Rajasthan Economy: बीते दिनों राजस्थान की भजनलाल सरकार ने जब अपना पहला पूर्णकालिक बजट प्रस्तुत किया तो उसमें सूबे की अर्थव्यवस्था को आगामी वर्षों में 350 बिलियन अमेरिकन डॉलर तक ले जाने की बात की गई. राजस्थान सरकार ने इस संदर्भ में एक पहल तो की है. लेकिन राजस्थान देश के आर्थिक मानचित्र में अभी बहुत पीछे है.
पिछले वर्ष तक इस सूबे की जीडीपी तकरीबन 15.7 लाख करोड़ थी जिसमें 48 प्रतिशत के हिस्से के साथ मुख्य बागडोर सर्विस क्षेत्र के पास थी और करीब-करीब 28 प्रतिशत की बराबरी के साथ का हिस्सा कृषि व मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का था. प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो वर्ष 2022-23 में ये 1,51,559 रुपए थी जिसमें बीते वित्तीय वर्ष 2023-24 में लगभग 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई और ये अब 1,67,614 रुपए पर पहुंची.
हालांकि, देश के प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से राजस्थान सूबे की प्रति व्यक्ति आय तकरीबन 50000 रुपये अधिक है लेकिन एक बड़ी जनसंख्या वाले सूबे के हिसाब से ये अन्य विकसित राज्यों से काफी कम है. और इसी के चलते थिंक टैंक "सीएमआईई" के ताजा आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में बेरोजगारी की दर 28.5 प्रतिशत है, जो कि वर्तमान समय में भारत में हरियाणा के बाद दूसरी सबसे अधिक दर है.
जयपुर पर ध्यान देने की जरूरत
विकसित राजस्थान की तरफ बढ़ने के लिए अब राज्य की आर्थिक नीतियों में कुछ आमूलचूल परिवर्तन अपेक्षित है. मसलन, राज्य के सबसे अधिक विकसित शहर, जयपुर को अब भारत के आर्थिक मानचित्र पर बहुत तेजी से आगे लाना ही होगा जैसे कि पिछले दो-तीन दशकों से गुरुग्राम, नोएडा, हैदराबाद, पुणे और बेंगलुरु आदि शहरों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
जयपुर देश की राजधानी दिल्ली तथा एनसीआर के काफी नजदीक स्थित है. अगर जयपुर को कुछ क्षेत्रों में खास और विशेष सुविधा मिले तो ये युवाओं के लिए रोजगार में भी उपयोगी होगा और राज्य के लिए एक अतिरिक्त राजस्व का स्रोत भी. ये अप्रवासी राजस्थानी और मारवाड़ी निवेशकों के लिए भी एक आकर्षण का स्रोत होगा. इस मकसद पर राज्य सरकार को बड़ी तेजी से पहल करनी चाहिए क्योंकि दिल्ली और एनसीआर में अब और आर्थिक विस्तार की संभावनाएं बहुत कम रह गई है. सरकार अब बड़े औद्योगिक घरानों के साथ विमर्श का दौर जल्द-से-जल्द शुरू करे.
कोटा कोचिंग इंडस्ट्री को प्रोत्साहन मिले
एक अन्य पक्ष के तहत राजस्थान के कोटा शहर के विभिन्न कोचिंग संस्थान देश भर में बड़ी साख रखते हैं और ये संस्थान आर्थिक पक्ष पर भी बहुत सफल हैं. सरकार को अब इन संस्थानों को और अधिक विस्तार देने और उन्हें भारतीय पूंजी बाजार में लिस्टेड कंपनी के रूप में उतरने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज आम आदमी के लिए निवेश की प्रथम प्राथमिकता अप्रत्यक्ष तौर पर भारतीय पूंजी बाजार बन चुका है, और बैंकों की ब्याज की दरें अब ज्यादा लुभावनी नहीं रहीं. अगर ये कोचिंग संस्थान एक पब्लिक लिस्टेड कंपनी बनते हैं तो इससे राजस्थान और देश के अन्य लोगों को इनमें निवेश करने का एक मौका मिलेगा जो कि राजस्थान में औद्योगिक विकास की नई पहल को भी जन्म देगा.
निवेशकों की मानसिकता बदलने की जरूरत
तीसरे पक्ष के तहत बड़ी तेजी से एक मानसिक बदलाव को लाने की जरूरत है जिसके अंतर्गत मारवाड़ी निवेशकों को गुजराती निवेशकों की तरह सोचना होगा ताकि बड़ी जल्दी से राजस्थान भी आर्थिक विकास के मोर्चे पर गुजरात की तरह से देश में स्थापित हो सके.
इसमें कोई शक नहीं है कि विभिन्न भौगोलिक समस्याओं के चलते राजस्थान के पास गुजरात और अन्य कुछ विकसित राज्यों के जैसी प्राकृतिक सुविधाएं नहीं हैं जो कि व्यापार करने को बहुत अधिक प्रोत्साहित कर सके. इसी के चलते राजस्थान के मारवाड़ी व्यापारी यहां से दूसरे राज्यों की तरफ बीते दशकों में गए थे.
लेकिन ये भी समझना होगा कि अब वे सभी मारवाड़ी व्यापारी जो कि देश के विभिन्न भागों में, जिनमें गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, वापी, महाराष्ट्र के मुंबई, नागपुर, बंगाल में कोलकाता, केरल का कोचीन असम में गुवाहाटी, जोरहाट, पंजाब का लुधियाना और दिल्ली जैसे कई और भी शहर जहां पर अब मूल राजस्थान के विभिन्न मारवाड़ी व्यापारी अपनी बहुत बड़ी साख रखते हैं. ये सभी अब सप्लाई चैन मैनेजमेंट या आधुनिक प्रबंधन के नए तौर-तरीकों के माध्यम से अपने व्यापारों की अगली स्टेज राजस्थान में स्थापित करें और राजस्थान की सरकार उन्हें हर तरह की सुविधा उपलब्ध करवाए.
ये भी अत्यंत आवश्यक है कि राजस्थान के अप्रवासी व्यापारी और निवेशक राजस्थान की सरकार के साथ प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के तहत राजस्थान के छोटे शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में अपनी जिम्मेदारी निभायें तो ये राजस्थान के आर्थिक विकास में भागीदारी को निभाने की एक शानदार शुरुआत हो सकती है. इससे राजस्थान भी गुजरात के जैसा एक आर्थिक मॉडल देश के सामने प्रस्तुत कर सकता है और गुजरात समेत अन्य विकसित राज्यों को बड़ी जल्दी से पीछे भी छोड़ सकता है क्योंकि मारवाड़ी समुदाय का अंतर्निहित स्वभाव व्यापार करना ही होता है. और अर्थव्यवस्था के लिए यही एक मात्र आर्थिक मुनाफे का स्वाभाविक स्रोत है.
पर्यटन को आर्थिक नीतियों की मुख्य धारा में लाया जाए
अंतिम पहलू के अंतर्गत राजस्थान में पर्यटन के विकास की संभावनाओं को आर्थिक नीतियों की मुख्य धारा में रखना ही होगा. इस पक्ष पर सोशल मीडिया के इस युग में नागरिकों को भी राजस्थान में पर्यटन की एक लहर को चलाने की एक पहल करनी होगी. उन्हें सामाजिक परिवेश में बहुत सुसंस्कृत होना तथा अपने क्षेत्र के प्रति स्वच्छता को मुख्य प्राथमिकता देना होगा. राज्य सरकार की मुख्य प्राथमिकता हर शहर में हेरिटेज की वस्तुओं और स्थलों को मुख्य संरक्षण देना तथा इसके लिए गांव में पंचायत को भी मुख्य धारा में लाना होगा.
बजट के अंतर्गत भजनलाल सरकार ने राजस्थान के एक प्रसिद्ध मंदिर को काफी बड़ी वित्तीय राशि आवंटित की है जोकि पर्यटन के हिसाब से एक सराहनीय पहल है लेकिन इसके साथ-साथ सरकार शायद को यह भी ध्यान रखना चाहिए था, कि कुछ अन्य बड़े धार्मिक स्थल जहां पर देश के विभिन्न हिस्सों से लगातार श्रद्धालु आते रहते हैं, वे आज भी रेल के परिवहन से नहीं जुड़े हुए हैं. इस पक्ष पर भी सरकार को सकारात्मक तौर पर सोचना आवश्यक है.
पिछले कुछ वर्षों में राज्य के कुछ छोटे शहरों में हवाई सुविधा को स्थापित तो किया गया परंतु उनमें निरंतरता का अभाव है क्योंकि उसे लाभदायकता के साथ जोड़कर देखा जाता है जो कि नागरिकों को बहुत निराश करता है. इसलिए जरूरत ये है कि पर्यटन की सुविधाओं को विकसित करने से पहले आवागमन की आधुनिक या कम से कम सुविधाजनक सुविधाओं पर अधिक जरूरी ध्यान केंद्रित किया जाए.
(डॉ पी एस वोहरा राजस्थान में बीकानेर स्थित आर्थिक मामलों के जानकार हैं और समाचार पत्रों में नियमित स्तंभकार हैं)
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.