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Dadi Ratanmohini Last Rites: ब्रह्माकुमारीज संस्थान में दादियों के युग का अंत, पंचतत्व में विलीन हुआ दादी रतनमोहिनी का पार्थिव शरीर

Ratan Mohini Dadi Ka Antim Sanskar: दादी रतनमोहिनी के अंतिम संस्कार की क्रिया देखने के लिए लोग बिल्डिंग की छतों पर चढ़ गए थे.

Dadi Ratanmohini Last Rites: ब्रह्माकुमारीज संस्थान में दादियों के युग का अंत, पंचतत्व में विलीन हुआ दादी रतनमोहिनी का पार्थिव शरीर
दादी रतनमोहिनी के अंतिम संस्कार की क्रिया देखने के लिए लोग बिल्डिंग की छतों पर चढ़ गए थे.

Rajasthan News: 101 साल तक मानवता की सेवा में जुटी रहने वालीं दुनिया के सबसे बडे़ आध्यात्मिक संगठन ब्रह्माकुमारीज की मुखिया राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी 10 अप्रैल को पंचतत्व में विलीन हो गईं. इस मौके पर कई देशों के लोग हजारों की संख्या में जुटे थे. इस दौरान संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयेागिनी बीके मुन्नी, बीके संतोष, सांसद लुम्बाराम चौधरी, बीजेपी जिलाध्यक्ष रक्षा भंडारी, अतिरिक्त महासचिव बीके करुणा, बीके मृत्युंजय समेत बड़ी संख्या में लोंगों ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी. उनके निधन पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता समेत कई प्रदेशों की मुख्यमंत्रियों ने अपनी श्रद्धांजलि दी है.

8 अप्रैल को हुआ था निधन

राजयेागिनी दादी रतनमोहिनी का 8 अप्रैल, 2025 को प्रातः 1:20 मिनट पर देवलोकगमन हो गया था. उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए कई देशों के लोगों का सैलाब उमड़ था. दादी रतनमोहिनी अपने 13 वर्ष की उम्र में इस संस्थान के सम्पर्क में आयी थीं. तब से लेकर उन्होंने एक साधारण ब्रह्माकुमारीज से मुख्य प्रशासिका बनने तक का सफर तय किया था. चार साल पहले ही दादी को मुख्य प्रशासिका का दायित्व मिला था. इसके पहले भी वे युवा प्रभाग की अध्यक्षा के साथ ही ब्रह्माकुमारीज संस्थान में समर्पित होने वाली युवा बहनों के प्रशिक्षण का भी दायित्व संभाल रही थीं. इसके साथ ही उन्होंने देश ही नहीं दुनिया कई देशों में भ्रमण कर भारतीय संस्कृति और सभ्यता का बीज बोया है.

दादी के जाने से ब्रह्माकुमारीज संस्थान में दादियों के युग का अंत हो गया.

ब्रह्मा बाबा के साथ 32 साल का लंबा सफर

1950 का वह दौर जब ब्रह्माकुमारीज का स्थानांतरण माउंट आबू हुआ था. उस वक्त दादी की आयु मात्र 26 साल थी. संस्थान में मात्र 350 लोग थे. दादी रतनमोहिनी युवावस्था में पहली बार ब्रह्मा बाबा के साथ माउंट आबू आईं थीं. विश्व सेवा और युवाओं को सद्मार्ग पर लाने की ऐसी धुन लगी कि सदा के लिए यहीं की होकर रह गईं. उन्होंने अपना पूरा जीवन युवा सशक्तिकरण, युगा जागृति में लगा दिया. युवाओं से विशेष प्रेम, स्नेह के चलते आपको सभी युवाओं की दादी कहकर पुकारते थे.

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