विज्ञापन

बाघों के शव बड़ी मुश्किल से क्यों मिलते हैं

Dr. Dharmendra Khandal
  • विचार,
  • Updated:
    मार्च 12, 2025 12:58 pm IST
    • Published On फ़रवरी 14, 2025 13:53 pm IST
    • Last Updated On मार्च 12, 2025 12:58 pm IST
बाघों के शव बड़ी मुश्किल से क्यों मिलते हैं

Ranthambhore: भारत में जब भी कोई बाघ किसी टाइगर रिज़र्व से लापता होता है तो अक्सर वन अधिकारियों को मीडिया और वन्यजीव प्रेमियों के इस एक सवाल का सामना करना होता है - अगर बाघ मर गया तो उसका शव क्यों नहीं मिला? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है. लेकिन यह एक अहम सवाल है जिसे समझना ज़रूरी है. सामान्य तौर पर लापता होने वाले बाघ दो तरह के होते हैं - बूढ़े बाघ या आपसी लड़ाई में घायल होने वाले बाघ.

बाघों की ज़िंदगी संघर्ष भरी होती है. कोई भी बाघ बड़ी मुश्किल से 15 साल की उम्र तक पहुंच पाता है.  लेकिन उम्र ढलने के साथ वो शारीरिक रूप से कमज़ोर होने लगते हैं, दूसरे बाघ भी साथ नहीं देते. ज़्यादातर समय नए और जवान बाघों के साथ उनके संघर्ष भी होते हैं. बूढ़े और घायल बाघ रिज़र्व से चले जाते हैं.

बाघों को ज़िंदा रहने के लिए शिकार पर निर्भर रहना पड़ता है. शिकार एक मुश्किल काम है, जिसमें लगातार प्रयास करते रहना पड़ता है. इसमें शारीरिक शक्ति के साथ दिमाग़ भी लगाना पड़ता है. बाघ शरीर से भी ताक़तवर होते हैं और उनका दिमाग़ भी इस तरह से चलता है जिसमें वो शिकार के लिए तैयार रहते हैं. 

Add image caption here

संघर्ष भरी होती है बाघों की ज़िंदगी

एक बाघ अपने 15-16 साल के जीवन में लगभग 600-800 जानवरों का (चीतल) का शिकार करते हैं. हर साल वह पेट भरने के लिए करीब 40-50 जानवरों का शिकार करते हैं. हमेशा शिकार की तलाश में लगे रहने से बाघों की ज़िंदगी के कई पहलुओं पर प्रभाव पड़ता है. उनके बीच इलाक़ों पर कब्ज़ा जमाने के लिए होनेवाले टेरिटोरियल संघर्ष भी इसी वजह से होते हैं.

बाघ अपनी टेरिटरी या इलाके की रक्षा करते हैं ताकि उनके भोजन की और दूसरी ज़रूरतें पूरी हो सकें. शिकार के लिए या बाघिन के साथ संबंध बनाने के लिए अक्सर उनमें संघर्ष होते रहते हैं. बाघिनों के लिए चुनौती और बड़ी होती है क्योंकि उसे अपने बच्चों (शावकों) को भी दूसरे बाघों से बचाना होता है. टेरिटरी की लड़ाई हार जाना बहुत महंगा हो सकता है क्योंकि इससे भुखमरी, घायल होने और यहां तक कि मौत का ख़तरा होता है. 

बाघों के लिए स्थिति और ख़तरनाक हो जाती है अगर वो टेरिटोरियल संघर्ष में हारने के बाद घनी आबादी वाले गांवों के पास चले जाते हैं. वहां उन्हें मवेशियों के रूप में आसान शिकार मिल जाते हैं, लेकिन गांव के लोगों के साथ संघर्ष होने का एक नया ख़तरा भी उठाना पड़ सकता है.

एक बाघ अपने 15-16 साल के जीवन में लगभग 600-800 जानवरों का (चीतल) का शिकार करते हैं. हर साल वह पेट भरने के लिए करीब 40-50 जानवरों का शिकार करते हैं.

बुढ़ापे में छिप कर रहने लगते हैं बाघ

संघर्षों के बीच इस तरह की ज़िंदगी जीते-जीते बाघों को ख़तरों का अंदाज़ा हो जाता है. वह समझ जाता है कि अगर वो कमज़ोर हुआ, तो प्रतिद्वंद्वी बाघ उसे मार डालेंगे, ठीक उसी तरह जैसे उसने दूसरे बाघों को मारा था.

कोई बाघ जब बूढ़ा या कमज़ोर हो जाता है तो वह ख़ुद को अलग-थलग करने लगता है, और खुल कर घूमने की जगह छिप कर रहता है. अक्सर वह अलग-अलग बाघों के इलाकों के बीच  किसी अलग इलाके में चला जाता है और अपना इलाका बनाने की कोशिश छोड़ देता है.

उसका अंत या तो किसी दूसरे ताकतवर बाघ के हाथों होता है, या वो किसी गुफा या कंटीली झाड़ियों के बीच मर जाता है. इससे उसके आखिरी दिनों में उसे देख पाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

Latest and Breaking News on NDTV

जल्दी नष्ट होते हैं बाघों के शव

शाकाहारी जानवरों की तुलना में मांसाहारी जानवरों के शव जल्दी नष्ट हो जाते हैं, ऐसे में किसी मृत बाघ के अवशेष मिल पाना और कठिन हो जाता है. बाघों की मांसपेशियां ज्यादा गठीली और घनी होती हैं और उनमें चर्बी कम होती है. इस वजह से उनका शरीर जल्दी नष्ट हो जाता है क्योंकि उनकी मांसपेशियों के टिश्यू में काफी पानी और प्रोटीन होता है. ऐसे टिश्यू में बैक्टीरिया और एंज़ाइम ज़्यादा सक्रिय होते हैं जिससे शव जल्दी डीकंपोज़ हो जाता है.

दूसरी ओर, शाकाहारी जानवरों के शरीर में चर्बी ज़्यादा होती है और टिश्यू ज़्यादा जुड़े होते हैं. मांसपेशियों की तुलना में चर्बी धीमी गति से डीकंपोज़ होती है क्योंकि उसमें पानी कम होता है और उसमें बैक्टीरिया तेज़ी से सक्रिय नहीं हो पाता.

इसके अलावा, शाकाहारी जानवरों की पाचन प्रक्रिया और डाइट से एक अलग तरह का माइक्रोबायोम (Microbiom) बनता है जिससे मांसाहारी जानवरों की तुलना में शव के नष्ट होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है. बाघों की हाई-प्रोटीन डाइट से ऐसे बैक्टीरिया और एंज़ाइम बनते हैं जिनसे मौत के बाद शव तेज़ी से नष्ट हो जाते हैं. वहीं शाकाहारी जानवरों के शरीर में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जिनसे डीकंपोज़ होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है.

बाघों की हाई-प्रोटीन डाइट से ऐसे बैक्टीरिया और एंज़ाइम बनते हैं जिनसे मौत के बाद शव तेज़ी से नष्ट हो जाते हैं. वहीं शाकाहारी जानवरों के शरीर में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जिनसे डीकंपोज़ होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है.

आस-पास कीड़े, शरीर के अंदर बैक्टीरिया

कई और तरह के कीड़े और फ्लेश-फ्लाई जैसे माइक्रोऑर्गेनिज़्म स्वाभाविक रूप से बाघों के नज़दीक रहते हैं. बाघों की महक से और उनके लगातार किसी ना किसी शिकार में मारे गए किसी जानवर के संपर्क में रहने की वजह से, ये कीड़े बाघों के आस-पास मौजूद रहते हैं. किसी बाघ की की मौत होने पर यही कीड़े उसके शव को बहुत जल्दी डीकंपोज़ कर देते हैं.

इसके अलावा, बाघ जैसे मांसाहारी जानवरों की आंतों में मांस को जल्दी पचा देने वाले बहुत से बैक्टीरिया होते हैं. बाघों की मौत के बाद,ये बैक्टीरिया तेजी से फैलने लगते हैं और शव को तेज़ी से डीकंपोज़ कर देते हैं.

इस वजह से बाघों और तेंदुओं की चमड़ी तेज़ी से डीकंपोज़ होती है, जबकि शाकाहारी जानवरों की मौत के बाद उनकी चमड़ी सूखने लगती है. जैसे, बाघ की चमड़ी के बाल मौत के फौरन बाद गिरना शुरू हो जाते हैं, जबकि शाकाहारी जानवरों के बाल चमड़ी पर लगे रहते हैं.

दूसरे जानवर खा जाते हैं मांस

एक ग़लत धारणा यह भी है कि सियार और लकड़बग्घे मांसाहारी जानवरों को नहीं खाते हैं. उदाहरण के लिए, जंगली सुअर बाघ के शव के डीकंपोज़ होना शुरू होते ही उसे खाने लगते हैं.

इन्हीं वजहों से स्वाभाविक रूप से मरने वाले बूढ़े बाघों के शव बहुत मुश्किल से ही मिल पाते हैं. पिछले दो दशकों में रणथंभौर में सिर्फ़ दो ऐसे बाघों के शव मिल पाए हैं जिनकी स्वाभाविक मौत हुई. और इन दोनों बाघों की भी इंसानों ने थोड़ी मदद की थी. मरने के बाद ज़्यादातर ऐसे ही बाघों के शव मिल पाते हैं जिनकी मौत स्वाभाविक नहीं होती है.

(यह लेख मूल रूप से अंग्रेज़ी में टाइगर वॉच डॉट नेट वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था. इसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं.)

परिचयः डॉ. धर्मेंद्र खांडल, एक कंज़र्वेशन बायोलॉजिस्ट हैं और पिछले 30 वर्ष से वन्यजीव संरक्षण की दिशा में कार्यरत हैं. इन्होंने रणथंभौर टाइगर रिजर्व में वन्य जीव एवं समुदाय आधारित संरक्षण की दिशा में कार्य किया है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

ये भी पढ़ें-: बाघिनों की घटती संख्या से भी आया है रणथंभौर के बाघों पर संकट

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close