Rajasthan News: यूं तो हमारी धरती पर अनगिनत खगोलीय घटनाएं हुई हैं, लेकिन भारत के इतिहास में एक ऐसी घटना दर्ज है, जिसे देश का पहला अधिसूचित भू-विरासत स्थल (Notified Geo-Heritage Site) बनने का गौरव मिला है. यह घटना कुछ सौ या कुछ लाख साल पुरानी नहीं, बल्कि आज से करीब 650 करोड़ वर्ष पहले की है. एक ऐसा काल जब इस ग्रह पर इंसान का अस्तित्व ही नहीं था.
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बारां जिले में स्थित रामगढ़ क्रेटर (Ramgarh Crater) की. यह वह जगह है जहां आसमान से एक विशालकाय उल्कापिंड (Meteorite) गिरा और धरती में एक गहरा गड्ढा बन गया. इस टक्कर से मिट्टी उछली, जो समय के साथ पहाड़ों में तब्दील हो गई. इसी से बनी साढ़े तीन किलोमीटर की परिधि वाली एक ऐसी भू-संरचना, जिसने न केवल राजस्थान को विश्व पटल पर पहचान दी, बल्कि भारत को भी अपना पहला 'भू-विरासत स्थल' प्रदान किया.
क्या है रामगढ़ क्रेटर का 650 करोड़ साल पुराना रहस्य?
बारां जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर किशनगंज तहसील में स्थित यह रामगढ़ क्रेटर, उस उल्कापिंड के प्रहार का प्रमाण है जो आज से लगभग 650 करोड़ साल पहले हुआ था. इसकी खोज सबसे पहले सन 1865 में ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ. फ्रेडरिक मलेट ने की थी. यह एक अनमोल विरासत है जिसने अपने अस्तित्व की लंबी जंग लड़ी है. भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (INTACH) के अथक प्रयासों के बाद, साल 2018 में अर्थ इम्पैक्ट डेटाबेस सोसाइटी ने इसे विश्व के 200वें क्रेटर के रूप में मान्यता दी.
वैज्ञानिकों के लिए 'सोने की खान', क्यों आते हैं विदेशी रिसर्चर्स?
रामगढ़ क्रेटर केवल एक गड्ढा नहीं है, बल्कि पृथ्वी के गतिशील इतिहास का एक खुला पन्ना है. इसकी मान्यता के बाद से ही, यहां कई विदेशी रिसर्चरों और वैज्ञानिकों का तांता लगा रहता है. साइंटिफिक स्टडीज से पता चला है कि इस क्रेटर की मिट्टी में लोहा, निकल और कोबाल्ट की सांद्रता (Concentration) सामान्य से अधिक है. ये ऐसे तत्व हैं जो आमतौर पर उल्कापिंडों से जुड़े होते हैं, जो क्रेटर के उल्कापिंड से बनने की थ्योरी को पुख्ता करते हैं.
क्रेटर के अंदर एल्कलाइन वाटर का स्रोत
रामगढ़ क्रेटर का वन क्षेत्र न केवल भू-वैज्ञानिक महत्व रखता है, बल्कि यह समृद्ध जैवविविधता (Biodiversity) और एक प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को भी सहेजे हुए है. क्रेटर के अंदर स्थित पुष्कर तालाब खारे और क्षारीय (Alkaline) जल दोनों का स्रोत है. इन झीलों को वेटलैंड (Wetland) के रूप में अधिसूचित किया गया है, जहां कई देशी और विदेशी पक्षी अटखेलियां करते नजर आते हैं. यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी को एक अद्भुत सुंदरता और विविधता प्रदान करता है. क्रेटर के पास एक प्राचीन किला भी था जो अब ध्वस्त हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष इस क्षेत्र की सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत के प्रमाण हैं.

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'विश्व विरासत' बना, पर विकास के कागजों में सिमटा
यह विडंबना ही है कि देश-विदेश में अपनी पहचान बना चुका यह ऐतिहासिक रामगढ़ क्रेटर, अपने ही राज्य राजस्थान में अपेक्षाकृत उपेक्षित नजर आ रहा है. यह भले ही भारत की पहली जिओ-हेरिटेज साइट का गौरव प्राप्त कर चुका हो, लेकिन सरकारी उदासीनता इसे पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थल नहीं बना पा रही है.
पिछली कांग्रेस सरकार ने यहां 57 करोड़ रुपये के विकास कार्य प्रस्तावित किए थे, लेकिन इसमें से सिर्फ 6 करोड़ रुपये की राशि से एक तालाब की बाउंड्री वॉल का निर्माण हो पाया.
पर्यटक सुविधाओं का अभाव:
- यहां पर्यटकों के लिए रहने और खाने की कोई व्यवस्था नहीं है.
- यहां कोई टूरिस्ट सेंटर नहीं बनाया गया है.
- गांव से क्रेटर तक पहाड़ी के अंदर आने वाला रास्ता खराब है और बारिश में तो पूरी तरह से बंद हो जाता है.

जितेंद्र कुमार शर्मा.
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बारां में इंटेक चैप्टर के कन्वीनियर जितेंद्र शर्मा पम्मी ने NDTV राजस्थान से खास बातचीत में कहा, 'इंटेक ने इसे विश्व पटल पर पहचान दिलाने के लिए अथक प्रयास किए, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारों की घोषणाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं. इतनी बड़ी धरोहर अगर पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर पा रही है, तो इसका कारण सुविधाओं का घोर अभाव है.'
विकास की दिशा में काम जारी है: DM

वहीं, बारां जिला कलेक्टर रोहिताश्व सिंह तोमर का कहना है कि, 'जिला प्रशासन रामगढ़ क्रेटर के पर्यटन विकास के लिए प्रतिबद्ध है. हम जानते हैं कि सुविधाओं का विकास जरूरी है और इस दिशा में काम जारी है ताकि यह ऐतिहासिक स्थल देश और दुनिया के पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बन सके.'
सदियों से भारत की इस अनमोल धरोहर को संजोए रामगढ़ क्रेटर, आज भी अपने गौरवशाली अतीत को लिए बेहतर भविष्य की राह देख रहा है. यह इंतजार है कि कब कागजों से निकलकर विकास ज़मीन पर उतरेगा और यह 'पहला भू-विरासत स्थल' अपने सही मायनों में पर्यटकों को आकर्षित कर पाएगा.
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