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मेडिकल कॉलेजों में नहीं थम रहा रैगिंग का 'डर्टी गेम', हाईकोर्ट ने सरकार और विभाग को भेजा नोटिस

मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग रोकने के इंतजाम नाकाफी रहे हैं. वहीं नए खुले कॉलेज में मूलभूत सुविधाओं की कमी रही है. इस सम्बन्ध में हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब है, साथ ही जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी.

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मेडिकल कॉलेजों में नहीं थम रहा रैगिंग का 'डर्टी गेम', हाईकोर्ट ने सरकार और विभाग को भेजा नोटिस
राजस्थान हाईकोर्ट
जोधपुर:

राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश डॉ. जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी व जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ ने स्टूडेंट्स के साथ रैगिंग के मामले में फिर एक बार संज्ञान लिया है. प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में नए मेडिकल स्टूडेंट्स के साथ रैगिंग रोकने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हो रहे हैं. साथ ही इस संबंध में ठोस कदम नहीं उठाने के मामले में दायर जनहित याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए राज्य सरकार व चिकित्सा विभाग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

इसके अलावा याचिका में नए खुले मेडिकल कॉलेज में पेयजल सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव का भी मुद्दा उठाया गया है. इस मामले में अगली सुनवाई 29 जनवरी को होनी है. याचिकाकर्ता बनाराम पंवार की ओर से अधिवक्ता श्याम पालीवाल ने जनहित याचिका दायर कर कोर्ट को बताया, कि मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए नेशनल एंट्रेस इलिजिबिलटी टेस्ट (नीट) हर साल मई-जून में आयोजित होता है.

जिसके जरिए प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष में 5 हजार प्रवेश होते हैं. इसमें 15 प्रतिशत सीटें ऑल इंडिया कोटे से होती है. बाकी राजस्थान की होती है. नए प्रवेश लेने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स को रैगिंग से गुजरना पड़ता है. उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है और पीड़ित छात्र व फैमिली को स्ट्रेस गुजरना पड़ता है.

रैगिंग को रोकने के लिए एंटी रैगिंग कमेटी बनाई गई, लेकिन उसके प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं

अधिवक्ता पालीवाल ने कोर्ट के यह भी ध्यान में लाया, कि नया बैच शुरू होने से पहले द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष के स्टूडेंट्स को 15 दिन की छुट्‌टी पर भेज दिया जाता है. लेकिन यह कोई स्थाई हल नहीं है. छुट्‌टी से लौटने के बाद कुछ सीनियर स्टूडेंट्स फिर से फ्रेशर्स की रैगिंग लेते हैं. जब यह बात पीड़ित छात्रों द्वारा एंटी रैगिंग कमेटी या मेडिकल कॉलेज प्रशासन को बताई जाती है तो उन्हें यह रिवाज या प्रक्रिया होने की बात कहकर चुप करा दिया जाता है. 

पीड़ित छात्रों के पैरेंट्स को भी बच्चों के डॉक्टर बनने का भविष्य खराब होने का भय दिखाया जाता है, तो वे भी मन मसोस कर रह जाते हैं. अधिवक्ता पालीवाल ने कोर्ट को यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के बाद एमसीआई ने वर्ष 2009 में रेगुलेशन बनाए थे. इसमें सजा के प्रावधान भी किए गए हैं.

जस्टिस भाटी व जस्टिस सोनी की खंडपीठ ने सरकार  को नोटिस जारी कर 29 जनवरी तक जवाब तलब किया है.

इन रेगुलेशन की भी सख्ती से पालना नहीं करवाई जा रही है. रैगिंग के 99 प्रतिशत मामले में तो रिपोर्ट भी नहीं होते हैं, केवल 1 प्रतिशत मामले रिपोर्ट होते हैं. दोषी स्टूडेंट्स को 15 दिन के लिए कॉलेज से निलंबित कर दिया जाता है. और फिर शिकायतकर्ता पैरेंट्स समझौता कर लेते हैं और शिकायत वापस ले ली जाती है. 

पालीवाल ने कोर्ट से आग्रह किया कि रैगिंग रोकने के लिए बनाए गए रेगुलेशन की पालना करवाई जाए व नियमानुसार एंटी रैगिंग कमेटी गठित की जाए. इसके अलावा यह भी रिपोर्ट मंगवाई जाए कि कितने कॉलेज में कमेटी गठित हुई है या नहीं. कमेटी को कितनी शिकायतें प्राप्त हुई है और कितने में कार्रवाई की गई है. इसी तरह पुलिस में रैगिंग के कितने मामले दर्ज हुए और उनमें से कितने निस्तारित किए गए हैं. 

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