
मंगलवार को उच्चतम न्यायलय ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए ओरण की ज़मीन की सुरक्षा और उसकी पहचान करने के लिए राजस्थान सरकार को एक कमिटी बनाने का आदेश दिया है. यह फैसला न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन मसीह की पीठ ने सुनाया है. राजस्थान में और ख़ास तौर पर पश्चिमी राजस्थान में ओरण भूमि का सामजिक और धार्मिक महत्व रहा है. ओरण भूमि की शिनाख्त और उस पर क़ब्ज़े की बार बार बातें होती रही हैं. जिसके खिलाफ स्थानीय लोगों ने कई बार'ओरण बचाओ आंदोलन' भी किए हैं.
मामला क्या था?
18 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने देवबन ओरण की देखरेख और संरक्षण के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया था. इसके बाद 9 जनवरी 2025 को राजस्थान सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने सदस्यों का नामांकन कर वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को प्रस्ताव भेज दिया है और मंत्रालय से भी नामांकन मांगा है.

ओरण मवेशियों के विचरण के लिए बहतरीन जगहें हैं.
हालांकि, 16 जनवरी और फिर 16 अप्रैल 2025 को कोर्ट के आदेशों के बावजूद वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपना प्रतिनिधि नामित नहीं किया. इस देरी की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल को वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव तन्मय कुमार को अवमानना का नोटिस जारी किया था. हालांकि आज की सुनवाई उस अवमानना नोटिस को ख़त्म कर दिया गया.
आज की सुनवाई में क्या हुआ?
आज की सुनवाई में तन्मय कुमार ख़ुद कोर्ट में पेश हुए और एक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें बताया गया कि समिति का गठन अब पूरा हो चुका है.इस दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जितेन्द्र राय गोयल को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है और राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित सभी सदस्यों को मंजूरी दे दी गई है.

ओरण भूमि का अभी तक कोई राजस्व रिकॉर्ड नहीं है.
यह समिति देवबन ओरण के संरक्षण, सुरक्षा और सतत प्रबंधन पर नजर रखेगी और राजस्थान के वन विभाग के साथ मिलकर काम करेगी. कोर्ट ने माना कि मंत्रालय की ओर से हुई देरी अनावश्यक थी. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अब समिति तुरंत अपना काम शुरू करे और राजस्थान सरकार पूरी सहायता दे.
ये होंगे कमिटी के सदस्य
राजस्थान सरकार द्वारा गठित एक समिति में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जितेन्द्र राय गोयल, राजस्थान हाईकोर्ट को अध्यक्ष बनाया गया है. समिति में उप महानिरीक्षक (वन्यजीव), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF); एम.आर. बलोच, पूर्व प्रमुख मुख्य वन संरक्षक एवं निदेशक, AFRI जोधपुर; सेटलमेंट कमिश्नर, राजस्थान सरकार; तथा मुख्य वन संरक्षक (WP&FS), राजस्थान सरकार को सदस्य बनाया गया है. मुख्य वन संरक्षक (WP&FS) इस समिति के सदस्य-संयोजक होंगे.
क्या होती है ओरण भूमि ?
ओरण वो लघु वन क्षेत्र है, जिसे देवी देवताओं के मंदिर के पास जंगल के रूप में जीव जन्तु, वन्यजीव व पशुओं के विचरण व चरने के लिए सैंकड़ों सालों से छोड़ा जाता रहा है. इससे लोगों की आस्था भी जुड़ी है. मान्यता है कि इस ओरण में पेड़ की एक डाल भी तोड़ने पर पाबंद है और अगर कोई भूलवश भी ऐसा करता है तो दंड के रूप में यहां चांदी या सोने की डाल मंदिर में चढ़ावे के रूप में भेंट करते हैं.

पश्चिमी राजस्थान में ओरण की सैंकड़ों एकड़ ज़मीन है.
रेगिस्तानी इलाकों में ओरण ही पर्यावरण में बेलेंस बनाए रखने के इकलौते स्त्रोत हैं. यहां के मवेशी इन ओरणों में चरने जाते हैं, जिससे उनकी नस्ल बेहतर होती हैं. रियासतकाल में यहां वन्यजीवों का शिकार भी प्रतिबंधित था, इस वजह से आज भी कुछ ओरणों में गोडावण, चिंकारा और प्रवासी पक्षियों की आवाजाही बनी रहती है
ओरण क्यों चढ़ गए विवादों की भेंट ?
ओरण के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज ने होने से काफी भूमि कंपनियों को अलॉट हुई. वहीं ओरण में से कई हाईटेन्शन लाइनें निकली गईं, जिससे वन्यजीव इसकी चपेट में आकर काल का ग्रास बन रहे थे. इसको लेकर ग्रामीणों व पर्यावरण प्रेमियों में काफी आक्रोश था. इसके खिलाफ कई बार स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन भी किया. उनका कहना है कि ओरण ज़मीनों पर अतिक्रमण हो रहा है. साथ ही उनकी पहचान नहीं होने से कई कब्ज़े लगातार बढ़ रहे हैं.