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अरावली पर्वतमाला पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा? अदालत के फैसले को 9 पॉइंट्स में समझिये

उच्चतम न्यायालय ने अपने 20 नवंबर के फैसले में दिए गए उन निर्देशों को सोमवार को स्थगित रखने का आदेश दिया जिनमें अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था.

अरावली पर्वतमाला पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा? अदालत के फैसले को 9 पॉइंट्स में समझिये
अरावली पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला दिया है.

Supreme Court's decision on the Aravalli Mountains: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने 20 नवंबर के फैसले में दिए गए उन निर्देशों को सोमवार को स्थगित रखने का आदेश दिया जिनमें अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था. उसने इस मुद्दे की व्यापक और समग्र समीक्षा के लिए इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को शामिल कर एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा.

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आज Suo Motu Writ Petition (Civil) No. 10/2025 – In Re: Definition of Aravalli Hills and Ranges and Ancillary Issues में एक विस्तृत और अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है. संक्षेप में समझते हैं न्यायालय ने क्या  बातें कहीं और क्या निर्देश दिए.

    1.  अरावली का अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक महत्व

न्यायालय ने पुनः दोहराया कि अरावली पहाड़ियाँ उत्तर-पश्चिम भारत की “ग्रीन लंग्स” हैं और यह थार मरुस्थल तथा उत्तरी उपजाऊ मैदानों के बीच एक अपरिहार्य पारिस्थितिक एवं सामाजिक-आर्थिक आधार का कार्य करती हैं.

    2.  स्वीकृत परिभाषा में अस्पष्टता पर चिंता

हालांकि न्यायालय ने पहले (20.11.2025 को) समिति द्वारा दी गई अरावली पहाड़ियों एवं श्रेणियों की परिभाषा को स्वीकार किया था, परंतु अब न्यायालय ने पाया कि—

    •    परिभाषा के कुछ पहलुओं में स्पष्टता का अभाव है, और

    •    इसके कारण गलत व्याख्या और दुरुपयोग का वास्तविक खतरा उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से खनन गतिविधियों के संदर्भ में.

    3. पर्यावरणविदों और जनता की आपत्तियों का संज्ञान

न्यायालय ने पर्यावरणविदों एवं अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई व्यापक चिंताओं पर ध्यान दिया कि नई परिभाषा—

    •    संरक्षित क्षेत्र को सीमित कर सकती है, और

    •    पारिस्थितिक रूप से जुड़े क्षेत्रों को अनियंत्रित खनन के लिए असुरक्षित छोड़ सकती है.

    4.  न्यायालय द्वारा उठाए गए गंभीर प्रश्न

न्यायालय ने विशेष रूप से निम्न प्रश्नों पर संदेह व्यक्त किया—

    •    क्या “अरावली रेंज” को केवल पहाड़ियों के बीच 500 मीटर तक सीमित करना संरक्षण के दायरे को कृत्रिम रूप से संकुचित करता है?

    •    क्या 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ अनुचित रूप से पर्यावरणीय संरक्षण से बाहर हो जाती हैं?

    •    क्या 500 मीटर की सीमा से परे भी पारिस्थितिक निरंतरता बनी रहती है?

    5.  स्वतंत्र विशेषज्ञ पुनः-परीक्षण की आवश्यकता

न्यायालय ने कहा कि—

    •    समिति की रिपोर्ट, या

    •    20.11.2025 के अपने पूर्व निर्देशों

के किसी भी क्रियान्वयन से पहले, निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं विशेषज्ञ राय प्राप्त की जानी चाहिए, जिसमें सभी संबंधित हितधारकों को सम्मिलित किया जाए.

    6.  नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का संकेत

न्यायालय ने संकेत दिया कि एक नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है, जो—

    •    पूर्व रिपोर्ट की समग्र पुनः-जांच करे,

    •    न्यायालय द्वारा उठाए गए विशिष्ट स्पष्टीकरणात्मक प्रश्नों का उत्तर दे, और

    •    अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभावों का आकलन करे.

    7.  केंद्र और चार राज्यों को नोटिस

न्यायालय ने नोटिस जारी किए—

    •    भारत संघ को, तथा

    •    दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात राज्यों को.

मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को ग्रीन बेंच के समक्ष निर्धारित की गई है.

    8.  पूर्ण यथास्थिति (Status Quo) — सबसे महत्वपूर्ण निर्देश

    •    समिति की सभी सिफारिशें स्थगित (abeyance) रहेंगी.

    •    20.11.2025 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में दिए गए निष्कर्ष और निर्देश भी स्थगित रहेंगे.

    •    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इस दौरान कोई अपरिवर्तनीय प्रशासनिक या पारिस्थितिक कदम न उठाया जाए.

    9.  खनन पर पूर्ण प्रतिबंध जारी

09.05.2024 के अपने पूर्व आदेश को दोहराते हुए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि—

    •    नए खनन पट्टे, और

    •    पुराने खनन पट्टों के नवीनीकरण

अरावली पहाड़ियों एवं श्रेणियों में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना नहीं दिए जाएंगे, जब तक आगे कोई आदेश न हो.

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