
Bharatpur Eladevi Temple: भरतपुर जिले के भुसावर उपखंड के शीत गांव के पास पहाड़ों के बीच धार्मिक स्थल के रूप में शीत कुंड( Sheet Kund) स्थित है. यह जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है. मान्यता है कि हजारों साल पहले देव भगवान की बहन एलादे ने यहां तपस्या की थी. उनकी तपस्या से भगवान महादेव प्रसन्न हुए थे और एलादी देवी ने भगवान शंकर से इस स्थान को बचाने का वरदान मांगा था. उन्होंने कहा था कि भविष्य में इस तपस्या स्थल को प्रसिद्ध करने के लिए इस सूखे और निर्जन स्थान पर हिमालय की तरह गंगा की तरह नदी प्रवाहित करें. उसी दिन से यहां पानी बहने लगा और पास ही एक कुंड में इकट्ठा होने लगा. इस तालाब को शीतल या शीत कुंड के नाम से जाना जाता है. शीत कुंड में 12 महीने पानी रहता है. देश के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस शीत कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि इससे चर्म रोग, बांझपन के साथ-साथ अन्य बीमारियों से मुक्ति मिलती है. हरियाली के बीच यहां एलाह दे माता का मंदिर भी बना हुआ है.

बड़ी संख्या में इस शीत कुंड में स्नान करने आते हैं श्रद्धालु
क्या है मान्यता
एलाड़े माता मंदिर के महंत बालदास महाराज ने बताया कि प्राचीन समय में गढ़ राजौर पर राजू चंदीला गुर्जर नामक एक वीर योद्धा का शासन था. उसकी पत्नी सोडा बहुत ही सुंदर और धार्मिक विचारों वाली महिला थी. उनकी पहली संतान एक पुत्री थी. ज्योतिषियों ने लड़की का नाम एलाड़े रखा. ज्योतिषियों ने राजा को उसके उज्ज्वल भविष्य के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि यह कन्या बड़ी होकर आपके कुल का नाम रोशन करेगी. समय बीतने के साथ जब एलाड़े बड़ी हुई तो उसने पास के पहाड़ पर मंदिर में देवी की तपस्या करना शुरू कर दिया, जिससे उसकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ने लगी. एक दिन दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी का नशे में धुत हाथी ने जंजीर तोड़ दी और भाग गया. सैनिक और हाथी संचालक हाथी के पीछे भाग रहे थे, जंजीर हाथी के पीछे जमीन पर रगड़ रही थी, लेकिन किसी सैनिक की हिम्मत नहीं हुई कि उस हाथी की जंजीर पकड़कर उसे रोक सके.

हरियाली के बीच एलाह दे माता का मंदिर
सैनिकों ने खिलजी के सामने कन्या की शैर्यता का किया बखान
यह दृश्य देखकर सैनिकों को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने इला दे से उसका परिचय पूछा. इला दे ने उत्तर दिया, तुम्हारा हाथी तुम्हारे नियंत्रण में आ गया है. इसे वापस ले लो. यदि मेरे पिता को पता चल गया कि तुम्हारे हाथी ने जान-माल की बहुत हानि की है, तो वे तुम्हें कारागार में डलवा देंगे. सैनिकों ने वहां से लौटकर उस लड़की की बहादुरी की पूरी कहानी बादशाह खिलजी को सुनाई. उन्होंने कहा, 'हमने अनेक वीर योद्धा देखे हैं, लेकिन वह लड़की बहुत शक्तिशाली और अत्यंत सुंदर है. वह राजा राजू चंदीला की बेटी इला दे है.' सैनिकों से कन्या की प्रशंसा सुनकर राजा ने इला दे का विवाह अपने पुत्र से करने की प्रबल इच्छा व्यक्त की. इसके लिए उन्होंने राजा के पास अपने पुत्र के विवाह का प्रस्ताव भेजा और न मानने पर युद्ध की धमकी दी. राजा ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और युद्ध को चुना. खिलजी और राजा चंदीला की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ.

बीमारियों से मिलती है मुक्ति
महादेव की तपस्या कर मांगा था वरदान
राजू चंदीला की छोटी सी सेना राजा के सामने टूटने लगी. अगले दिन हार निश्चित मानकर राजू चंदीला अपनी बेटी और पत्नी के साथ रात में सुरंगों के रास्ते भागकर भरतपुर के लिए निकल पड़े, जहां बैर तहसील के निठार गांव में जाकर बस गए. यहां उन्होंने पास के शीत गांव के पास पहाड़ों के बीच भगवान महादेव की तपस्या की. महादेव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि इस सूखी और वीरान तपस्या स्थल पर कभी पानी की कमी नहीं होगी. उस दिन से यहां झरनों के रूप में पानी बहने लगा और पास में ही एक तालाब है, जहां पानी इकट्ठा होता है. इसे शीत या शीतल कुंड के नाम से जाना जाता है.

कच्ची सड़क से होकर माता तक पहुंचते है श्रद्धालु
कुंड में स्नान करने से मिलती है चर्म रोग और बांझपन से मुक्ति
मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से चर्म रोग और बांझपन के साथ ही अन्य बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहां आते हैं और इस कुंड में स्नान करते हैं. स्थानीय निवासी जमुना लाल मीना ने बताया कि यह क्षेत्र पहाड़ों के बीच बसा है. यहां पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ते हैं और जंगली जानवरों का आवागमन लगा रहता है. लेकिन स्थानीय लोगों ने कई बार जिला प्रशासन से सड़क निर्माण के साथ ही इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है. लेकिन जिला प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है. अगर प्रशासन इसका विकास करे तो यह बड़ा धार्मिक और पर्यटन स्थल बनकर उभरेगा. यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं है और पहाड़ों के बीच में कच्ची सड़क है जो कठिन है। जिला प्रशासन को इस क्षेत्र का विकास करना चाहिए। ताकि यह धार्मिक स्थल के साथ ही पर्यटन स्थल के रूप में उभरे.