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This Article is From Mar 04, 2024

Vote For Note Case: अब सदन में नोट के बदले वोट देने से पहले 100 बार सोचेंगे सांसद और विधायक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

Supreme Court Crucial Verdict: पूर्व पीएम पी. वी. नरसिम्हा राव केस में 5 जजों के संविधान पीठ के फैसले पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट 7 जजों के पैनल ने सहमति से यह फैसला सुनाया. इनमें CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच शामिल थे.

Vote For Note Case: अब सदन में नोट के बदले वोट देने से पहले 100 बार सोचेंगे सांसद और विधायक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Supreme Court Verdict on Vote For Note Case: कैश फॉर वोट मामले में रविवार को अहम फैसला सुनाते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर कानूनी संरक्षण के मामले में कहा है कि वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों / विधायकों को कानूनी संरक्षण नहीं है.

पूर्व पीएम पी. वी. नरसिम्हा राव केस में 5 जजों के संविधान पीठ के फैसले पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट 7 जजों के पैनल ने सहमति से आज यह फैसला सुनाया. इनमें CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत किया है. एक्स पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री ने लिखा, स्वागतम! माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक महान निर्णय जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और व्यवस्था में लोगों का विश्वास गहरा करेगा. 

पी. वी. नरसिम्हा राव केस में 5 जजों के संविधान पीठ का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, "सांसदों/विधायकों पर वोट देने के लिए रिश्वत लेने का मुकदमा चलाया जा सकता है. 1998 के पी. वी. नरसिम्हा राव मामले में पांच जजों के संविधान पीठ का फैसला पलट दिया है. ऐसे में नोट के बदले सदन में वोट देने वाले सांसद/ विधायक कानून के कटघरे में खड़े होंगे. केंद्र ने भी ऐसी किसी भी छूट का विरोध किया था."

रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है, 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105, 194 के विपरीत है- सुप्रीम कोर्ट

अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अनुच्छेद 105(2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्त सदस्य एक आपराधिक कृत्य में शामिल होता है, जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के कार्य के लिए आवश्यक नहीं है. अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है."

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, ऐसे संरक्षण के व्यापक प्रभाव होते हैं. राजव्यवस्था की नैतिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. हमारा मानना ​​है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है. इसमें गंभीर ख़तरा है. ऐसा संरक्षण ख़त्म होने चाहिए.

रिश्वतखोरी संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगी: SC

सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा, "एक सासंद/ विधायक छूट का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि दावा सदन के सामूहिक कामकाज से जुड़ा है. अनुच्छेद 105 विचार-विमर्श के लिए एक माहौल बनाए रखने का प्रयास करता है. इस प्रकार जब किसी सदस्य को भाषण देने के लिए रिश्वत दी जाती है, तो यह माहौल खराब हो जाता है. सांसदों/ विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है."

JMM सांसदों के रिश्‍वत मामले पर नए सिरे से होगी जांच  

सितंबर 2023 में CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5-जे बेंच ने कहा था कि पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों के रिश्वत मामले में फैसले की नए सिरे से जांच करेगी. इसमें 1993 में राव सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों ने कथित तौर पर किसी को हराने के लिए रिश्वत ली थी. CJI ने कहा था कि विधायिका के सदस्यों को परिणामों के डर के बिना सदन के पटल पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए.

भाजपा सांसद मुख़्तार अब्बास नक़वी ने प्रतिक्रिया में लिखा, "जब जनता, जनादेश देकर आपको चुनती है, इसके बाद ऐसे लोग जो जनता के जनादेश के साथ विश्वासघात करते हैं, तो उन्हें ना कानूनी संरक्षण मिल सकता है और ना ही सियासी संरक्षण मिल सकता है."

कोर्ट ने फैसले में कहा, अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता देता है. 105(2) और 194(2) का उद्देश्य प्रथम दृष्टया आपराधिक कानून के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने से प्रतिरक्षा प्रदान करना नहीं लगता है, जो संसद के सदस्य के रूप में अधिकारों और कर्तव्यों के प्रयोग से स्वतंत्र रूप से उत्पन्न हो सकता है. ऐसे मामले में छूट केवल तभी उपलब्ध होगी जब दिया गया भाषण या दिया गया वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवाही के लिए कार्रवाई के कारण का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है. 

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, यह मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. ये मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार नरसिंहराव केस से जुड़े हैं जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे. यह मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 से जुड़ा है, जहां जन प्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता है, उन्हें छूट दी गई है.

इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भाभी हैं और उस समय हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी भी. सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी.

सीता सोरेन को जन सेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रचकर जन सेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था. झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस रद्द कर दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था जिसके बारे में रिश्वत की बात कही जा रही है. 

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