज का नाम लिखा है. वर्तमान महारावल का नाम इसमें नहीं लिखा है. उनका नाम चैतन्यराज सिंह है.

त्रिकूट पहाड़ी पर कृष्ण के 116 वंशज 'महारावल जैसलदेव' ने जैसलमेर की स्थापना की. इस घटना का उल्लेख इतिहासकारों ने 'नैणसी री ख्यात' पुस्तक में भी किया है, जो इस घटना को प्रमाणित करता है.

इतिहास के पन्नों में है इसका जिक्र 

मेहता अजीत ने अपने 'भाटीनामे' में लिखा कि एक शिलालेख पर जैसलमेर के बसने की भविष्यवाणी बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी. शिलालेख में लिखा गया था,  "जैसल नाम का जदुपति, यदुवंश में एक थाय, किणी काल के मध्य में, इण था रहसी आय " इसका तात्पर्य यह है कि जैसल नाम का राजा यहां आकर अपनी राजधानी बनाएगा. ऐसा ही हुआ इस त्रिकूट गढ़ पर महारावल जैसल ने संवत 1212 में सोनार दुर्ग की नींव रखी और विशाल दुर्ग बनाया. प्राचीन काल में दुर्गवासी जैसलू कुएं से अपनी प्यास बुझाते थे.

जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलमेर की पेंटिंग.

जैसलमेर के संस्थापक महारावल जैसलमेर की पेंटिंग.

शिलालेख में लिखा गया था,  "जैसल नाम का जदुपति, यदुवंश में एक थाय, किणी काल के मध्य में, इण था रहसी आय " इसका तात्पर्य यह है कि जैसल नाम का राजा यहां आकर अपनी राजधानी बनाएगा. ऐसा ही हुआ इस त्रिकूट गढ़ पर महारावल जैसल ने संवत 1212 में सोनार दुर्ग की नींव रखी और विशाल दुर्ग बनाया. प्राचीन काल में दुर्गवासी जैसलू कुंए से अपनी प्यास बुझाते थे.
महारावल चैतन्य राज सिंह कि फोटो उनकी इंस्टाग्राम वॉल से लिया गया है.

महारावल चैतन्य राज सिंह कि फोटो उनकी इंस्टाग्राम वॉल से लिया गया है.

जैसलमेर राजपरिवार भगवान श्रीकृष्ण के वंशज

इतिहासकारों ने लिखित वंश परंपरा में जैसलमेर के राजघराने का सीधा संबंध श्रीकृष्ण से जोड़ा है. इतिहासकारों के अनुसार, जैसलमेर के भाटी शासक श्रीकृष्ण के वंशज हैं. वर्तमान महारावल चैतन्यराज सिंह श्रीकृष्ण के 159वीं पीढ़ी के वंशज हैं. भगवान श्रीकृष्ण के बाद उनके कुछ वंशधर हिन्दुकुश के उत्तर में और सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थे. वह स्थान 'यदु की डाँग' कहलाया. यदु की डांग से जबुलिस्तान, गजनी, सम्बलपुर होते हुए सिंध के रेगिस्तान में आये और वहां से लंघा, जामडा और मोहिल कौमो को निकाल कर तनौट, देरावल, लोद्रवा और जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाई.

मेघाडंबर छत्र और तख्त.

मेघाडंबर छत्र और तख्त

मेघाडंबर छत्र और तख्त आज भी जैसलमेर के राजपरिवार के पास

भगवान श्रीकृष्ण के असली वंशज वर्तमान में जैसलमेर के भाटी शासक है. इसका प्रमाण है कि देवराज इंद्र द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया मेघाडंबर छत्र और तख्त आज भी जैसलमेर के राजपरिवार के पास है.जैसलमेर में राजतिलक के वक्त महारावल उस पर विराजते हैं. यह मेघाडंबर छत्र व तख्त आज भी जैसलमेर किले के म्यूजियम में सुरक्षित रखा हुआ है. इतना ही नहीं जैसलमेर रियासत कालीन राजकीय ध्वज में भी मेघाडंबर छ्त्र का चिह्न बना हुआ है.

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