राजस्थान का नाम आते ही हर किसी के मन में रेगिस्तान से अटे क्षेत्र की छवि उभर आती है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि राजस्थान के दक्षिणांचल मेवाड़-वागड़ पर प्रकृति की बड़ी मेहरबानी है. इस क्षेत्र में प्रकृति ने विश्व की प्राचीनतम अरावली की उपत्यकाओं, छितराई पहाड़ियों, बलखाती नदियों, पानी से लबालब झीलों, मानसून में प्रकृति का संगीत सुनाते झरनों, प्रदूषण मुक्त छोटे-छोटे ताल-तलैयाओं के साथ सघन वनों की सौगात दी है. यहां पर उन्मुक्त भाव से पशु-पक्षियों को भी आसरा मिला है.
मेवाड़ अंचल के लगभग हर एक गांव में कम से कम एक तालाब तो मिलता ही है. इनमें से अधिकांश तालाबों में वर्षभर पक्षियों को बसेरा मिल जाता है.ये जलाशय प्रकृति की इस सुंदर नेमत को आश्रय प्रदान करते रहे हैं. क्षेत्र के सैकड़ों जलाशयों में चार जलाशय ऐसे है जो ग्रामीणों के द्वारा पूर्णतया परिंदों को समर्पित व संरक्षित हैं और इसी वजह से वर्ष भर यह जलाशय इन परिंदों की पसंदीदा आश्रय स्थली बने रहे हैं.
परिंदों के स्वर्ग हैं चारों तालाब
परिंदों के स्वर्ग के रूप में उदयपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेनार गांव के ब्रह्म और धंड तालाब, 85 किलोमीटर दूरी पर बड़वई और 90 किलोमीटर दूरी पर किशन करेरी गांव के तालाब अनुकरणीय आदर्श बने हुए हैं. ये जलाशय सर्दियों की ऋतु में तो हजारों पक्षियों से गुलजार रहते हैं और इनमें पक्षियों की जलक्रीड़ाओं को देखने के लिए बड़ी संख्या में पक्षी प्रेमी व पर्यावरणविद् पहुंचते हैं.
ये चारों तालाब ग्रामीण पक्षी मित्र द्वारा पक्षियों के लिए संरक्षित तालाब हैं.ग्रामीणों के द्वारा संरक्षण किए जाने के कारण यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर दिखाई देता है.
देश-प्रदेश का यह अनूठा उदाहरण होगा कि पक्षियों की संख्या को देखकर उनके उपयोग के लिए ही यहां इन दोनों तालाबों से ग्रामीण काश्तकार सिंचाई के लिए न तो पानी लेते है और न ही किसी को लेने देते है.इसके साथ ही ग्रामीणों द्वारा मछलियों से भरे इस तालाब में किसी भी प्रकार से न तो ग्रामीण मछलियां पकड़ते हैं और न ही इसका ठेका दिया जाता है.
इसके अलावा ग्रामीणों द्वारा इस तालाब में सिंघाडे़ या कमल की खेती के लिए भी ठेका देने पर पाबंदी लगा रखी है. यहां यह भी उल्लेखनीय होगा कि पक्षियों के हित को देखते हुए तालाबों के पानी के उतरने के बाद भी तालाब पेटे में कृषि कार्य नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं गर्मियों में इस तालाब का पानी जब सूखने लगता है तो मछलियों और पक्षियों को बचाने के लिए ग्रामीण टैंकरों के माध्यम से तालाब को पानी से भरते हैं.हाल ही में इन जलाशयों पर पक्षी मित्रों द्वारा चारागाह विकास कार्य भी किए गए हैं.
150 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों की आश्रय स्थली
पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में इन जलाशयों में 150 से अधिक प्रजातियों के लगभग हजारों स्थानीय और प्रवासी पक्षी मौजूद रहते हैं.
इन पक्षियों में रोजी पेलिकन, डाल्मेशियन पेलिकन, बार हेडेड गूज, ग्रे-लेग गूज, ग्रेट क्रस्टेड ग्रीब, मार्श हैरियर, कॉमन क्रेन, सुर्खाब के साथ ही रफ, गॉडविट, शॉवलर, पिनटेल, यूरेशियन विजन, कॉमन पोचार्ड, टफ्टेड पोचार्ड, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, गेडवाल, फ्लेमिंगो, कॉमन टील, वेगटेल, ग्रीन शैंक, रेड शेंक, रिंग प्लोवर, प्रोटोनिकॉल, लिटल स्टींट, विस्कर्ड टर्न आदि मेहमान पक्षी आते हैं.
इस दौरान बड़ी संख्या में पक्षीप्रेमी व देश विदेश के पर्यटक व विशेषज्ञ यहां पहुंच कर सुबह-शाम परिंदों की रंगीन दुनिया को देखने का लुत्फ उठाते हैं.
हिमालय का परिंदा जो यहीं का होकर रह गया
बर्ड विलेज मेनार में एक परिंदा ऐसा भी पाया जाता है जो कभी आया तो था हिमालय से, लेकिन जब इसको यहां की आबोहवा रास आई तो अब यह यहीं का होकर रह गया.यह छोटा सा खूबसूरत परिंदा है ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब.
वर्षों पहले यह पक्षी हिमालय की तराई में अत्यधिक कम तापमान होने पर सर्दियों में प्रवास पर आता था और चार माह बिताने के बाद अपने वतन को लौट जाता था परंतु अब इस पक्षी ने इसी तालाब को अपना स्थाई आशियाना बना लिया है. लगातार पिछले वर्षों में उसने अपनी वंशवृद्धि भी की है.
सिर पर कलगी के साथ छोटे आकार का यह जलीय पक्षी ठंडे प्रदेशों, जैसे हिमालय, मध्य एशिया,यूरोप के समीपवर्ती इलाक़ों से शीतकाल व्यतीत करने के लिए यहां प्रवास करता था.
पानी पर दौड़ते हुए आकर्षक नृत्य करने वाला ग्रेट क्रस्टेड ग्रीब पक्षी अपना घोंसला पानी के किनारे दलदली क्षेत्र में उगी हुई वनस्पति में बनाता हैं.नर और मादा मिलकर घोंसला बनाते हैं.स्वभाव से शर्मीला पक्षी पानी में गोता लगाकर शिकार करता है और बच्चों को खिलाता भी है. इसका प्रमुख भोजन मछली, मेंढक, टैडपोल व अन्य छोटे जलीय जीव हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
लेखक परिचय - डॉ. कमलेश शर्मा राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उदयपुर में संयुक्त निदेशक हैं. पर्यावरण और वन्यजीवों में विशेष अभिरुचि रखने वाले डॉ. शर्मा एक वाइल्डलाइफ़ फोटोग्राफर भी हैं. इस आलेख में इस्तेमाल की गई सारी तस्वीरें उन्हीं की ली गई तस्वीरें हैं.