Rajasthan News: राजस्थान के बूंदी में भाई दूज के दिन हर वर्ष की तरह इस बार भी अनूठे घास भैरू महोत्सव का आयोजन हुआ है. हर साल दीपावली के ठीक दो दिन बाद भाईदूज के अवसर पर लोक देवता घास भैरू का उत्सव मनाया जाता है. जहां बैलों को दौड़ाया जाता है और बैलों के पीछे पूरा गावं भागता है.
बूंदी में हजारों की संख्या में ग्रामीण और शहरी लोग इस उत्सव में भाग लेने के लिए ठिकरदा, बड़ौदिया, सथूर सहित दर्जन भर गांवों में एकत्रित होते हैं. जिसमें गांव की मुख्य गलियों में स्थानीय निवासी अलग-अलग रूप बनाकर नाच गाकर दर्शकों का मनोरंजन करते हैं.
जादुई नगरी बन जाते हैं गांव
यहां गांव की सड़कों पर ऐसा लगता है कि मानो जादुई नगरी में आ गए हो. यहां गलियों में किसी व्यक्ति का सिर कटा हुआ होता है, तो किसी का पैर ही जमींन में होता है. कहीं व्यक्ति का पूरा शरीर जमींन में समाधी लिए होता है तो कोई व्यक्ति नुकीली कांटे की होली खेल रहा होता है. तो कोई जहरीले जानवरों से पुरे गांव में करतब दिखा रहा होता है. आगे कहीं पर कोई कलाकार पति-पत्नी का रूप बनाकर लोकगीत गा रहा होता, तो कुछ बच्चे शराबी का रूप बनाकर बैठे हुए होते हैं.
सजाई जाती हैं झांकियां
रविवार के दिन गांवों में उल्लास और उमंग का अद्भुत द्रश्य देखने को मिला. इस उत्सव की परंपरा सदियों से चली आ रही है. विभिन्न जादुई करतब और सुन्दर झांकियां इस उत्सव में दिखाते हैं. इन करतबों में कई बड़े हैरत अंगेज करतब होते हैं. हालाँकि ये सभी करतब हाथ की सफाई का कमाल होता है. जिसमें गावं की बावड़ी में भारी वजनी पत्थर पानी में तैराए गए. कहीं पर आसमान की उंचाई पर हैरत अंगेज कलाकारी से पत्थर लटका लटके नजर आए.
राजस्थान भर से आते हैं लोग
इस महोत्सव में जिले के बड़ौदिया, सथूर, ठीकरदा और हिण्डोली में घास भैरू की सवारी देखने के लिए राज्यभर से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. भाई दूज के अवसर पर बड़ौदिया में निकाले जाने वाली घासभैरू की सवारी उत्साह और उमंग से निकली है. गांवों में एक पखवाड़े पूर्व ही लोग सवारी की तैयारी में जुट गए थे.
भाई दूज पर होती है बैलों की पूजा
सभी गांवों में पहले बैलों से घास भैरू को घुमाते हैं. गांव के चारों ओर परिक्रमा लगा कर उनकों यथास्थान बालाजी के मंदिर के पास रखा जाता है. इस दिन विशेष तौर पर बैलों की पूजा की जाती है और बैलों के साथ बांधकर लोक देवता घास भैरू की सवारी पूरे गावं में निकाली जाती है. बैलों के पीछे लोक देवता घास भैरू का प्रतीक एक पत्थर रस्सी से खींचा जाता है. ऐसी मान्यता है की इस अनुष्ठान से देवता खुश हो जाते हैं. यह सब आयोजन ग्राम पंचायत स्तर पर ही होते है.
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