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Baneshwar Fair: आदिवासियों के 'हरिद्वार' में आज से महाकुंभ की शुरुआत, संस्कृति के आंगन में उमडे़गा श्रद्धा का सैलाब

संत मावजी महाराज से आज से करीब 270 साल पहले अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि 'गऊं चोखा गणमा मले महाराज' अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे. मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे हैं.

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Baneshwar Fair: आदिवासियों के 'हरिद्वार' में आज से महाकुंभ की शुरुआत, संस्कृति के आंगन में उमडे़गा श्रद्धा का सैलाब

Rajasthan News: करीब 300 साल पहले जहां पर शिक्षा का अभाव था, वहां पर एक संत को अल्पआयु में अपने तपोबल से ज्ञान प्राप्त हुआ. इस संत ने राजपूताना, मालवा और गुजरात में आदिवासी सहित सर्व समाज के लोगों को भक्ति मार्ग से अपने जीवन को बदलने का परिवर्तन कराया. आज संत मावजी महाराज की तपोस्थली पर बेणेश्वर मेले का आयोजन हो रहा है. मेले का शुभारंभ माघ शुक्ल एकादशी को ध्वजारोहण के साथ हो रहा है. 

संत मावजी महाराज ने सोम-माही और जाखम का त्रिवेणी संगम पर तप-साधन से ज्ञान प्राप्त किया था. यहां पर आदिवासी समाज के लोग अपने पितरो का तर्पण भी करते हैं. इसे आदिवासी समाज का हरिद्वार कहा जाता है. माघ महीने की एकादशी को राष्ट्रीय स्तर का मेला भरता है. इस मेले में करीब दस से अधिक राज्यों के लोग आते हैं. सत मावजी महाराज के द्वारा जनजाति समाज (आदिवासी) में सामाजिक चेतना जागृत किया था. हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर मुख्य मेला भरता है. 

भविष्यवाणियां आज भी लागू

संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी), बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसरबाई की कोख से जन्म हुआ. इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल ग्यारस को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए. मावजी महाराज ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की है, जिन्हें मशहूर नास्त्रोदमस से भी सटिक भविष्यवाणी आज भी लागू हो रही है. 

4 चौपड़े आज भी हैं सुरक्षित

संत मावजी महाराज से आज से करीब 270 साल पहले अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि 'गऊं चोखा गणमा मले महाराज' अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे. मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे हैं. मावजी महाराज के पांच चौपड़ों में से चार इस समय सुरक्षित हैं. इनमें 'मेघसागर' हरि मंदिर साबला में है. इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं. 'साम सागर' शेषपुर में है. इसमें शेषपुर एवं धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं. तीसरा 'प्रेमसागर' डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है.

लंदन के म्यूजियम में सुरक्षित

इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है, जबकि चौथा चौपड़ा 'रतनसागर' बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है. इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है. 'अनंत सागर' नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए. बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है. ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं.

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