Kajari Teej Ki Katha: बीकानेर में महिलाएं पार्कों में इकट्ठा हुईं. झूला झूलीं. कजली तीज को बड़ी तीज, बूढ़ी तीज, कजरी तीज या सातुड़ी तीज भी कहा जाता है. महिलाएं व्रत रखती हैं. सुबह होने पर बाग़ में जाकर झूला झूलती हैं. कई महिलाओं के पति भी उनके साथ जाकर उन्हें झूला झुलाया. व्रती महिलाएं दिन भर व्रत रखती हैं. रात को पार्वती और शिव की कहानी सुनने के बाद चांद को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं.
रात 8.59 बजे दिखेगा चांद
रात 8 बजकर 59 मिनट पर चंद्रमा दिखेगा. उसी समय चन्द्र के दर्शन कर महिलाएं अर्घ्य देंगी. चने, गेहूं या चावल के आटे से बना या सत्तू से व्रत तोड़ती हैं. इस सत्तू से व्रत तोड़ा जाता है, इसलिए इसे सातूड़ी तीज भी कहा जाता है. बीकानेर में इस तीज को ख़ास तौर पर मनाया जाता है. कजली तीज को यहां के किले जूनागढ़ से तीज माता की सवारी शाही लवाजमे के साथ निकाली जाती है, तीज का मेला भी भरता है.
सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं
महिलाओं को मिठाई स्वरूप पांच किलो चांदी का वर्क लगा और मेवों से सजा सत्तू, फल और मिठाई से सजी ग्यारह किलो की टोकरी तोहफ़े के तौर पर पहुंचाई जाती है. भादवा कृष्ण पक्ष में ये तीज व्रत होता है. सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र, सुख-समृद्धि और संतान के सुख की कामना लिए ये व्रत करती हैं. माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना की जाती है.
यह भी पढ़ें: जयपुर में खुला उत्तर भारत का पहला विप्रो हाइड्रोलिक प्लांट, CM भजनलाल ने किया उद्घाटन