MNREGA: रेतीले रेगिस्तान में पानी की हर बूंद अनमोल है और बाड़मेर जिले में महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत बने पानी के टांके ग्रामीणों के लिए जीवन का आधार हैं. ये टांके न केवल वर्षा जल संग्रहण कर पेयजल, पशुपालन और सिंचाई की जरूरतें पूरी करते हैं, बल्कि रोजगार का साधन भी हैं, लेकिन दीपावली के दिन सरकार के एक आदेश ने इन टांकों पर रोक लगा दी. जिससे ग्रामीणों में गुस्सा और चिंता व्याप्त है.
रेत धोरों के बीच बसी ढाणियों में पानी के टैंकरों का पहुंचना मुश्किल है, ऐसे में नरेगा के तहत बने लाखों टांके ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हुए थे. स्थानीय लोग इनमें बारिश का पानी संग्रह करते हैं, जो साल भर उनके, उनके मवेशियों और पेड़-पौधों की जरूरतें पूरी करता है. बुजुर्ग बताते हैं कि पहले 10-15 किलोमीटर दूर से सिर पर घड़ा या ऊंटों पर पानी लाना पड़ता था, लेकिन टांकों ने उनकी जिंदगी बदल दी.
सरकार का 'तुगलकी फरमान', विपक्ष का हमला
सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है. बाड़मेर-जैसलमेर-बालोतरा सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल और बायतु विधायक हरीश चौधरी ने इसे आमजन की पीठ में खंजर घोंपने वाला कदम बताया. विपक्ष का कहना है कि यह आदेश ग्रामीणों की जीवन रेखा पर कुठाराघात है.
पंचायती राज मंत्री का जवाब
पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने सफाई दी कि टांका निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायतें थीं, जिनकी जांच चल रही है. जांच पूरी होने के बाद निर्माण कार्य फिर शुरू होगा.
ग्रामीणों की मांग: टांका निर्माण बहाल हो
सुदूर ढाणियों तक यह खबर पहुंचने के साथ ही ग्रामीण सरकार से नरेगा योजना में टांका निर्माण फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि टांकों ने न केवल जल संकट का समाधान किया, बल्कि उनकी जिंदगी को नई दिशा दी. सरकार के इस फैसले ने रेगिस्तान में जीवन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
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