
Rajasthan News: मौजूदा समय में ऑर्गेनिक खेती का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है. बाजार में कैमिकल इस्तेमाल की गई सब्जियां काफी अधिक मात्रा में आने लगे हैं. ऐसे में काफी अधिक लोग इससे बचना चाहते हैं और इसलिए वह चाहते हैं कि वह खुद सब्जियां उगाएं. लेकिन कम जगह, मिट्टी और पानी के अभाव में शहरी क्षेत्र में सब्जियां उगाना संभव नहीं है. लेकिन इसे संभव किया जा सकता है हाइड्रोपोनिक फॉर्मिंग के जरिए. बगैर मिट्टी के, कम जगह में बड़ी मात्रा में सब्जी और औषधि पैदा करने वाली खेती हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के जरिए की जा सकती है. यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें सिर्फ पानी के प्रयोग से ही खेती की जाती है. वहीं, तकनीक के प्रयोग से पानी का दुरुपयोग भी नहीं होता है.
18 सब्जियां और 1 औषधीय पौधे का सफल उत्पादन
झालावाड़ के वानिकी एवं उद्यानिकी महाविद्यालय ने इस तकनीक को इतना उन्नत कर लिया है कि अब आम खेती के मुकाबले इसमें मात्र 10% ही पानी की खपत होती है. वैसे खेती की यह पद्धति पुरानी ही मानी जाती हैं, लेकिन इसका प्रचलन बिलकुल न के बराबर रहा है, लेकिन झालावाड़ के इस कॉलेज में इस खेती को एक नवाचार के रूप में लिया और इसमें कई परिवर्तन किये. अब झालावाड़ के उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज में हाइड्रोपोनिक खेती का प्रयोग सफल हो गया हैं. जिसमें हॉर्टिकल्चर कॉलेज ने 18 सब्जियां और 1 औषधीय पौधे का सफल उत्पादन करने में कामयाबी हासिल की है.
छोटी सी जगह में हो सकती है हाइड्रोपोनिक खेती
उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज के डीन आईबी मौर्य इस उपलब्धि को अहम मानते हैं. इस खेती से संबंधित बारिकियों को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक खेती का सीधा सा अर्थ है, कम क्षेत्रफल और संसाधनों में अधिक उत्पादन करना. इसे बिना मिट्टी से की जाने वाली खेती भी कहा जाता है. हाइड्रोपोनिक खेती में बिना जमीन के छोटी सी जगह में पानी की बचत करते हुए अधिक उत्पादन किया जाता है. जैसा कि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कम जगह में, बगैर मिट्टी के पानी में घुले पोषक तत्वों से की जाने वाली यह खेती बेहद लाभकारी साबित हो सकती रही है.

कैसे होती है हाइड्रोपोनिक फार्मिंग
इसके लिए जरूरी संसाधनों में वाटर टैंक, पानी की मोटर, पानी में हवा पहुंचाने के लिए एरेटर की जरूरत पड़ती है. इनको व्यवस्थित रूप से तैयार करने के बाद पौधों को एक प्लास्टिक के डिब्बे में जिसमें साइड और नीचे से छेद रहते हैं. उनमें रखा जाता है तथा उनको बनाए गए ढांचे में रख दिया जाता है. हाइड्रोपोनिक का ढांचा सुविधानुसार हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल दोनों तरीके से बनाया जा सकता है, इनमें हर घंटे पानी की सप्लाई की जाती है.
डीन ने बताया कि पौधों के लिए 16 तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटाश और सल्फर है. जिनको जरूरत के अनुसार सीधे पानी में घोल दिया जाता है. जो पौधों में पहुंच जाते हैं. दरअसल, मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है जिससे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन नहीं मिल पाता है और इसी कमी को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग दूर करती है. इसमें पोषक तत्वों को आसानी से जरूरत के अनुसार सीधा पौधे के अंदर पहुंचा दिया जाता है.
विशेषज्ञो से प्राप्त जानकारी के अनुसार हाइड्रोपोनिक खेती के दौरान सबसे ज्यादा सावधानी पीएच और टीडीएस की मात्रा में रखा जाना चाहिए. पौधों को जो पानी दिया जा रहा है उसका पीएच 7 से ज्यादा नहीं होना चाहिए और टीडीएस की मात्रा 1500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
हाइड्रोपोनिक खेती के वाले फायदे
इस खेती में सबसे बड़ा फायदा पानी और जगह का होता है. सामान्य खेती में जहां एक बीघा के लिए 20 लाख लीटर की पानी जरूरत होती है वहीं यह तकनीक इसे काफी कम कर देती है. हाइड्रोपोनिक खेती में 2.50 लाख लीटर पानी से ही काम चल जाता है. इसके अतिरिक्त कम जगह में अच्छी फसल इसकी खूबी है।इसमें मल्टी लेयर खेती की जा सकती है. जिसमें एक से लेकर 10 लेयर तक किसान खेती कर सकता है. यानी सीधे तौर पर समझे तो एक बीघा में यदि हाइड्रोपोनिक का स्ट्रक्चर लगाया जाए तो उसमें 10 बीघा तक का उत्पादन किया जा सकता है. जिससे समय और मेहनत की भी बचत होती है. तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पोषक तत्व सीधे फसलों तक पहुंच जाते हैं. हानिकारक बैक्टीरिया का इसमें कोई इफेक्ट नहीं होता है. जिससे हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
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