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जयपुर RTO में क्यों अटकी है हजारों लाइसेंस की प्रक्रिया, सामने आई थी परिवहन विभाग में गड़बड़ी की रिपोर्ट

जयपुर आरटीओ में बीते 12 जुलाई से ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रैक का सॉफ्टवेयर खराब है. इस वजह से करीब 6 से 8 हजार लाइसेंस की प्रक्रिया अटकी हुई है.

जयपुर RTO में क्यों अटकी है हजारों लाइसेंस की प्रक्रिया, सामने आई थी परिवहन विभाग में गड़बड़ी की रिपोर्ट
Jaipur RTO

Rajasthan News: राजस्थान में परिवहन विभाग में गड़बड़ी की रिपोर्ट सामने आई थी. जब राजस्थान विधानसभा सत्र में CAG की रिपोर्ट पेश हुई थी. रिपोर्ट में परिवहन विभाग से जुड़ी कई गड़बड़ियों की रिपोर्ट सामने आई थी. हालांकि यह मामला वाहन के रजिस्ट्रेशन से जुड़ा हुआ था. जो पूरे प्रदेश के अलग-अलग परिवहन विभाग का था. वहीं इन दिनों राजधानी जयपुर स्थित RTO में हजारों लाइसेंस की प्रक्रिया अटकने का मामला सामने आया है. 

बताया जा रहा है कि जयपुर आरटीओ प्रथम में इन दिनों लाइसेंस प्रक्रिया प्रभावित होते दिखाई दे रही है. 12 जुलाई से लाइसेंस की प्रक्रिया अटकी है और करीब 6 से 8 हजार लाइसेंस प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है. 

क्यों अटकी है लाइसेंस की प्रक्रिया

जयपुर आरटीओ में बीते 12 जुलाई से ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रैक का सॉफ्टवेयर खराब है. इस वजह से करीब 6 से 8 हजार लाइसेंस की प्रक्रिया अटकी हुई है. जबकि पहले एक दिन में करीब 150 लाइसेंस की ट्रायल की जाती थी. लेकिन बीते करीब 17 दिनों से ड्राइविंग टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं. जयपुर आरटीओ गणपत पुन्नड ने बताया कि विभाह की ओर से इंजीनियर की टीम लगी हुई है. जल्द ही सॉफ्टवेयर के कामकाज को ठीक करवा लिया जाएगा. इसके बाद लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. हालांकि अब तक सॉफ्टवेयर ठीक करने में सफलता नहीं मिली है. जैसे ही सॉफ्टवेयर दुरुस्त हो जाएगा हम आम जनता को इसके बारे में जानकारी देंगे.

CAG की रिपोर्ट में हुआ था खुलासा

विधानसभा में पेश हुए CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि परिवहन विभाग में इस दौरान डेटा एंट्री में भारी त्रुटियां हुई है. जिसके चलते वाहनों की ग़लत एंट्री हुई है. कैग की पड़ताल में वाहनों की ख़रीद से पहले ही गाड़ियों के पंजीकरण के 119 मामले सामने आये हैं. इन मामलों में वाहनों की ख़रीद से 74 दिन पहले ही गाड़ी पंजीकृत हो चुकी थी. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि डुप्लीकेट चेसिस या डुप्लीकेट इंजन नंबर वाले ये 712 वाहन भी विभाग में पंजीकृत किए गए हैं. आंकड़ों के विश्लेषण से ये साफ़ हुआ कि क़रीब 25,000 ऐसे मामले थे जिनमें ग़लत तरीक़े से प्रदूषण प्रमाण पत्र जारी किए गए.

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